देश के प्रभावशाली लोगों को राहत देने में भारतीय न्याय व्यवस्था की कोई मिसाल संपूर्ण विश्व में कहीं नहीं मिलती। भारत में यदि आपके पास पैसा नहीं है, राजनीतिक आश्रय नहीं है तो न्याय व्यवस्था आपको कुचलकर रख देगी। मनोरंजन उद्योग के प्रति केवल सरकारें ही नहीं बल्कि न्याय व्यवस्था भी अत्याधिक उदारवादी है। एके 47 नामक घातक हथियार किसी आम आदमी के घर से मिला होता तो उसके परिजन इस बात की उम्मीद ही छोड़ देते कि वह कभी जेल से बाहर आ सकेगा।
लेकिन संजय दत्त जेल से रिहा हो जाते हैं। स्वतंत्रता के बाद से कितने नेताओं को जेल हुई, ये सवाल इतना घिस चुका है कि इसे अब छोड़ देने का मन होता है। बॉलीवुड का कथित सुपरस्टार सलमान खान फिर से चर्चाओं में है। उन्होंने अपने चमत्कारी आभामंडल की सहायता से गरीबों पर कार चढाने का मामला तो रफा-दफा कर दिया है। बस राजस्थान के पूज्यनीय काले हिरण शिकार का प्रकरण दबाना बाकी है। इसके बाद गैरकानूनी कार्यों का उनका अकाउंट लगभग खाली हो जाएगा।
ताज़ा मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने सलमान खान को फिर से राहत दे दी है। सुपरस्टार ने कहा कि कोविड-19 के चलते मुंबई से जोधपुर आना उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। भोला-भाला उच्च न्यायालय उनकी दलील मान लेता है और व्यक्तिगत रुप से जोधपुर न्यायालय में पेश होने से राहत प्रदान कर देता है। शनिवार को सुपरस्टार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा न्यायालय में पेश होंगे। आपको भारत की बचकानी न्याय व्यवस्था पर ऐसे हैरान होना चाहिए कि सुपर स्टार अपनी दो फिल्मों ‘अंतिम’ और ‘टाइगर-3’ की शूटिंग के लिए मार्च में दुबई जाएंगे।
यानी सुपरस्टार अपने ही देश में मुंबई से जोधपुर स्वास्थ्य कारणों से नहीं आना चाहते लेकिन फिल्मों की शूटिंग के लिए विदेश जाने में उन्हें कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं आएगी? क्या न्यायालय के सरकारी वकील सलमान को छूट देने का विरोध करते हुए ये दलील नहीं रख सकते थे कि जोधपुर आने से मना करने वाला शूटिंग के लिए दुबई कैसे जा रहा है? उसे न्यायालय देश से बाहर जाने की इज़ाज़त कैसे दे देता है? 1 और 2 अक्टूबर 1998 के बीच घटी उस आधी रात को आज बीस साल से भी अधिक समय हो चुका है लेकिन बिश्नोई समाज का क्रोध शांत नहीं हुआ है।
आज वे सलमान खान से पहले से भी अधिक घृणा करते हैं। इस केस की टाइमलाइन पर गौर करे तो समझ में आता है कि बिश्नोई समाज ने बीस वर्षों में इस प्रकरण को युद्ध समझ कर लड़ा है। लेकिन धन और प्रभाव के बल पर सुपरस्टार को न्यायालय से राहत पर राहत मिलती रही। सलमान खान का ये प्रकरण भारत की न्याय व्यवस्था की बेशर्मी और लाचारी का अनुमप उदाहरण है। कृष्ण मृग को विश्नोई समाज की महिलाएं अपनी संतान की तरह पालती हैं।
एक घमंडी अभिनेता उनके धैर्य को बीस साल से चुनौती दे रहा है। वे जानते हैं कि उनके सामने धन-बल की शक्ति है लेकिन वे हार नहीं मानेंगे। जब न्यायिक व्यवस्था इस तरह से अपराधियों की वर्षों तक सहायता करती है तो प्रश्न उठता है कि आखिर वे न्याय के नाम पर क्या दे रहे हैं। मार्च में सुपर स्टार अपनी फिल्म ‘टाइगर-3’ की शूटिंग के लिए दुबई निकल जाएगा और न्यायालय नहीं पूछेगा कि स्वास्थ्य कारणों के चलते हम उसे विशेष जाने की आज्ञा क्यों दे।
नई सरकार के आने के बाद आशा थी कि विशिष्ट व्यक्तियों के लिए इस विशेष न्याय व्यवस्था पर सदैव के लिए रोक लगेगी लेकिन हम देख रहे हैं कि 2014 के बाद से तो सेलेब्रेटीज और अधिक निरकुंश और मनमाने हो गए हैं। बॉलीवुड में ड्रग्स काण्ड इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। न ही सरकार और न ही न्यायिक व्यवस्था बॉलीवुड में बैठे ड्रग्स के खिलाड़ियों का कुछ बिगाड़ सकी। अर्जुन रामपाल, सलमान खान, भारती-हर्ष को जेल नहीं भेजा जा सकता। उन्हें तो थाने में थानेदार की कुर्सी के सामने भी नहीं बैठाया जा सकता। मनोरंजन जगत के सामने सरकार और न्यायालय घुटने टेके बैठे रहते हैं। यहीं भारत का कड़वा सत्य है।