विपुल रेगे। रणवीर कपूर और आलिया भट्ट की आगामी फिल्म ‘ब्रम्हास्त्र ‘का प्रोमो रिलीज हो गया है। इस पर जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, वे बड़ी दिलचस्प है। ये प्रतिक्रियाएं वैसी ही हैं, जैसी अक्षय कुमार की ‘सम्राट पृथ्वीराज ‘के प्रोमो को मिली थी। दूसरी ओर पैड मीडिया आदतानुसार इसकी तुलना हॉलीवुड से करने लगा है। भारत के प्राचीन अस्त्रों-शस्त्रों की कहानी पर बनी ब्रम्हास्त्र के लूप होल्स इसके प्रोमो से दिखाई दे गए हैं। 300 करोड़ की लागत से बन रहे इसके तीन भागों का बॉक्स ऑफिस भविष्य संदिग्ध हो चला है।
यदि आप भारत की प्राचीन रहस्यमयी शस्त्रवाली पर फिल्म बना रहे हैं तो आपको बैकग्राउंड भी वैसा ही रचना होगा। दृश्यों में जबरदस्त डिटेलिंग की आवश्यकता होगी। आपको वीएफएक्स भी ऐसे ही बनाने होंगे, जो कथा की विषयवस्तु से मेल खाते हो। जब मैंने ब्रम्हास्त्र का पहला प्रोमो देखा तो मन में कोई रोमांच उत्पन्न नहीं हुआ। ऐसे वीएफएक्स तो हम टीवी पर आने वाले धारावाहिकों में देख लेते हैं। फिल्म के निर्देशक अयान मुखर्जी ने फिल्म की प्रेरणा एवेंजर्स जैसी फिल्मों से ली है।
इसमें सबसे बड़ी कमी भारतीयता की दिखाई देती है। भारतीय संस्कृति यहाँ अनुपस्थित है। अस्त्र धारण करने वाले योद्धा जींस-पैंट में घूम रहे हैं। उनके गुरु का किरदार किसी शैतानी जादूगर की तरह दिखाई दे रहा है। अस्त्रों के रखवाले को तो कितना जप-तप करना पड़ता होगा। वैसा यहाँ कुछ नहीं दिखाया गया है। मौनी राय का किरदार आँखों को चुभ रहा है। उनका किरदार एवेंजर्स की वांडा जैसा दिखाई दे रहा है। उसका थीम कलर भी लाल है, जो वांडा का थीम कलर है।
मुख्य किरदार शिवा एक डीजे है और युवाओं को डिस्को करा रहा है। अगले दृश्य में वह फुदकता हुआ माता के मंदिर जा पहुंचा है। वह हाथ जोड़कर नमन करने के बजाय फ़्लाइंग किस उछाल कर अर्पित कर रहा है। ये वह किरदार है, जिसके काँधे पर ब्रम्हास्त्र की रक्षा का दारोमदार है। ब्रम्हास्त्र के वीएफएक्स दो रेखीय अनुभव होते हैं। ये इफेक्ट्स एक महीन रेखा की भांति हैं, इनमे तीसरा आयाम नहीं दिखाई देता। यही कारण है कि इन इफेक्ट्स को सस्ता कहा जा रहा है।
अयान मुखर्जी ने कभी तमिल अभिनेता सूर्या की 7aum Arivu नहीं देखी होगी। निर्देशक ए.आर.मुरुगोदोस ने इस पीरियड फिल्म में एक बौद्ध संत बौधिधर्म का इतिहास दिखाया था। इसकी कथा ऐतिहासिक तथ्यों के साथ प्रस्तुत की गई थी। यदि अयान फिल्म का वह सेक्शन देख लेते, जिसमे बौधिधर्म भारत से चीन जाते हैं, तो उन्हें अपने इस क्रिएशन पर शर्म आ जाती। 7aum Arivu मात्र अस्सी करोड़ के बजट से बनाई गई थी। उसके दस वर्ष पूर्व के वीएफएक्स अयान की इस आधुनिक फिल्म पर भारी पड़ते है।
अयान मुखर्जी ने फिल्म के तीन भागों के लिए 300 करोड़ खर्च किये हैं। लगभग इतने ही बजट में राजामौली ने आर आर आर बनाई थी। उसके वीएफएक्स की चर्चा हॉलीवुड तक हुई है। इस फिल्म में मुझे डिटेलिंग का भी अभाव दिखाई देता है। इस फिल्म को यदि प्राचीन भारत के दृश्यों के साथ शूट किया गया हो, तो प्रोमो में वे दिखाए जाने चाहिए थे। इस हिसाब से मुखर्जी ने आर्ट डायरेक्शन का पैसा बचा लिया है। ऐसा कहा जा रहा है कि फिल्म में शाहरुख़ खान की विशेष भूमिका है।
हालाँकि शाहरुख़ ऐसी फिल्मों के लिए बिलकुल भी फिट नहीं बैठते। उन्होंने एक बार राजा अशोक का किरदार निभाया था। वह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली थी। कुल मिलाकर मुझे फिल्म में वीएफएक्स, कहानी, महाभारत काल के समय की गड़बड़ी , डिटेलिंग की कमी, विजन की कमी स्पष्ट दिखाई दे रही है। यदि अयान ऐसा सोचते हैं कि केवल स्पेशल इफेक्ट के सहारे वे फिल्म को चला लेंगे, तो उनको ये गलतफहमी दूर कर फिल्म का पेंचवर्क शुरु कर देना चाहिए।
ऐसी फिल्मों को पर्याप्त शोध की आवश्यकता होती है लेकिन वह इस प्रोमो से झलक नहीं रहा है। फिल्म सितंबर में प्रदर्शित होने जा रही है लेकिन अब तक इसे लेकर माहौल नहीं बन पा रहा है। अब भी समय है क्योंकि तीर अभी तरकश में ही पड़ा है, छूटा नहीं है।