आदित्य जैन. मार्क्सवाद , वामपंथ , माओवाद , नारीवाद , आधुनिक उदारवाद , उत्तर आधुनिकतावाद का छलावा कुछ वैसा ही है , जैसे रेगिस्तान में चमकती रेत पर पानी के तालाब का अहसास होना ; जैसे खरगोश के सिर पर सींग आएंगे , इस लक्ष्य को लेकर चलना, हिंसा, अहिंसा, शौर्य, साहस की भावनाओं को ऐसा गड्ड – मड्ड कर देना कि देश का नागरिक समझ ही ना पाए कि राष्ट्र की चुनौतियों का समाधान चुप रहकर किया जाए या मुखर होकर ! इस मुखरता की अभिव्यक्ति कैसे की जाए ! ये वामपंथी ऐसा वातावरण बनाते हैं कि राष्ट्र के नागरिक आपस में ही लड़ जाए ।
अशांति, असुरक्षा की भावना से भरकर संघर्ष प्रारम्भ कर दें। लेकिन संदीप देव जी की यह वेबसाइट india speaks daily भारत राष्ट्र के साथ हो रहे झूठ , छलावे, धोखे की बड़ी स्पष्टता से व्याख्या करती है। आपको जब भी समय मिले, आप संदीप देव जी के इस अभियान को आगे बढ़ाए। आपकी समझ बढ़ेगी । आपकी समझ की रोशनी कुछ वैसे ही बढ़ जाएगी, जैसे चित्रकूट के जगद्गुरु रामभद्राचार्य के अस्पताल में नि:शुल्क मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाने के बाद मरीज को नई दृष्टि मिल जाती है ।
इसी नई दृष्टि को भारतीय सनातन साहित्य में अनेकांत दृष्टि कहा जाता है। हमारे अनेक भ्रमों का अंत करने वाली दृष्टि अनेकांत दृष्टि है। आज हम सनातन के दो ऐसे मॉडल्स की बात करेंगे, जो किसी भी समस्या का समाधान कर सकते हैं। आइए चर्चा प्रारम्भ करते हैं। आपकी अपने जीवन से क्या अपेक्षा है? आपकी दूसरे लोगों से क्या अपेक्षा है? आप अपने जीवन से क्या चाहते हैं? क्या आप चाहते हैं कि दूसरे लोग अपना आचरण ठीक करें? वे अपने कर्तव्यों का पालन करें? क्या कभी – कभी आप वामपंथ की इन साजिशों से परेशान ही जाते हैं? क्या कभी – कभी आपको लगता है कि राष्ट्रवादी शक्तियां कमजोर हो रही हैं? क्या आप अपनी व्यक्तिगत असफलताओं से भी परेशान हैं? आप सदैव यह निर्धारित नहीं कर सकते कि आपको क्या मिलना चाहिए ! आप यह भी निर्धारित नहीं कर सकते कि सुख मिलना चाहिए या दुख !
लेकिन आप यह जरूर निर्धारित कर सकते हैं कि चाहे अच्छी परिस्थिति हो या बुरी परिस्थिति ; चाहे आपको प्रेम मिले या धोखा ; चाहे आपको सफलता मिले या असफलता, आपको डांट मिले या प्रशंसा, इन सभी में आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी। यदि आप इन सारी अलग-अलग स्थितियों में निरंतर कुछ ना कुछ सीख रहे हैं, अपने व्यक्तित्व का परिष्कार कर रहें हैं और आंतरिक रूप से स्थिर व शांत हैं, टूट नहीं रहे हैं, घबरा नहीं रहे हैं तो निश्चित रूप से आपका भविष्य वर्तमान से कई गुना शक्तिशाली होने वाला है। किसी एक परिस्थिति के विभिन्न आयामों यथा – लाभ, हानि, अवसर, विपदा, दीर्घावधि के परिणाम, त्वरित परिणाम आदि को देख लेने की कला को अनेकांत दृष्टि कहते हैं। अनेकांत दृष्टि में अनेक भ्रमों का अंत भी होता है और अनेक अवसरों की खोज भी होती है।
अनेकांत का सिद्धांत जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने दिया था । देश – काल – परिस्थिति – व्यक्ति क्षमता आदि के आधार पर एक ही प्रश्न के उत्तर अलग – अलग हो सकते हैं और सभी सही हो सकते हैं । उदाहरणार्थ : हिमालय किस दिशा में है ? इस प्रश्न का उत्तर भारतवासी , चीनी नागरिक , जापानी , इंडोनेशाई नागरिक , इराकी इटलीवासी आदि के लिए अलग – अलग होगा । क्योंकि वह इसका उत्तर अपने देश के सापेक्ष देंगे । तो कभी हिमालय उत्तर दिशा में , कभी दक्षिण , कभी पूर्व , कभी पश्चिम में पड़ेगा ।
इसी प्रकार वर्तमान में विपदा लगने वाली परिस्थिति से भी अवसर को निकालकर अपना हित किया जा सकता है । इसका उदाहरण आपको लेख पढ़ते – पढ़ते ही मिल जाएगा । आज सनातनी परेशान है , दुखी है । राष्ट्र की समस्याओं को लेकर बेचैन है । लेकिन इन स्थितियों में अनेक अवसरों की खोज करनी होगी । जैसे श्री संदीप देव जी ने अपने indiaspeaksdaily के प्लेटफॉर्म को देश के विभिन्न राष्ट्रवादियों की शक्ति को एकीकृत करने के लिए किया है । यह संदीप जी की अनेकांत दृष्टि ही है। अब प्रश्न उठता है कि आपके संदीप जी की तरह ज्ञान , संसाधन आदि नहीं है तो आप क्या करें ?
