भाग-1
पृथ्वी ने अपने गर्भ में आश्चर्यजनक रहस्य समेट रखे हैं। इसकी देह पर अनेक संस्कृतियां जन्मी और समय के प्रवाह में खो गई। आज भी ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है कि नदियों के किनारे जन्मी कितनी प्राचीन संस्कृतियों को पृथ्वी के क्रोध ने सदा के लिए विलुप्त कर दिया। गुजरात में द्वारिका मिलने के बाद पश्चिम ने कम से कम एयह बोला बंद कर दिया कि कृष्ण एक इमेजनरी मायथोलॉजिकल हीरो है। भारत में द्वारिका के अलावा एक और शहर खोजा गया जो, समुद्र में डूब चुका है। इस शहर की खोज अचानक हुई थी और जब तकनीकी ढंग से काम शुरू किया गया तो पता चला कि अरब सागर एक ‘हड्डप्पन शैली’ के सुंदर प्राचीन नगर को अपनी गहराई में छुपाए बैठा है।
कहानी सन 2002 में शुरू हुई। चेन्नई के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओशन टेक्नोलॉजी (एनआईओटी) के सदस्य गुजरात स्थित खम्बात की खाड़ी में तटवर्ती जल का निरीक्षण करने के लिए समुद्र में जाते हैं। वे बोट से तीस किमी के क्षेत्र में ‘मरीन पॉल्यूशन’ जांचते हैं। इस दौरान सदस्य समुद्र तल के ‘सोनार फोटोग्राफ’ लेते हैं। एक माह बाद जब उन फोटोग्राफ्स का गहन निरीक्षण किया जाता है तो पता चलता है खम्बात की खाड़ी में मात्र चालीस मीटर नीचे एक बहुत बड़ा शहर डूबा हुआ है। खोजकर्ताओं को यकीन नहीं होता और वे कई बार जाँच करते हैं और पाते हैं कि वहां नीचे डूबी संरचनाएं प्राकृतिक नहीं है बल्कि किसी बहुत ही बुद्धिमान सभ्यता द्वारा बनाई गई है। वे तो पॉल्यूशन जांचने चले थे और हाथ लग गया एक विशाल प्राचीन नगर।
इसके बाद गोताखोरों को पानी में भेजने का काम शुरू हुआ। अरब सागर के तल को खरोंचा गया तो जो सामने आया, वह महान आश्चर्य से कम नहीं था। ये शहर एक प्राचीन नदी के किनारे पर लगभग नौ किमी के क्षेत्र में बसाया गया था। गोताखोरों ने दिन-रात का फर्क मिटा दिया और जो अपने साथ ला सकते थे, ऊपर लेकर आए। इस अंडरवाटर अभियान में कुल 2000 कलाकृतियां समुद्र तल से निकाली गई। यहाँ गोताखोरों को नदी के पास चिनाई किये हुए पक्के बांध होने के प्रमाण भी मिले। पक्का बांध बनाने वाली सभ्यता यानी नगर संयोजन की उन्हें गहरी समझ थी। वे जानते थे नदी का पानी कैसे सुरक्षित ढंग से रोका जा सकता है।
इस प्राचीन शहर को ‘लॉस्ट सिटी ऑफ़ कैम्बे ‘ का नाम दिया गया। सबसे हैरान करने वाला तथ्य ये रहा कि इस शहर का ढांचा मोहन-जोदाड़ो और हड़प्पा से मेल खाता है। यहाँ एक स्वीमिंग पूल मिला है जो ‘ग्रेट बॉथ ऑफ़ मोहन-जोदाड़ो’ जैसा ही है। एक 200 मीटर लंबा चबूतरा मिला है, जो शायद अनाज रखने के काम में लिया जाता था। ड्रेनेज सिस्टम और मिट्टी की सड़कों के निशान भी पाए गए हैं। स्पष्ट है कि यहाँ कोई ऐसी सभ्यता निवास कर रही थी, जिसका कोई लिंक मोहनजो-दारो और हड्डपा से होने की संभावनाएं बलवती हो रही हैं।
