डॉ. आलम। औरत को वेश्या बनाने वाली घिनौना रिवाज “हलाला” एक रिवायत के रूप मे कुरान के नाजिल होने के वक्त से प्रचलन मे है। बड़े से बड़े इस्लाम के विद्वान् भी तलाक शुदा पत्नी को वापिस रखने से पहले उसका “हलाला” करवाने को जायज ठहराते हैं! जानते हैं क्यों? क्योंकि “हलाला” का फरमान किसी मौलाना-मौलवी ने नहीं खुद अल्लाह ने अपनी किताब कुरान सूरा 2 की आयत 230 मे दिया है। कुरान और अल्लाह के किसी भी बहियात से बहियात फरमान को भी कोई मुसलमान गलत नहीं बोल सकता। पढ़िये अल्लाह क्या कहते हैं “यदि किसी ने पत्नी को तलाक दे दिया, तो उस स्त्री को रखना जायज नहीं होगा जब तक वह स्त्री किसी दूसरे व्यक्ति से सहवास न कर ले फिर वह व्यक्ति भी उसे तलाक दे दे तो फिर उन दोनों के लिए एक दूसरे की तरफ पलट आने में कोई दोष नहीं होगा”।
चूंकि अल्लाह की नजर में औरतें खेती की तरह जोतने की चीज (कुरान सूरा 2 आयत 223)है, वह पैदायशी अपराधी होती है, इसलिए कुरान में पति की जगह हमेशा पत्नी को ही सजा देने का नियम है। यद्यपि तलाक देने वाला हमेशा मर्द ही होता है, लेकिन सजा सिर्फ औरत को ही मिलती है। किसी भी तरह से “हलाला” का उद्देश्य तलाक़शुदा पति-पत्नी में सुलह कराना नहीं, बल्कि तलाक दी गयी औरत को दंडित करने के लिए उससे वेश्यावृत्ति कराना है। किसी गैर मर्द के साथ सो कर आयी औरत कभी दुबारा परिवार मे सर ऊंचा का खड़ी नहीं हो पाएगी और यही इस दंड का मकसद भी है।
अब ऐसे मे अगर कोई मुसलमान कहता है वह “हलाला” जैसी घटिया घिनौनी महिला-बिरोधी रिवाज के खिलाफ है तो उससे पूछे भई यह तो कुरान का फरमान है, तो क्या तुम कुरान और अल्लाह को भी घटिया-घिनौना मानते? अगर “हलाला” घिनौना है तो फिर कुरान और अल्लाह की सोच भी घिनौना साबित होती हैं।
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