यदि आप यह निश्चित कर लें कि जीवन मेरी तरफ जो कुछ भी भाग्य या कर्मफल के रूप में फेकेंगा , मैं उसे स्वीकार करके उसके नए आयामों की तलाश करूंगा । कुछ देर के लिए ही खिन्न या उदास होऊंगा । उसके उपरांत उन्ही कठिन परिस्थितियों में से कुछ नया सृजित करूंगा तो आपको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता और आपकी सफलता भी पूर्व में प्राप्त की गई अन्य लोगों की सफलता से बड़ी और विशिष्ट होगी । यदि जीवन ईंट फेकें तो घर बना लें । यदि हवाएं तेज़ चलें तो पवन चक्की से ऊर्जा बना लें ।
यदि समुद्री लहरों के उफान में आने की संभावना हो तो आप सी सर्फिंग सीख लें । हर खराब परिस्थिति में कोई न कोई अच्छी संभावना छुपी होती है । आप उसकी तलाश करें और उसे साकार करने में जुट जाए । अब्दुल कलाम फाइटर पायलट नहीं बन पाए , लेकिन मिसाइल मैन बन गए । रजनीकांत बस कंडक्टर से भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार बन गए । यह सब संभव हुआ क्योंकि इन्होंने अवसर तलाशे और अपनी क्षमताओं को बढ़ाकर उन्हे भुनाया । इसे कहते हैं – अनेकांत दृष्टि । पहला मॉडल अनेकांत दृष्टि का है ।
इसी प्रकार मैरी कॉम , अरुणिमा सिन्हा , स्टीफन हाकिंग , नेल्सन मंडेला के भी उदाहरण हैं । मैरी कॉम दो बच्चों की मां होकर भी बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियन बनी। अरुणिमा सिन्हा ऐक्सिडेंट होने के बाद भी एक पैर से एवरेस्ट फतह कर गई। स्टीफन हॉकिंग परालाइज्ड होकर भी महान वैज्ञानिक बने और अपनी पुस्तक ” समय के संक्षिप्त इतिहास ” द्वारा विश्व को रोमांचित कर दिया , ब्लैक होल की भी व्याख्या की। जो व्यक्ति अपने पैरों पर चल नहीं सकता था , उसने विश्व नहीं बल्कि ब्रह्माण्ड का भ्रमण कर लिया ।
नेल्सन मंडेला ने 27 वर्ष जेल में गुजारे। और फिर दक्षिण अफ्रीका के सर्वोच्च नेता बने । ये ऐसी कहानियां हैं , जिनमें जीवन ने जो कुछ भी इन लोगों को दिया , इन्होंने उसी से अपने भाग्य को लिख दिया । और ऐसा लिख दिया कि अब इनके बराबर कोई भी पहुंच नहीं सकता । आखिर यह सब संभव कैसे हुआ ? यह संभव हुआ सनातन के दूसरे मॉडल से , जिसे भारत ही नहीं अपितु विश्व ने स्वीकार किया है । जिसका संबंध शरीर , मन , बुद्धि से उतना नहीं है , जितना कि हमारी आत्मा के बल से है । दूसरा सनातन मॉडल है – आत्म बल ।
असम्भव को सम्भव बनाने वाली शक्ति का नाम है – ” आत्म बल ” । शरीर बल , बुद्धि बल , धन बल , ज्ञान बल आदि बल जिस एक आधार पर टिके रहते हैं , उसे आत्म बल कहा जाता है । वीर सावरकर का बलिदान हो या सुभाष बाबू द्वारा नेशनल आर्मी बनाना हो या फिर अन्ना हज़ारे द्वारा अपने गांव रालेगण सिद्धि को आदर्श गांव बनाना हो ; यह सब आत्म बल से ही संभव है । भारतीय मनीषियों ने , ऋषियों ने , संतों ने आत्म बल की