भारत की गर्माती राजनीति, विश्वकप क्रिकेट और मुंबई की विध्वंसक बारिश के बीच एक खबर अचानक सोशल मीडिया की सुर्खियां बन गई। एक एस्ट्रॉइड (क्षुद्र ग्रह) 9 सितंबर को पृथ्वी के करीब से निकलने वाला है। इसे लेकर नेट पर अफवाहों ने डेरा जमाया हुआ है। चिंता न करें, ये एस्ट्रॉइड फिलहाल तो पृथ्वी से टकराने नहीं जा रहा। ‘2006 QV89’ के पृथ्वी से टकराने के चांस ‘सात हज़ार में से एक’ है। आगामी नौ सितंबर को ये क्षुद्रग्रह पृथ्वी से लगभग 7 लाख किमी दूर से गुजरेगा। यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने ये डाटा जारी करते हुए बताया है कि ये क्षुद्रग्रह उनकी ‘रिस्क लिस्ट’ में शामिल भी नहीं किया गया है। मैंने राहत की साँस ली और गर्म चाय की चुस्कियां लेते हुए इस एस्ट्रॉइड के बारे में और जानकारी पढ़ने लगा।
जब मैंने सौरमंडल में इसके और पृथ्वी के ‘पाथ’ का जनरेटेड वीडियो देखा तो कलेजा मुंह को आ गया। लगभग सौ फ़ीट लम्बा ये चट्टानी ग्रह दरअसल हमारे कितने करीब से गुजरने वाला है। अंतरिक्ष में सात लाख किमी की दूरी कुछ मायने नहीं रखती। सोचिये यही क्षुद्रग्रह उस प्राचीन समय में आया होता, जब हम अंतरिक्षीय रूप से निरक्षर थे। ब्रम्हांड में हमारे सौर मंडल की ओर आ रहे खतरों से सर्वथा अनजान। आज विश्व तकनीक के उस स्तर पर है कि ऐसे खतरों की पूर्व सूचना, एस्ट्रॉइड का आकार, व्यवहार और उसके पाथ के बारे में हमें पहले से पता होता है।आपमें से कितने लोग जानते हैं कि क्षुद्रग्रह घेरा या एस्ट्रॉइड बेल्ट हमारे सौर मण्डल का एक क्षेत्र है जो मंगल ग्रह और बृहस्पति ग्रह की कक्षाओं के बीच स्थित है। इस बेल्ट में लाखों एस्ट्रॉइड सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। इन लाखों में से एक भी निकलकर पृथ्वी के पाथ पर आ जाए तो उस तबाही की कल्पना भी सिरहन पैदा कर देती है। इन लाखों दैत्यों में कुछ तो दस किमी से भी अधिक आकार के हैं। तकनीक के शिखर पर होते हुए भी हम ईश्वर की दया पर जीवित हैं। इस विषय पर दो हॉलीवुड की साइंस फिक्शन देखने लायक है। ‘deep impect’ और armageddon में बारीकी से दिखाया गया है कि ऐसे खतरे पृथ्वी पर किस कदर विनाश ला सकते हैं।
आपमें से कितने लोग जानते हैं कि क्षुद्रग्रह घेरा या एस्ट्रॉइड बेल्ट हमारे सौर मण्डल का एक क्षेत्र है जो मंगल ग्रह और बृहस्पति ग्रह की कक्षाओं के बीच स्थित है। इस बेल्ट में लाखों एस्ट्रॉइड सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। इन लाखों में से एक भी निकलकर पृथ्वी के पाथ पर आ जाए तो उस तबाही की कल्पना भी सिरहन पैदा कर देती है। इन लाखों दैत्यों में कुछ तो दस किमी से भी अधिक आकार के हैं। तकनीक के शिखर पर होते हुए भी हम ईश्वर की दया पर जीवित हैं। इस विषय पर दो हॉलीवुड की साइंस फिक्शन देखने लायक है। ‘deep impect’ और armageddon में बारीकी से दिखाया गया है कि ऐसे खतरे पृथ्वी पर किस कदर विनाश ला सकते हैं।
13 अप्रैल 2029 को एक और दैत्य पृथ्वी की ओर बढ़ेगा। ‘99942 अपोफीस’ 370 मीटर का विशाल क्षुद्र ग्रह है। इसके हमसे टकराने की सम्भावना लगभग तीन प्रतिशत है। इस अनंत ब्रम्हांड में हमारा सौर मंडल अनगिनत खतरों का सामना करता है। रोज पृथ्वी पर हज़ारों छोटे-बड़े उल्का पिंड गिरते रहते हैं। पृथ्वी के गुरुत्व के सम्पर्क में आते ही वे जल जाते हैं। मेरा सदा से मानना है कि पृथ्वी एक चैतन्य ग्रह है। वह जिस इंटेलीजेंस से प्रकृति का संचालन करती है, उसी बुद्धिमता से वह अपना बचाव करने में भी सक्षम है। इस लेख के साथ सलंग्न वीडियो को देखेंगे तो जानेंगे कि अनजाने खतरों से भरे अंतरिक्ष में हमारा विज्ञान हमें सिर्फ खतरे से आगाह कर सकता है। आपको इस ब्रम्हांड के संचालनकर्ता का आभार व्यक्त करना चाहिए कि ऐसे भयंकर खतरों के बावजूद हमारा सौर मंडल न केवल बचा हुआ है बल्कि पृथ्वी निर्बाध अपनी परिक्रमा कर रही है।