पुस्तक का नाम : ‘रिक्लेमिंग हिन्दू टेम्पल्स: एपिसोड्स फ्रॉम एन ओप्प्रेसिव एरा’
लेखक: डॉ चांदनी सेनगुप्ता
भाषा : अंग्रेजी
प्रकाशक: गरुड़ प्रकाशन
पृष्ठ: 227
मूल्य : 299 (प्रिंट)
क्या आपने ‘रिक्लेमिंग हिन्दू टेम्पल्स: एपिसोड्स फ्रॉम एन ओप्प्रेसिव एरा’ (Reclaiming Hindu Temples: Episodes from an Oppressive Era) पुस्तक का नाम सुना है ? मुझे लगता है इस प्रश्न के उत्तर का अधिकतम प्रतिशत ‘नहीं’ होगा। खैर! इस उत्कृष्ट पुस्तक के बारे में लेख में आगे बताऊंगा। लेख की भूमिका में देश के गृहमंत्री श्री अमित शाह के एक वक्तव्य की चर्चा करना आवश्यक है।
विगत 10 जून को भारत के गृहमंत्री श्री अमित शाह ने एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में कहा था,”मैं इतिहासकारों को कुछ बताना चाहता हूँ। हमारे पास कई साम्राज्य हैं लेकिन इतिहासकारों ने केवल मुगलों पर ध्यान केंद्रित किया और ज्यादातर उनके बारे में लिखा है।” इसके बाद उन्होंने कई हिन्दू साम्राज्यों के बारे में बताया। उन्होंने कहा था,”टिप्पणियों को दरकिनार कर हमारे गौरवशाली इतिहास को जनता के सामने रखना चाहिए। जब हम बड़े प्रयास करते हैं तो झूठ की कोशिश अपने आप छोटी हो जाती है। इसलिए हमें अपने प्रयासों को बड़ा बनाने पर अधिक ध्यान देना चाहिए।”
देश के गृहमंत्री के ये शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान समय में भारत को भारत की दृष्टि से देखने वाले बुद्धिजीवी इतिहास लेखन के इस कार्य में लगे भी हुए हैं। लेकिन मेरा मत है कि जितना प्रचार होना चाहिए उतना नहीं हो रहा है। या फिर प्रचार की योजना में कुछ दोष है। या फिर भारत के लोग नीरस हैं या इस तरफ उदासीन हैं। नीरस या उदासीन होने की मेरी बात का खंडन आराम से हो सकता है क्योंकि वामपंथी लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित होते ही बाज़ार से उड़ जाती हैं और बेस्टसैलर हो जाती हैं। बड़े बड़े मीडिया मंचों पर समीक्षायें प्रकाशित होती हैं, लेखकों के साक्षात्कार होते हैं। कुल मिलाकर उनका विमर्श (नरेटिव) स्थापित हो जाता है, भले ही वह कोरा झूठ क्यों न हो। भारत में वर्षों से यही तो हो रहा है और फिर लोग दोष देते हैं सरकारों को कि हमें गलत इतिहास पढ़ाया गया है, हमारे बच्चों को गलत पढ़ाया जा रहा है। सरकार कुछ न कर रही है ..ये..वो…ऐसा..वैसा आदि। ऐसे में समस्या यथावत बनी रहती है।
मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूँ, इसके पीछे कारण है डॉ. चांदनी सेनगुप्ता की अंग्रेजी भाषा में गरुड़ प्रकाशन से प्रकाशित उत्कृष्ट पुस्तक ‘रिक्लेमिंग हिन्दू टेम्पल्स: एपिसोड्स फ्रॉम एन ओप्प्रेसिव एरा।’ जो वर्ष 2021 में प्रकाशित हुई थी, लेकिन मुझे अब पता चला। आज तक नाम भी न सुना था। क्या ये मेरी उदासीनता है या प्रचार की कमी या दोनों? विचार करना पड़ेगा। रोज मेरा पुस्तकों का पार्सल आता रहता है, लेकिन इस पुस्तक के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी। कहीं न कहीं प्रकाशक की तरफ से इस पुस्तक के प्रचार में कमी रही है। गूगल करता हूँ तो कोई समीक्षा नहीं मिलती। ऐसा कैसे हो सकता है? बहुत पाठकों ने इस पुस्तक को पढ़ा भी होगा लेकिन किसी ने एक शब्द भी न लिखा। बड़ी अजीब बात है। क्या ऐसे में भारत के इतिहास का पुनर्लेखन होगा? विचार करिये। एक लेखक कैसे प्रोत्साहित होगा? यदि पुस्तक प्रकाशन के एक वर्ष तक न प्रचार हो और न ही कोई समीक्षा लिखी जाए। फिर यही हाल रहा तो वामपंथियों द्वारा लिखा दोषपूर्ण और मनघड़ंत इतिहास ही पढ़ना पड़ेगा। फिर देश में सेक्युलर ही पैदा होंगे और होगा बेडा गर्क।
