Shail Derashri. मन व्याकुल था इस बात को लेकर कि देवस्थानों में आस्था को “money making enterprise” से replace इस स्थर पर करा जा रहा है कि अगले १० वर्षों में देश के प्रत्येक नगर में एक “अक्षरधाम” का निर्माण हो चुका होगा-जिस पर भी हिंदू नाचेगा!
मेरे माता-पिता कल ही सोमनाथ मंदिर गये। मंदिर के कॉम्प्लेक्स में मोबाइल ले जाना तक वर्जित है, क्योंकि अंदर १३०/- की photo बिकती है। मैं रोज़गार के विरुद्ध नहीं, परंतु हमारे तीर्थ स्थल ऐसी योजनाओं का बोझ क्यों उठाएँ।
काशी विश्वनाथ से जो मंदिर विध्वंस का आरम्भ हुआ वो जगन्नाथ पुरी, विंध्याचल, उज्जयिनी महाकाल, पावागढ़ कालिका माता शक्तिपीठ, केदारनाथ, सोमनाथ, गुजरात और दिल्ली की असंख्य मंदिरों तक पहुँच चुका है।
ये लोग मंदिरों का “valuation” तो एक corporate entity की तरह कर देते हैं, परंतु मंदिर की प्राण शक्ति का मोल नहीं जानते। मंदिर का स्वर्ण देख आँखें चौंधिया जाती हैं, परंतु मूर्ति के प्रति आस्था से कभी इनके अश्रु तक नहीं बहते।
चुनावी प्रचार में मंदिर का गर्भगृह एक स्थान मात्र रह गया है। उसकी गरिमा, पवित्रता और शोभा को कैमरे के लिए किये photo-op के तले कुचल दिया गया है।
व्याकुल मन ने कुछ पंक्तियाँ लिखीं है:
“बाबा-बाबा” का नारा लगाया,
एक मनुष्य ने हमें बरगलाया।
तोड़े, क्षति करे महादेव के निवास,
फिर भी हम लगा रहे “उसी” से आस।
हिरण्यकश्यपु, रावण और कंस
भी गये थे अपने मिथ्याभिमान में फँस।
कर्म की गति से कौन है छूटा?
अहंकार है पथ पतन का-मत मानो इस सत्य को झूठा।
तेरा साधु-वेश भी छँटेगा, अहंकार भी मरेगा, आभा मंडल भी घटेगा-
आस्था से किया है विश्वास घात – तेरा सिंहासन भी हटेगा।