विपुल रेगे। ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म नहीं बल्कि एक नंगा तार है, जिसे छूने से ‘जागृति’ आ सकती है। शायद ही इससे पहले किसी फिल्मकार ने ऐसा साहस दिखाया होगा। ये एक साहसिक प्रयास है। इस फिल्म में कोई स्टार नहीं है। फिल्म की कहानी ही स्टार वेल्यू रखती है। यदि केरल से लव जिहाद द्वारा लापता हो चुकी लड़कियों की पीड़ा का चित्र खींचा जाए तो वह ‘द केरल स्टोरी’ जैसा ही हृदय विदारक होगा। पहले दिन पहला शो देखकर निकले दर्शक प्रतिक्रिया देने की स्थिति में नहीं थे। वे उन पीड़ाओं को नहीं भूल पा रहे थे, जो केरल की निर्दोष लड़कियों ने सही थी।
निर्देशक सुदीप्तो सेन की ‘द केरल स्टोरी’ कमज़ोर मन वाले दर्शकों के लिए नहीं है। इसे देखने के लिए आपको बहुत हिम्मत की आवश्यकता है। बहुत कम फ़िल्में होती हैं, जो मनोरंजन के उद्देश्य से नहीं बनाई जाती, लेकिन बॉक्स ऑफिस उनका सम्मान करता है। ‘द केरल स्टोरी’ एक ऐसी ही फिल्म है। ये फिल्म तीन लड़कियों की कहानी कहती है। ये लड़कियां एक हॉस्टल में नर्सिंग की पढ़ाई करने जाती है। हॉस्टल में सुनियोजित ढंग से लड़कियों को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया जाता है। पहले वे लव जिहाद का शिकार बनती हैं और फिर धर्म परिवर्तन कर लेती हैं।
आतंकवादी संगठनों से जुड़े लोग इनमे से एक को भारत से सीरिया ले जाते हैं। सीरिया में ये लड़की बहुत बुरे हालातों का सामना करती है। सुदीप्तो सेन की ये फिल्म विशेष रुप से महिला दर्शकों को देखनी चाहिए। लव जिहाद से पीड़ित एक लड़की अपने घर वापस आती है और अपने वामपंथी पिता से पूछती है कि ‘आपने मुझे अपने धर्म और संस्कृति के बारे में एजुकेट क्यों नहीं किया।’ इस कैरेक्टर के माध्यम से निर्देशक ने आज की आम समस्या पर चोट की है। आज अस्सी प्रतिशत अभिभावक अपने बच्चों को आधुनिक बनाने के लिए सारे पापड़ बेल लेते हैं लेकिन धर्म और संस्कृति के प्रति उन्हें शिक्षित नहीं करते।
जब आप फिल्म के दृश्य देखेंगे तो महसूस करेंगे कि ये सब आपके इर्दगिर्द भी घटने लगा है। फिल्म में बहुत से दृश्य देख आप जान सकते हैं कि लव जिहाद किस ढंग से कार्य करता है। फिल्म में हिन्दू लड़कियों को उनके भगवान के बारे में पूछा जाता है और सिद्ध करने की कोशिश की जाती है कि उनका भगवान् कमज़ोर है। बारीकी से दिखाया गया है कि हिन्दू लड़कियों को जाल में फंसाने का तंत्र कैसे काम करता है। ढाई घंटे की ये फिल्म बोर नहीं करती। फिल्म में मनोरंजन के नाम पर कुछ नहीं है फिर भी ये एंगेज करके रखती है।
दर्शक शनैः शनैः शालिनी उन्नीकृष्णन की पीड़ा को अपने मन में महसूस करने लगता है। दर्शक जानना चाहता है कि इतने अनाचार के बाद शालिनी का परिणाम क्या होता है। फिल्म के अंत में एक परिवार को स्क्रीन पर दिखाया जाता है। ये उस लड़की का परिवार है, जिसने अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। इस लड़की ने आईएस के साथ जाने से इनकार किया था और बदले में उसके न्यूड फोटोग्राफ्स सार्वजनिक कर दिए गए थे। शालिनी का किरदार अदा शर्मा ने अभिनीत किया है। अदा ही इस फिल्म की हीरो हैं और उन्होंने अपने मजबूत कंधों पर फिल्म को सहजता से ढोया है।
लीड कैरेक्टर होने के नाते सबसे अधिक दारोमदार अदा पर ही था और उन्होंने निर्देशक को निराश नहीं किया है। ‘द केरल स्टोरी’ वह अनकही कहानी है, जो इन दिनों भारत के हर क्षेत्र में कही जा रही है। देखते ही देखते नाज़ों से पाली गई बेटी या तो सीरिया में मिलती है या सूटकेस में। हिन्दुओं के इस दर्द को आवाज़ नहीं मिली थी। उस दर्द की आवाज़ बने हैं निदेशक सुदीप्तो सेन और निर्माता विपुल अमृतलाल शाह। सेल्युलाइड का पर्दा अभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ माध्यम होता है। आज इस माध्यम से उन लड़कियों का दुःख सामने आया है, जिन्हे सरकारों ने नैपथ्य में दबाए रखा था।
बच्चों, गर्भवती महिलाओं और कमज़ोर मन वालों को ये फिल्म नहीं देखनी चाहिए। फिल्म में अत्याधिक रक्तपात दिखाया गया है और परिस्थितियां भी बेहद दर्दनाक दिखाई गई है। हाँ घर की बड़ी होती बच्चियों को ये फिल्म देखना बहुत आवश्यक है। ये फिल्म देखकर वे बच्चियां लव जिहाद के सत्य को समझेंगी। इसके बाद जब वे घर से बाहर के जंगल में जाएंगी तो उनको पता होगा कि रक्षक कौन है और भक्षक कौन। ‘द केरल स्टोरी’ को पहले दिन उम्मीद से बढ़कर रिस्पॉन्स मिला है। दर्शकों ने इसे सराहा है और समीक्षाओं में भी ये फिल्म निश्चित ही प्रशंसा पाएगी।