आज पिताजी द्वारा गांव के मंदिर में सत्यनारायण पूजा का आयोजन किया गया। सत्यनारायण पूजा के जरिए एक पंक्ति में मानव मुक्ति का संदेश छिपा है कि ‘एक मात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी जो भी दिख रहा है सब माया है!’ अद्वैतवेदांती आदि शंकराचार्य ने भी ‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या जीवोब्रमैहव नापरह!’ के रूप में इसे ही उद्घाटित किया है।
कथा है कि भगवान विष्णु से नारद जी ने पूछा था कि कलियुग में संक्षिप्त विधि से मानवों का कल्याण कैसे होगा? इसे ही भगवान विष्णु ने अति संक्षेप में- ‘सत्यनारायण’ के रूप में उद्घाटित किया अर्थात् ‘एक मात्र नारायण ही सत्य हैं-‘ जैसे ब्रह्म वाक्य के जरिए मानव को आत्मज्ञान का संदेश दिया।
कर्मकांड के रूप में आमजन को समझाने के लिए स्कंद पुराण में यही सत्यनारायण पूजा के रूप में उद्घाटित हुआ। नैमिषारण्य में सर्वप्रथम शुकदेव जी ने धर्म सभा में सभी को यह कथा सुनाई। और उसके बाद से ही सत्यनारायण व्रत कथा प्रचलित हुआ। जो लोग पुराण को नहीं मानते और सत्यनारायण पूजा को मिथ्या बताते हैं, वह भी किसी न किसी रूप में ‘वेद ही सत्य है’ का उदघोष करते रहते हैं।
तात्पर्य सनातन ने किसी न किसी रूप में उस एक मात्र परम तत्व की सत्यता को ही मानव को समझाना चाहा है, चाहे वो वेदों/उपनिषदों के ब्रह्म वाक्य के रूप में हों अथवा पुराणों के लोक धर्म के रूप में।