मूवी रिव्यू : उड़ान
विपुल रेगे। गोपीनाथ ने एक सपना देखा था कि देश का किसान और मध्यमवर्गीय एक दिन हवाई ज़हाज में यात्रा कर सकेंगे। मैसूर के छोटे से गांव में पैदा हुए गोपीनाथ का ये स्वप्न उनकी मुट्ठी से बहुत दूर कहीं आकाश में विचरण कर रहा था। गोपीनाथ ने अपनी मुट्ठी में ही आकाश भर लिया और बरसों पुराना स्वप्न सच कर दिखाया। ये गोपीनाथ और कोई नहीं भारत की पहली सस्ती उड़ान सेवा शुरु करने वाली डेक्कन एयर के मालिक हैं। सन 2020 में गोपीनाथ की कहानी से प्रेरित होकर तमिल भाषा में एक फिल्म बनकर प्रदर्शित हुई, सुरारी पोटरु। अब इसे हिन्दी में डब कर ओटीटी पर उड़ान नाम से प्रदर्शित किया गया है। पिछले दिनों हर्षद मेहता के जीवन पर आधारित एक निस्तेज फिल्म देखने के बाद उड़ान देखना एक सुखद अनुभव है।
उड़ान की कहानी एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के नेदुमारन से शुरु होती है। नेदुमारन देशसेवा के लिए वायुसेना में भर्ती होता है। एक दिन उसकी माँ का फोन आता है कि पिता अंतिम साँस गिन रहे हैं और उसे देखना चाहते हैं। वह हवाई जहाज़ से जल्दी घर पहुंचना चाहता है लेकिन इकॉनामी क्लास की टिकट ख़त्म हो चुकी है और वह बिजनेस क्लास की टिकट नहीं खरीद सकता।
विवशता में नेदुमारन सड़क मार्ग से घर जाता है लेकिन तब तक पिता का निधन हो जाता है। यहाँ से उसके जीवन का नया अध्याय शुरु होता है। अब नेदुमारन का लक्ष्य है कि ऐसी एयरलाइंस की स्थापना हो, जिसके हवाई जहाज में गरीब आदमी सस्ते में उड़ सके। गोपीनाथ की इस सत्य कथा को परदे पर एक महिला निर्देशक सुधा कोंगारा ने जीवंत किया है।
गोपीनाथ से प्रेरक पात्र की भूमिका सुपर सितारे सूर्या ने निभाई है। फिल्म देखते हुए उन संघर्षों की एक झलक मिलती है, जो गोपीनाथ ने लक्ष्य प्राप्ति के लिए किये थे। निर्देशक ने एविएशन इंडस्ट्री को लेकर एक श्रेष्ठ ड्रामा रचा है। फिल्म में दिखाया गया है कि इंडस्ट्री के कुछ लोग ही नहीं चाहते कि नेदुमारन गरीबों के लिए सस्ती विमान सेवा लेकर आए।
फिल्म निर्देशक ने गोपीनाथ के जीवन के विभिन्न अध्यायों पर ऐसी रोचक फिल्म बनाई है, जो दर्शक को भरपूर मनोरंजन देने के साथ बताती है कि आदमी के पास पैसा भले न हो लेकिन उसकी एक मुट्ठी में साहस और दूसरी मुट्ठी में सपने होना चाहिए। सूर्या जिस भी फिल्म में काम करते हैं, डूब जाते हैं। नेदुमारन की भूमिका उन्होंने डूबकर की है।
अपर्णा बालमुरली ने नेदुमारन की पत्नी बोम्मी की भूमिका निभाई है। अपर्णा अत्यंत प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं। इस फिल्म में उनको बहुत हलके मेकअप के साथ दिखाया गया है, जो कहानी की मांग थी। यहाँ निर्देशक का ही कमाल है कि सूर्या और अपर्णा के प्रेम प्रसंग स्वाभाविकता और सजीवता के साथ दिखाए गए हैं।
साधारण मेकअप उनकी केमेस्ट्री के आड़े नहीं आ पाता। परेश रावल बहुत दिनों बाद दिखाई दिए हैं। इस फिल्म में उन्होंने परेश गोस्वामी का किरदार निभाया है। इस नकारात्मक भूमिका को परेश ने सुंदर ढंग से परदे पर प्रस्तुत किया है। कमाल की बात है कि इस फिल्म को ऑस्कर के लिए भी भेजा गया था लेकिन हमेशा की तरह एक उत्कृष्ट प्रस्तुति को पुरस्कार के लायक नहीं समझा गया।
इन दिनों देश में कोरोना का हाहाकार मचा हुआ है। लोगों को ऐसी कहानियों की आवश्यकता है, जो उनमे जीने की उत्कंठा को जागृत कर दे। हालांकि बॉलीवुड ऐसी प्रेरक कहानियां नहीं दिखा पा रहा है। सूर्या की ये फिल्म कोरोना के कारण उपजे तनाव और दुःख को हल्का कर निर्मल आनंद देती है। आप अपने आसपास मरघट के दृश्य और जिंदगी की लड़ाई हार जाने वाली कहानियां ही देख पा रहे हैं।
आज सब दूर से ध्यान हटाकर उड़ान देखिये। ये फिल्म कुछ समय के लिए आपको इस मनहूसियत से दूर ले जा सकती है। सुरारी पोटरु का हिन्दी अर्थ होता है ‘साहस को प्रणाम’। ये फिल्म एक साधारण मनुष्य के साहस को प्रणाम करती है, जिसने छोटे से गांव में रहकर बड़ा सपना देखा और उसे साकार भी किया।