केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर यह बताया है कि जेहादियों और माओवादियों ने भारत के खिलाफ समझौता कर लिया है। जेटली ने कहा कि आज-कल मुख्य रूप से दो वैचारिक वर्ग हैं जो विद्रोह और आतंकवादी संगठनों से जुड़े हैं। इनमें से जिहादी और अलगाववादी है। इनमें से अधिकांश को तो हमारे पड़ोसी देश ही प्रशिक्षित करते हैं और वित्तीय सहयोग भी देते हैं। इन लोगों का मुख्य उद्देश्य भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करना है। ये लोग देश के अन्य हिस्सों के अलावा मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर में सक्रिय हैं। कुछ स्थानीय लड़के उनके साथ मिल गए हैं। लेकिन दूसरा समूह माओइस्ट विद्रोहियों का है। वैसे तो ये लोग मध्य भारत के कुछ आदिवासी जिलों में फैले हैं लेकिन इनके समर्थक पूरे देश के विभिन्न इलाकों में फैले हैं। ये दोनों समूह ,वह चाहे आंतकवादियों के हों या माओवादियों के हों, संवैधानिक रूप से चुनी सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं।
असल में ये लोग लोकतंत्र से घृणा करते हैं। ये लोग हिंसा के सहारे राजनीतिक बदलाव चाहने वालों में से हैं। वे वैसी व्यवस्था चाहते हैं जिसमें न लोकतंत्र हो, न ही अभिव्यक्ति की आजादी हो, कोई चुनाव न हो, समानता न हो न ही जीवन और स्वतंत्रता की गारंटी हो। इस सबके उलट उनलोगों का विश्वास है कि सत्ता बंदूक की गोली से मिलती है। इसलिए वे लोग बड़े स्तर पर हिंसा फैलाने, निर्दोषों की हत्या करने, विकास कार्य को आघात पहुंचाने में संलिप्त रहते हैं । जिहादी और माओइस्ट की तुलना करते हुए जेटली ने कहा कि जहां जेहादी सिर्फ एक मजहब में विश्वास करता है, वही माओवादी किसी धर्म में विश्वास नहीं करते। अब कुछ दिनों से दोनों के बीच स्पष्ट समन्वय देखने को मिल रहा है।
जेटली ने कहा कि जम्मू-कश्मीर से पूरे कश्मीरी पंडितों को अपना प्रांत छोड़कर देश के अन्य जगहों पर जाकर शरण लेना पड़ा। पूरे प्रदेश से कश्मीरी पंडितों को खत्म कर दिया गया। साल 2000 में हुए चितिसपुरा नरसंहार के बाद तो पूरा सिख समुदाय को ही वहां से उजड़कर जाना पड़ गया। आज घाटी में सिर्फ मुसलिम समुदाय के लोग ही बचे हैं। कश्मीर में अधिकांश निर्दोष लोगों की हत्या कर वहां के वातावरण को बिगाड़ा जा रहा है। जो आतंकवादी कश्मीरियों की हत्या कर रहे हैं वे खुद भी कश्मीरी ही है लेकिन पाकिस्तान के बहकावे में आकर वे इस प्रकार की हरकत कर रहे हैं। आतंकवादियों ने यहां की सारी सुंदरता को बर्बाद कर दिया है।
माओवादी उस इलाके में विकास के विरोधी हैं जहां उनकी मौजूदगी अधिक है। अपनी विचारधारा से सहमत नहीं होने वाले आदिवासियों की भी वे हत्या कर देते हैं। वे सरकारी भवनों को नष्ट कर देते हैं, सुरक्षा कर्मचारियों की हत्या कर देते हैं तथा वहां के गरीब लोगों से समानांतर कर संग्रह करते हैं। इतने जुल्म होने के बावजूद आपने कितनी बार देखा है किसी मानव अधिकार संगठनों को पीड़ित बेसहाय नागरिकों तथा उनकी रक्षा करने के लिए भेजने वाले देशभक्त सुरक्षा कर्मचारियों पर दस्तावेज बनाने रिपोर्ट जारी करने तथा उनके बारे में कुछ कहते हुए?
संयुक्त राष्ट्र की जिस मानवाधिकार रिपोर्ट पर विपक्ष आज सरकार को घेरने में जुटा है और जिसके सहारे पाकिस्तान को भारत की छवि धूमिल करने का अवसल मिल गया है। सवाल उठता है कि क्या कभी किसी ने उन पीड़ितों के मानवाधिकार के बारे में चर्चा की है जिसका कि कोई दोष नहीं है। पीड़ित नागरिकों में से अधिकांश को तो ये भी नहीं पता कि उसे किसलिए दंडित किया गया है। उसे मारा क्यों जा रहा है? ऐसे में सवाल उठता है कि आतंकवादियों और माओवादियों के लिए मानव अधिकार होता है लेकिन निर्दोषों का कोई मानव अधिकार नहीं होता।
जेटली ने कहा कि मानव अधिकार हमारे संविधान के साथ ही हमारी संसदीय लोकतंत्र की आत्मा है। हमारा संविधान देश के हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और जीवन जैसे सामान्य मानव अधिकार सुनिश्चित करता है। इसके अलावा भी कई ऐसे अधिकार हैं जो हमारे देश के नागरिकों को स्वतः प्राप्त है, जिसमें कटौती करना हमारे संविधान के अधिकार में भी नहीं है। इसके इतर हमारे देश कई ऐसे प्राकृतिक अधिकार प्राप्त हैं जो कहीं अन्य जगहों पर मिलना भी दुर्लभ है।
URL: The Jehadis and the Maoist Of late a visible coordination is becoming more and more apparent
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