अर्चना कुमारी बीजेपी नेता और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि बिहार सरकार तथा हम लोग सुप्रीमकोर्ट जाएंगे और सुप्रीम कोर्ट से न्याय मांगेंगे।
बिहार में सभी वर्ग को आरक्षण दिया गया है , जातीय गणना करा कर नीतीश कुमार ने जो निर्णय लिया इसको लेकर हम सुप्रीम कोर्ट जायेंगे।
इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली प्रदेश सरकार को तगड़ा झटका देते हुये पटना उच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष दलितों, पिछड़े और आदिवासियों के लिए सरकारी नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में दिये जाने वाले आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढाकर 65 फीसदी किए जाने के इसके फैसले को बृहस्पतिवार को रद्द कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया। इन याचिकाओं में नवंबर 2023 में राज्य सरकार द्वारा जाति आधारित गणना के बाद आरक्षण में वृद्धि को लेकर लाए गए कानूनों का विरोध किया गया था।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों में से एक रितिका रानी ने कहा, ‘‘अदालत ने हमारी याचिका पर मार्च में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था । संशोधनों (आरक्षण में वृद्धि को लेकर) ने संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 20 का उल्लंघन किया है। आज अदालत ने हमारी याचिकाएं स्वीकार कर लीं।
’’ दरअसल नीतीश कुमार सरकार ने पिछले साल 21 नवंबर को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में वंचित जातियों के लिए आरक्षण 50 से बढाकर 65 प्रतिशत करने की सरकारी अधिसूचना जारी की थी।
बिहार सरकार द्वारा कराए गए जाति आधारित गणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी में ओबीसी और ईबीसी की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है, जबकि एससी और एसटी की कुल आबादी 21 प्रतिशत से अधिक है।
सरकार का मानना है कि आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायालय की 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन केंद्र द्वारा ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू किये जाने के कारण पहले ही हो चुका है।
इसलिए राज्य सरकार अपने आरक्षण कानूनों में संशोधन लेकर आई, जिसके तहत दलित, आदिवासी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) एवं ईबीसी (आर्थिक रूप से कमजोर) वर्ग के लिए कोटा 50 प्रतिशत से बढाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया।
ईडब्ल्यूएस के लिए कोटा मिलाकर बिहार में आरक्षण की सीमा 75 प्रतिशत हो गई थी। इसके अलावा बिहार सरकार ने केंद्र से यह भी अनुरोध किया था कि राज्य के आरक्षण कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में रखा जाए ताकि इसको लेकर कोई कानूनी अड़चन न उत्पन्न हो सके ।
बिहार सरकार के जाति आधारित गणना कराने और आरक्षण की सीमा को बढाए जाने को कई टिप्पणीकारों ने ‘‘मंडल 2’’ करार दिया था और बाद में कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता में आने पर राष्ट्रव्यापी जाति सर्वक्षण का वादा किया था, जो उस समय बिहार में सत्ता साझा कर रही थी।