कलाकृतियों में पॉलिश किये हुए स्टोन टूल्स प्राप्त हुए हैं। भारतीय शैली के गहने और मूर्तियां, टूटे हुए मिट्टी के बर्तन, कुछ कीमती पत्थर और हाथी दांत की बनी नक़्क़ाशीदार वस्तुएं भी मिली है। किसी मनुष्य की ‘कशुरेका (vertebra) मिली है, जो फॉसिल में परिवर्तित हो चुकी है। इसके अलावा एक मानव का जबड़ा और एक दांत भी पाया गया है। हालांकि अब भी एनआईओटी टीम ये नहीं पता लगा सकी थी कि ये सभ्यता आखिर कितने साल पुरानी हो सकती है। इस बात का पता लगाने में एक लकड़ी के टुकड़े ने मदद की। लम्बे समय अंतराल में जीवाश्म बन चुका लकड़ी का ये टुकड़ा लखनऊ स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ़ पालियोबॉटनी और नेशनल जिओफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद भेजा गया।
बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ने इसकी डेट 5500 बीसी बताई लेकिन नेशनल जिओफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बताया कि ये लकड़ी का टुकड़ा 7500 बीसी का है। अब तक का ज्ञात मानव इतिहास बताता है कि शहरी बस्तियां बसाने की संस्कृति 3500 बीसी के आसपास सम्पूर्ण विश्व में शुरू हो चुकी थी। खम्बात की खाड़ी में डूबा शहर इन संस्कृतियों से भी प्राचीन हो सकता है क्योंकि इसकी कार्बन डेटिंग और भी पूर्व की है। इस शहर को लेकर विशेषज्ञ मानते हैं कि इस खोज से भारतीय इतिहास के वर्तमान प्रतिमान पूरी तरह बदल जाएंगे। पश्चिम को ये पता चलेगा कि भारतीय ‘कॉपीकैट’ नहीं है, बल्कि हमने ही विश्व को शहर बसाना सिखाया है।
इस लकड़ी के टुकड़े को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं हुए। कुछ का कहना था कि लकड़ी का टुकड़ा ही एकमात्र प्रमाण नहीं माना जा सकता। इस बात को सिद्ध करने के लिए और भी प्रमाण चाहिए होंगे। तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने इस खोज को सार्वजानिक करवाया। बाकायदा प्रेसवार्ता लेकर बताया गया कि भारत की प्राचीनता पुनः सिद्ध हुई है। हालांकि विशेषज्ञ आज भी नहीं जानते कि वे लोग कौन थे और उनका मोहनजो-दारो के साथ क्या लिंक हो सकता है। जब ये खोज सार्वजानिक हुई तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने ढिठाई दिखाते हुए हमारा दावा ठुकरा दिया क्योंकि खोज के कुछ सवालों के जवाब अब भी हमारे पास नहीं थे। अगले भाग में जानेंगे कि क्या हमारे पुराणों में इस नगर का कोई विवरण मिलता है ? जिस क्षेत्र में ये शहर मिला है उसे महिसागर संगम तीर्थ के नाम से जाना जाता है। यानी हज़ारों वर्षों से उस क्षेत्र का धार्मिक महत्व रहा है। इस खोज को पूरा करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को ठोस जवाब देना चाहिए। एक शानदार खोज, जिसे द्वारिका की खोज जितना महत्व क्यों नहीं दिया जा रहा। क्या अब भी ‘लॉस्ट सिटी ऑफ़ कैम्बे’ का कोई सूत्र पकड़ से बाहर है? जानेंगे आगे के भागों में।
Wow
बहुत अच्छी बात है,,
हमारी संस्कृति और सभ्यता ,विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है,
That’s we were Jagat Gure