विपुल रेगे। मैट्रिक्स रेजरेक्शन के प्रदर्शित होने से पूर्व हर कोई ये प्रश्न कर रहा था कि पूर्व के तीन भागों को निर्देशित करने वाली लाना वेचास्की और लिली वेचास्की की जोड़ी चौथे भाग में टूट क्यों गई। निर्देशक जोड़ी के अलग होने का स्पष्ट बुरा प्रभाव इसके चौथे भाग पर पड़ा है। मैट्रिक्स के विश्वव्यापी दर्शकों ने कल्पना नहीं की होगी कि मैट्रिक्स का चौथा भाग इतना मनोरंजनहीन और लचर सिद्ध होगा।
सन 1999 में मैट्रिक्स का पहला भाग प्रदर्शित हुआ और इसने संपूर्ण विश्व में सफलता का परचम लहरा दिया था। सफलता के रथ पर सवार मैट्रिक्स तीन भागों तक अविजित रही। इससे पूर्व की साइंस फिक्शन फिल्मों में ऐसा अनूठा कथानक कभी नहीं देखा गया था। दर्शक इसके कथानक से बहुत रोमांचित थे। मशीनों और मानवों के युद्ध के इस सागा ने बॉक्स ऑफिस पर आय के नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए थे।
तीसरे भाग में कहानी को जहाँ समाप्त किया गया था, वहां से एक नई कथा का सूत्रपात होने की संभावनाएं नगण्य थी। निओ पिछले भाग में ‘आर्किटेक्ट’ की ओर से एक भयंकर वायरस से लड़ते हुए मारा गया था। करार के अनुसार आर्किटेक्ट ने आभासी विश्व से उन मनुष्यों को स्वतंत्र कर दिया था, जो वास्तविक विश्व में जीना चाहते थे। पृथ्वी के गर्भ में स्थित आखिरी मानवों की बस्ती ‘ज़ायान’ को भी सुरक्षित बचा लिया गया था।
अब चौथे भाग में बताया गया कि आर्किटेक्ट ने उनके साथ धोखा किया। निओ और ट्रिनिटी पुनः आभासी विश्व में पहुंचा दिए गए हैं और वे आम नागरिकों का जीवन जी रहे हैं। वास्तव में चौथा भाग शुरु से ही तार्किकता से परे दिखाई दिया। आर्किटेक्ट स्वयं एक मशीन है। उसके अंदर मनुष्यों की भावनाएं नहीं हैं इसलिए वह मानवों को धोखा नहीं दे सकता। निर्देशक ने इस बार आर्किटेक्ट को भावनाओं से ग्रसित बताया है।
प्रियंका चोपड़ा का किरदार मात्र दस मिनिट फिल्म में दिखाई देता है और ज़रा भी प्रभावित नहीं कर पाता।उनका ऐसा करना एक ‘ग्लिच’ की भांति महसूसता है। ‘ग्लिच’ एक त्रुटि का नाम है, जो किसी वीडियो गेम या कम्प्यूटर प्रोग्राम में प्रोगामर की गलती से रह जाती है। सो मैट्रिक्स का चौथा भाग ‘ग्लिच’ से भरा हुआ है। निर्देशिका लाना वेचास्की मैट्रिक्स के ब्रांड से अधिक प्रभावित दिखाई दी। वे पूरी तरह कियानु रीव्ज़ और केरी-एन-मॉस की स्टार वेल्यू पर निर्भर थी। वे कुछ नया नहीं दिखा सकी।
नियो और ट्रिनिटी के अपने शरीर को वापस पाने की मशीनी प्रक्रिया भी बहुत हास्यापद और अतार्किक लगती है। जिस मैट्रिक्स के तीन भाग देख दर्शक रोमांच के शिखर पर सवार हुए थे, उसका चौथा भाग इतना निराशाजनक रहा है कि इसका पांचवा भाग आने की संभावनाओं पर लगभग ब्रेक लग चुका है। मैट्रिक्स की कल्पना करना ही बहुत दूभर कार्य था। उस कथानक की कल्पना करना और उस पर तीन उच्च स्तरीय फ़िल्में बना लेना एक महान कार्य था।
वास्तव में मैट्रिक्स की कथा का अंत वही हो चुका था। मार्वल की फिल्मों की तरह इसे रिबूट नहीं किया जा सकता है। ये एक जटिल स्क्रिप्ट थी और बहुत अनोखी स्क्रिप्ट थी। दुर्भाग्यपूर्ण अंत द मैट्रिक्स।