प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस का जवाब देते हुए इंदिरा गांधी के दौर में हुई मिज़ोरम पर भारतीय वायु सेना की बमबारी का जिक्र किया.
विपक्ष ने मणिपुर की हिंसा का हवाला देते हुए मोदी सरकार पर पूर्वोत्तर भारत को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया था जिसके जवाब में प्रधानमंत्री ने मिज़ोरम का नाम लिया.
पूर्वोत्तर भारत में कांग्रेस की नीतियों का ज़िक्र करते हुए पीएम मोदी ने मिज़ोरम में इंडियन एयर फोर्स की बमबारी, साल 1962 में चीनी हमले के समय पूर्वोत्तर के लोगों को बिना मदद के छोड़ने वाले जवाहर लाल नेहरू के रेडियो संदेश जैसी घटनाओं का ज़िक्र किया.
उन्होंने कहा, “पांच मार्च, 1966 को कांग्रेस ने मिज़ोरम के असहाय लोगों पर एयर फोर्स के जरिए हमला किया. मिज़ोरम के लोग आज भी उस भयानक दिन का दुख मनाते हैं. उन्होंने (कांग्रेस ने) कभी वहां के लोगों को सांत्वना देने की कोशिश नहीं की. कांग्रेस ने इस बात को देशवासियों से छुपाया. श्रीमति इंदिरा गांधी उस वक़्त देश की प्रधानमंत्री थीं.”
उन्होंने कहा, “कांग्रेस और उसकी राजनीति पूर्वोत्तर भारत की सभी समस्याओं का मूल कारण है.”
पीएम मोदी ने मिज़ोरम में कांग्रेस के शासन के दिनों का जिक्र करते हुए कहा कि एक वक़्त में वहां सभी संस्थान चरमपंथी संगठनों के आगे नतमस्तक रहा करते थे और सरकारी दफ़्तरों में महात्मा गांधी की तस्वीर लगाने पर पाबंदी थी. उन्होंने ये भी कहा कि मणिपुर के मोइरांग में स्थित ‘म्यूज़ियम ऑफ़ आज़ाद हिंद फौज’ में मौजूद नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर भी बमबारी की गई थी.
पांच मार्च, 1966 को क्या हुआ था
ऐसा माना जाता है कि मिज़ोरम में भारतीय वायु सेना की कार्रवाई देश के भीतर किसी नागरिक इलाके में एयर फोर्स का पहला हवाई हमला था. दरअसल ये कार्रवाई मिज़ोरम के पृथकतावादी संगठन मिज़ो नेशनल फ़्रंट के विरुद्ध थी.
गवर्नमेंट आइज़ोल नॉर्थ कॉलेज की प्रोफ़ेसर डॉक्टर लालज़ारमावी ने एक लेख में बताया है कि “पांच मार्च, 1966 को भारतीय वायु सेना के कई लड़ाकू विमानों ने राज्य में अलग-अलग जगहों पर मिज़ो नेशनल फ्रंट के ठिकानों पर बम बरसाए थे.”
“ये हवाई हमले अगले दिन यानी छह मार्च को भी जारी रहे. आइज़ोल शहर के बड़ा बाज़ार की लगभग सभी दुकानें जल कर ख़ाक हो गई थीं. हालात इतने बिगड़ गए थे कि पूरे आइज़ोल में लंबे समय तक इसका असर महसूस किया जाता रहा.”
इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर जेवी हलुना ने फ़िल्म्स डिविज़न की डॉक्युमेंट्री ‘एमएनएफ द मिज़ो अपराइज़िंग’ के लिए अपने इंटरव्यू में बताया था, “पांच और छह मार्च 1966 को आइज़ोल पर हवाई हमले हुए. दो तरह के लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया गया. एक थे – तूफ़ानी और दूसरे हंटर. आइज़ोल के द्वारपूई, रिपब्लिक, खातला और तुईखुआलतलांग जैसे मोहल्ले जल रहे थे.”
एमएनएफ के मिलिट्री विंग कहे जाने वाली मिज़ो नेशनल आर्मी से जुड़े रहे कर्नल लालरॉनियाना ने इसी डॉक्युमेंट्री में बताया था, “हमारे ख़िलाफ़ जेट फ़ाइटरों का प्रयोग किया गया. भारतीय सैनिकों का व्यवहार भी ठीक नहीं था.”

साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए ‘पद्म श्री’ सम्मान से सम्मानित हो चुकीं मिज़ो लेखिका खॉल कुंगी ने बताया था, “जैसे ही हमने प्रार्थना ख़त्म की, हवाई हमले शुरू हो गए. मैं तो बिल्कुल चौंक गई. ये सब बड़ी तेज़ी से हुआ. हम सब उस स्थान के पास नहीं थे जहाँ बम गिरे इसलिए नुकसान के बारे में नहीं बता सकती. हम सब तो बस इधर-उधर भागने लगे.”
“हमसे कहा गया सब लोग ज़मीन पर लेट जाओ, ऐसा करने से आसमान से पायलट हमें देख नहीं पाएंगे. तो जैसे ही बम गिरने लगते हम लेट जाते. तब बिल्कुल पता नहीं चला कि बम कहाँ-कहाँ गिरे. हम सब डरे हुए थे. हम और कुछ नहीं सोच पा रहे थे.”
खॉल कुंगी अब इस दुनिया में नहीं हैं. साल 2015 में उनका निधन हो गया था.
असम राइफल्स के सूबेदार हेमलाल जायशी तब मिज़ोरम में ही थे. उन्होंने इसी डॉक्युमेंट्री के लिए अपने इंटरव्यू में कहा था, “एयर फोर्स के फायटरों ने आकर बमबारी कर दी. ज़मीन पर मिज़ो नेशनल आर्मी के 8 या 9 लाइट मशीन गन के पॉज़ीशन थे. बम गिरते ही वो सब भाग गए.”
भारत सरकार ने उस वक़्त इन हमलों से इनकार किया था.
फ़िल्म्स डिविज़न की डॉक्युमेंट्री के अनुसार, 9 मार्च 1966 को छपी ख़बर में एक विदेशी पत्रकार के सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था, “एयर फोर्स के विमानों ने सैनिकों और साज़ो-सामान को पैरा ड्रॉप किया है.”

मिज़ोरम के उस वक़्त के हालात की टाइम लाइन
डॉक्टर लालज़ारमावी ने अपने लेख में उस वक़्त के घटनाक्रम का ब्योरा विस्तार से लिखा है-
- मिज़ो हिल्स के इलाके में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां 28 फरवरी, 1966 को शुरू हुईं. मिज़ो नेशनल फ्रंट के सशस्त्र बलों ने आइज़ोल, लुंगलेई, वैरेंग्टे, चॉन्ग्टे, छिमुलांग और अन्य जगहों पर सरकारी प्रतिष्ठानों पर एक साथ धावा बोला. लुंगलेई के तहसील कार्यालय में पहला हमला हुआ.
- एमएनएफ के लगभग एक हज़ार सशस्त्र लड़ाकों ने लुंगलेई में असम राइफल्स की चौकी पर हमला किया. 28 फरवरी और 1 मार्च, 1966 की दरमियानी रात को आइज़ोल के ट्रेज़री ऑफ़िस पर हमला किया गया. एमएनएफ के लड़ाकों ने वहां मौजूद नकदी, हथियार, गोला-बारूद ज़ब्त कर लिए.
- आइज़ोल जाने वाली सड़क पर वैरेंग्टे के पास नाकाबंदी कर दी गई. वैरेंग्टे असम की तरफ़ से मिज़ो हिल्स का पहला गांव है. छोटे पुलों को उड़ा दिया गया और सड़कों पर बड़े पेड़ काट कर गिरा दिए गए थे. पहली मार्च को एमएनएफ ने मिज़ोरम की आज़ादी का एलान कर दिया गया था.
- इस घोषणा पर लालडेंगा और साठ अन्य लोगों ने दस्तखत किए थे. एमएनएफ ने दुनिया भर के देशों से मिज़ोरम की आज़ादी को मान्यता देने की अपील की थी. मिज़ोरम के कई इलाकों पर विद्रोहियों का नियंत्रण स्थापित हो गया था लेकिन आइज़ोल में असम राइफल्स का हेडक्वॉर्टर विद्रोहियों के बार-बार हमले के बावजूद डटा हुआ था.
- मार्च की दूसरी तारीख़ को असम सरकार ने मिज़ो हिल्स ज़िले को डिस्टर्ब एरिया (अशांत क्षेत्र) घोषित कर दिया. हालात संभालने के लिए सेना बुला ली गई. उसी दिन सिलचर से 61, माउंटेन ब्रिगेड की एक टुकड़ी आइज़ोल के लिए रवाना कर दी गई. 3 मार्च से भारतीय सैनिक आइज़ोल में हेलिकॉप्टरों की मदद से उतारे जाने लगे.
- चार मार्च को आइज़ोल के लोगों ने शहर खाली करना शुरू कर दिया था. असम राइफल्स के मुख्यालय के अलावा पूरे शहर पर मिज़ो नेशनल फ्रंट का नियंत्रण था.

बीस साल बाद हो पाई शांति
इस बमबारी ने मिज़ो विद्रोह को उस समय भले ही कुचल दिया हो लेकिन मिज़ोरम में अगले दो दशकों तक अशांति छाई रही.
साल 1986 में नए प्रदेश के गठन के साथ ही मिज़ोरम में अशांति का अंत हुआ.
राजीव गांधी के साथ समझौते के बाद एमएनएफ़ के प्रमुख रहे लालडेंगा ने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
उन्होंने उसी स्थान पर भारतीय झंडा फहराया जहां 20 साल पहले एमएनएफ़ का झंडा फहराया गया था.