विनीत नारायण । आप जानते हैं कि दुनियाँ के सबसे ज्यादा पर्यटक भारत के केरल राज्य में आते हैं।उसकी हरियाली देखकर उसे “ God’s own country” कहते हैं। इसलिये वहाँ की मुख्य सभी सड़कें आजतक दो लेन से आगे नहीं बढ़ीं। क्योंकि केरल की सरकार अपने हरे भरे वृक्ष काटकर हरियाली समाप्त करने को तैयार नहीं है।
पर कल राधारमण मंदिर ( वृंदावन) के श्रीवत्स गोस्वामी जी दिल्ली में एक विवाह में मिले तो बता रहे थे कि “ यूपीबीटीपी के उपद्यक्ष शैलजा कांत मिश्रा के संरक्षण में हो रहे मथुरा के ‘ विकास’ में प्रशासन ने वृंदावन मथुरा मार्ग पर 250 प्राचीन सघन वृक्ष बेदर्दी से आरे से कटवा दिये-उस सड़क को फ़ोर लेन बनाने के लिये।जबकि एनजीटी से केवल बबूल के कुछ झाड़ काटने की परमिशन ली थी।”
ऐसे ही लाड़ली जी के मंदिर बरसाना के आस पास वन विभाग के वृक्ष थे ।वहाँ भी इन्होंने ज़िला अदालत में झूठा शपथ पत्र देकर वन विभाग में चौकीदार की कोठरी की मरम्मत के नाम पर लाल पथ्थर का विशाल होटल बनवा दिया । बरसाना के ब्रजवासियों व संतों ने खूब विरोध किया तो उन पर पुलिस से लाठी चलवा दी।
विरोधाभास देखिये की सेवा कुंज, रामताल, जय कुंड , ब्रह्म वन, गह्वर वन जैसे ब्रज को हरा भरा बनाने के द ब्रज फाउंडेशन के हमारे काम तो एनजीटी को पर्यावरण विरोधी लगे और हमें ‘किसी बड़े निहित स्वार्थ’ के इशारे पर 2018 से ब्रज सजाने से रोक दिया।पर रात दिन हरियाली ख़त्म करके लाल- लाल पथ्थर के भवन बनाने वाले, उद्यान विभाग के उद्यान को नष्ट करके वहाँ दर्जनों भवन बनाने वाले, सड़क किनारे के प्राचीन पेड़ काटकर सड़कें चौड़ी करने वाले , गौशालाओं की चरागाह भूमि पर विशाल भवन बनाने वाले , प्राचीन कुंडों के चारों ओर दीवार बनाकर और इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाकर वर्षा जल की आवक को रोकने वाले और उनमें मल-मूत्र भरने वाले व यमुना तल पर तमाम अवैध निर्माण करने वाले सारे काम एनजीटी को ‘ पर्यावरण की रक्षा वाले’ (ईको फ्रेंडली) लगते हैं।
ब्रज में चारों ओर ये सब विनाश लीला देख-देख कर मैं तो रोज़ खून के आँसू रोता हूँ। जबकि इसमें मेरी कुछ भी व्यक्तिगत हानि नहीं हो रही।क्या आपको पीड़ा नहीं होती?
श्रीवत्स जी बता रहे थे कि “और तो और जो काम मुसलमान शासकों ने एक हज़ार वर्ष में और धर्म निरपेक्ष सरकारों ने नहीं किया वो भी पाँच वर्ष में हो गया-वृंदावन की पुराणों और रसिक साहित्य में व श्रीमद्भागवत में महिमांडित अलग पहचान थी वही समाप्त कर दी गयी।अब वृंदावन का राजस्व रिकॉर्ड में कोई स्वतंत्र अस्तित्व ही नहीं बचा, वो मथुरा नगर का हिस्सा बन गया, क्यों है न ?
इस गति से अगले पाँच सालों में वृंदावन का रहा सहा प्राचीन वैभव भी समाप्त हो जाएगा। हम सब यूँ ही मूक दर्शक बने इस विनाश को देखते रह जाएँगे?