अमृतेश्वर नामेदं लिङ्गमानंदकानने।
एतल्लिङ्गस्य संस्पर्शाद् मृतत्वंलभेद्ध्रुवम्।।
भावार्थ:-
आनंद वन में यह लिङ्ग अमृतेश्वर नाम से है।
इस लिङ्ग को स्पर्श करने से अवश्य ही अमृतत्व प्राप्त होता है।।
अमृतेश्वर संस्पर्शान्मृताजीवन्ति तत्क्षणात्।
अमृतत्वं भजंतेऽत्र जीवंतःस्पर्शमात्रतः।।
भावार्थ:-
अमृतेश्वर के स्पर्श मात्र से मृत प्राणि पुनः जीवित हो जाते हैं।
पर यदि जीवित प्राणि स्पर्श करले तो उसे अमरत्व प्राप्त होता है।।
अमृतेशसमंलिङ्मं नास्ति क्वापि महीतले।
तल्लिङ्गं शंभुनातिष्ये कृतं गुप्तं प्रयत्नतः।।
भावार्थ:-
अमृतेश्वर के समान कोई भी लिङ्ग भूतल पर नहीं है।
इसी से भगवान शंकर ने उसे कलिकाल में बड़े प्रयत्न से गुप्त कर रखा है।।
अमृतेश्वर नामापियेकाश्यां परिगृह्णते।
नतेषामुपसर्गोत्थं भयं क्वापि भविष्यति।।
भावार्थ:-
जो लोग काशी में अमृतेश्वर का नाम भी लेते हैं।
उनको कभी उपसर्ग जनित कोई भी भय नहीं होने पावेगा।।