आज राष्ट्रिय आयुर्विज्ञान आयोग के एथिकल कमेटी के अध्यक्ष, NIMHANS बंगलोर के मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष, भारतीय मानसिक रोग विशेषज्ञ एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं AIIMS नयी दिल्ली के मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष ने मीडिया के नाम एक खुला पत्र जारी करते हुए कहा है की लोग पहले से काफी परेशान हैं।
जिस तरह की रिपोर्टिंग मीडिया कर रही है उससे वह लोग जो काम छोड़कर घर बैठने से पहले से ही निराशा में हैं वह और निराशा में चलते चले जा रहे हैं। अधिकांश लोग जो माइल्ड या मॉडरेट कोरोना से ग्रसित हैं, वह इस तरह के विजुअल देखकर सदमे में चले जा रहे हैं। साथ ही जिस तरह का पैनिक उत्पन्न हो रहा है लोग डर के कारण आक्सीजन सिलिंडर और दवाओं की जमाखोरी कर रहे हैं। इस जमाखोरी से और ज्यादा अनुपलब्धता, और इस अनुपलब्धता से, और पैनिक फलस्वरूप, और भारी जमाखोरी हो रही है।
देश एक ऐसे दुष्चक्र में फसता जा रहा है जहां से निकलना मुश्किल हो जायेगा। इस पत्र में यह कहा गया है की मीडिया का न केवल यह अधिकार है बल्की कर्तव्य भी है की वह फैक्ट दिखाये। मृत्यु के आकड़े बताये। बैड की कमी और आक्सीजन की कमी बताये। पर इसके नाम पर जलती हुई चिताओं की तस्वीर हर एक घर के ड्राइंग रुम में भेजना, करुण क्रंदन कर रहे परिजनों को दिन रात दिखाना, दवाओं, आक्सीजन आदि के कमी का स्फेसिफिक डेटा के बदले डरावनी और भयभीत करने वाली बाते दिखाना गलत है। इससे लोगों की मानसिक स्थिती और उपलब्ध व्यवस्था दोनों पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है।
अभी भी 99% मरीज़ ठीक हो रहें हैं। जिसके बारे में चर्चा की आवश्यकता है। उनको भी दिखाये जाने की आवश्यकता है। संक्रमित लोगों के मनोबल को बढाने वाले आंकड़ों को भी रखना जरूरी है। यही बात मैं कई दिनों से कह रहा था।
खैर यह लोग देर आये दुरुस्त आये। ऐसे समय में एक मोरल अथारटी को एकजुट होकर आगे आना, मीडिया के लोगों के रिपोर्टिंग के तरीकों में कुछ बदलाव हेतू सोचने पर जरूर मज़बूर कर सकता है। फिलहाल All is well ही सबसे अच्छा रास्ता है। यह मैं कई दिनों से कह रहा था जिस पर तमाम विशेषज्ञो ने आज प्रकाश डाला है।।
डॉ भुपेन्द्र सिंह , लोक संस्कृति विज्ञानी, लखनऊ