भरपूर चर्चा की है । आत्म बल की प्राप्ति कैसे हो ? जब व्यक्ति स्वयं को किसी बड़े उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समर्पित कर देता है तथा उसके मन – वचन – कर्म में एकरूपता होती है तो आत्म बल स्वमेव ही प्रकट हो जाता है । स्वामी विवेकानंद का शिकागो धर्म सम्मेलन में जो डंका बजा था , वह उनके आत्म बल की ही अभिव्यक्ति थी । लेकिन यदि व्यक्तियों पर तकलीफों का पहाड़ टूट पड़े तो क्या फिर भी आत्म बल से उसका समाधान निकलेगा ?
आपकी तकलीफ जितनी बड़ी होगी , आपके सफलता की गूंज के विश्व विजेता होने की संभावना भी उतनी बड़ी होगी। तो कॉपी उठाइए और कम से कम अपने जीवन की दस तकलीफें , कमियां , दुख , तनाव , चिंता कुछ भी , जो आपको परेशान करती है , लिख डालिए और फिर इन परेशानियों के लिए भगवान का या नियति का शुक्रिया अदा कीजिए । ऐसा करना आपको ना सिर्फ ” अनेकांत दृष्टि ” प्रदान करेगा , बल्कि ” आत्म बल ” भी देगा । अगर आप इतना आज ही कर लेते हैं तो आगे की प्रक्रिया आपके अवचेतन मस्तिष्क में और प्रकृति में प्रवाहमान ऊर्जा में स्वमेव ही घटित हो जाएगी । कोशिश करें , महसूस करें और रूपांतरण की इस सूक्ष्म प्रक्रिया में शामिल हो ।
आज की वैश्विक महामारी ने एक तरफ जहां तबाही मचा रखी है , वहीं दूसरी ओर मानव सभ्यता को चिंतन पर भी विवश किया है । आज योग , अध्यात्म , प्राकृतिक चिकित्सा , आयुर्वेद आदि के प्रोत्साहन तथा बाजार निर्माण की बहुत बड़ी संभावना बनी है । जिससे भारतीय युवाओं के लिए लाखों की संख्या में रोजगार के अवसरों का भी सृजन हो सकता है । प्रत्येक विपदा अपने साथ संभावना छुपाकर लाती है ।
जो इसे पहचान लेते हैं – वे कलाम, मंडेला, मेरी कॉम, स्टीफन हाकिंग, अरुणिमा सिन्हा बनते हैं। और जो विपदाओं से हार जाते हैं, वो कहीं खो जाते हैं अनेकांत दृष्टि और आत्म बल जागृत कीजिए। आत्म बल जागृत करने के लिए साधना करनी होती है और अनेकांत दृष्टि उत्पन्न करने के लिए बहु आयामी समझ विकसित करनी होती है। साधना क्या होती है? कैसे की जाती है? इसकी चर्चा अन्य लेख में करूंगा। जय भारत। जयतु जय जय सनातन योग परंपरा।
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के गोल्ड मेडलिस्ट छात्र हैं । कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में अपने शोध पत्रों का वाचन भी कर चुके हैं विश्व विख्यात संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के युवा आचार्य हैं। भारत सरकार द्वारा इन्हे योग शिक्षक के रूप में भी मान्यता मिली है। भारतीय दर्शन, इतिहास, संस्कृति, साहित्य, कविता, कहानियों तथा विभिन्न पुस्तकों को पढ़ने में इनकी विशेष रुचि है और यूट्यूब में पुस्तकों की समीक्षा भी करते हैं ।)
लेखक आदित्य जैन
सीनियर रिसर्च फेलो
यूजीसी प्रयागराज
7985924709