227 पृष्ठों की इस पुस्तक में प्रस्तावना सहित 9 अध्याय हैं। पुस्तक का प्राक्कथन देश की जानी मानी हस्ती सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने लिखी है। मोनिका अरोड़ा की दिल्ली दंगों पर लिखी पुस्तक ने पूरा देश हिला दिया था। मोनिका जी का इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखना अपने आप में बड़ी बात है। मोनिका जी ने प्राक्कथन में भारत को ‘सोने की चिड़िया’ लिखा है और मैं इस उपमा से सहमत नहीं हूँ। यहाँ मेरा प्रश्न है भारत को ‘सोने का शेर’ क्यों नहीं कहा गया? और दूसरा प्रश्न भारत को सोने की चिड़िया किसने कहा? विचारों से असहमति होना और असहमति प्रकट करना ही वास्तविक सत्य को प्रकट करने की प्रक्रिया होती है। इसलिए अपनी असहमति यहाँ प्रकट की है।
पुस्तक के ‘प्रीफेस’ के बाद एक पृष्ठ पर एक श्लोक और दो इस्लामिक आयतें जैसी लिखी हुई हैं। इस पुस्तक का आधार यहीं से समझ आ जाता है और यही से पता चल जाता है इसका महत्व। वह श्लोक है। ” सर्वे भवन्तु सुखिनः……..ॐ शांतिः शांतिः शांतिः। और उन दोनों आयतों का अर्थ लगभग एक जैसा है। अर्थ वही है कि ‘काफिरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।’
लेखिका चांदनी ने कोई तथाकथित संघी मनोवृति से इस पुस्तक को नहीं लिखा है बल्कि उन्होंने किताब फुतूह-अल-बुल्दान, चचनामा, चीनी यात्री ह्वेनसांग, तबक़ात-ए-अकबरी, पर्शियन यात्री अल बरुनी, जैसे विदेशी संदर्भों का उपयोग करके इस्लामिक लुटेरों और आक्रांताओं मुगलों, तुर्कों खिल्जियों आदि ने भारत के भव्य मंदिरों में कैसी लूटपाट मचाई थी उसका विस्तारपूर्वक संदर्भ सहित विवरण दिया है। पुस्तक में दिया गया वर्णन विवश करता है इन मंदिरों पर ‘रिक्लेम’ करने के लिए। इस पुस्तक के शीर्षक में ‘ओप्प्रेसिव एरा’ शब्दों का विशेष महत्व है। पुस्तक का अध्याय 1 जहाँ सिंध और मुल्तान के विध्वंश का वर्णन करता है वहीं राजा दाहिर के द्वारा किये गए प्रतिकार का वर्णन भी करता है। अध्याय 2 ‘फ्रॉम कुरुक्षेत्र टू सोमनाथ’ में पर्शियन यात्री अल बरुनी के हवाले से दिए गए विवरण हिन्दू पाठकों की शिराओं में बहने वाले रक्त में ज्वार भाटा लायेंगे। अध्याय 3 तथाकथित दिल्ली सल्तनत का वर्णन ‘डार्क ऐज’ रूप में करता है। जिसमें दिल्ली सहित भारत के अन्य भागों में इस्लामिक आक्रांता मोहम्मद ग़ोरी द्वारा मंदिरों में की गयी लूटपाट का वर्णन है। अगले 3 अध्याय तुर्कों, खिल्जियों और तुगलकों द्वारा मंदिरों में की गयी विनाशक लूटपाट का वर्णन करते हैं। पुस्तक के 7वें अध्याय में तैमूर द्वारा की गयी लूटपाट का वर्णन पाठक को तैमूर का असली रूप बताएगा। और करीना कपूर द्वारा बेटे का नाम तैमूर रखने पर उसकी मानसिकता को समझने में मदद करेगा। पुस्तक का आठवां अध्याय सिकंदर शाह मीर जिसे ‘बुत शिकन’ कहा जाता था, के कुकर्मों का काला चिठ्ठा है। अध्याय 9 में लोधी आक्रांताओं द्वारा मंदिरों में की गयी लूटपाट का वर्णन है। वास्तव में इस पुस्तक का एक-एक अध्याय पाठक को झकझोर देता है। हर अध्याय के अंत में लेखिका ने एक निष्कर्ष भी दिया है जो अध्याय के शीर्षक और पुस्तक के शीर्षक को सार्थक करने का कार्य करता है। यह पुस्तक मध्यकालीन युग के भारत को लेकर वामपंथी इतिहासकारों ने जो कोरा झूठ लिखा है उनके मुँह पर कड़ा तमाचा है। वामपंथियों और इस्लामिक इतिहासकारों ने भारत के मध्यकालीन इतिहास अर्थात मुगलों के इतिहास की बहुत प्रशंसा लिखी है। उसी को भारत का गौरवशाली इतिहास बनाकर भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज के सामने प्रस्तुत करके कुत्सित खेल खेला है। जबकि वह कालखंड वास्तव में काला युग अर्थात डार्क ऐज था। चांदनी सेनगुप्ता की यह पुस्तक यही सिद्ध करती है। लेखिका यह बात अपनी कल्पना के आधार पर सिद्ध नहीं करती हैं बल्कि विदेशी साहित्य के स्त्रोतों के आधार पर करती हैं। यह इस पुस्तक की विशेषता है।
ऐसी पुस्तकों का प्रचार व्यापक रूप से होना चाहिए ऐसा लेखकों और प्रकाशकों से आग्रह। यह पुस्तक हिंदी भाषा में प्रकाशित हो तो और अधिक प्रभावशाली होगी और आम भारतीय की समझ में भी विषय लेकर जायेगी ऐसा मेरा मत।
यह पुस्तक निम्न लिंक से प्राप्त की जा सकती है: