महामूर्ख है हिंदू इतना , सागर की गहराई जितना ;
इसी वजह से बहुसंख्यक हो,अन्याय झेलता रहता कितना।
जातिवाद में फंसा हुआ है , इसी वजह से पिटा हुआ है ;
निहित स्वार्थ में अंधा होकर , सही राह से हटा हुआ है ।
उसका नेता भ्रष्ट है कितना ?इसको तो वो समझ न पाता ;
जातिवाद के जाल में फंस कर , अपना धर्म भूल वो जाता।
हिंदू सदा कमाता रहता , माया में फंस कर रह जाता;
सदा बढ़ाता रहता सोना , लोहे को वो भूल ही जाता ।
गुंडा जब भी मौका पाता , उसको सदा लूटता रहता ;
धन दौलत इज्जत को लेता , आये दिन धमकाये रहता ।
गुंडे सब हथियारबंद हैं , इसीलिए वे हावी रहते ;
पुलिस भी उन से डर कर रहती,पुलिस कोभी वे मारा करते
अपनी रक्षा तुझे ही करनी , अपने अंदर ताकत भर लो ;
जात पांत को एकदम छोड़ो , सारे हिंदू एका कर लो ।
त्यागो सारा मोह स्वर्ण से , घर में अपने लोहा भर लो ;
बिन हथियार कभी न रहना, फिर तुम चाहे जो भी कर लो।
गर्व से तेरा सर हो ऊँचा , छप्पन इंच का सीना होवे ;
तेरी ताकत देख देखकर , गली का गुंडा हरदम रोवे ।
कल तक तुझे डराते थे जो , अपनी दुम को दबायेंगे ;
धर्मस्थल हो तेरे सुरक्षित , छिने हुये मिल जायेंगे ।
तजो मूर्खता अपनी सारी , तुम अपना पौरुष दिखलाओ ;
राष्ट्र धर्म की रक्षा कर के , सारे गुंडे मार भगाओ ।
कुछ भी नहीं असंभव इसमें , तुम बस सच्चा नेता पाओ ;
मुश्किल से जो तुम्हें मिला है , हर कीमत पर उसे जिताओ।
एक झंडे के नीचे आकर , जातिवाद तुम जड़ से मिटाओ;
जितना खोया तूने अब तक , अब सारा वो वापस पाओ ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचयिता :बृजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”