वाह मीलॉड! पहले समलैंगिकता अपराध नहीं और अब इतनी आजादी कि जानवर की प्रत्येक नागरिक किसी से भी यौन संबंध बना सकते हैं! न पति की पत्नी के प्रति कोई जिम्मेदारी न पत्नी की पति के प्रति। न लोक लाज की चिंता। न ही कानून के दायरे में आते हुए अदालत से सजा का भय। अब तक के कानून के मुताबिक अगर कोई पुरुष किसी शादीशुदा स्त्री से उसकी सहमति के साथ भी शारीरिक संबंध बनाता था तो महिला के पति की शिकायत पर पुरुष को अडल्ट्री कानून के तहत गुनहगार माना जाता था। ऐसा करने पर पुरुष को पांच साल कैद की सजा और जुर्माना या दोनो हो सकता था। सुप्रीम अदालत ने अब शादीशुदा औरत को यह आजादी दे दी कि वह किसी भी पुरुष से संबंध बना सकती है!
माई लॉड आइडिया ऑफ इंडिया के जनक पंडित नेहरु ने माना था कि समलैंगिकता पश्चिम की देन है यह भारतीय संस्कृति नहीं लेकिन हाल में ही इसे खारिज करते हुए आपने आईडिया ऑफ इंडिया की नई परिभाषा गढ़ दी। समलैंगिता का सुख अभी आम भारतीयों ने लिया भी नहीं था कि भारत की सुप्रीम अदालत ने दुनिया में आधुनिक होने की नई मिसाल पेश कर दी। अब शादी को जीवन भर का ही नहीं सात जन्मों का रिश्ता मानने की प्रगाढ़ता में विश्वास करने वाले भारतीय को इतनी आजादी कि वो पति-पत्नी के अलावा किसी से यौन संबंध बना सकते हैं। सुप्रीम अदालत ने भारतीयों को यह अधिकार दे दिया कि उन्हें शादी बंधन के बावजूद उसे सेक्सुअल च्वाइस से वंचित नहीं किया जा सकता।
उच्चतम न्यायालय पर तो कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं की जा सकती। उन्होंने फैसला दे दिया है कि विवाहेतर संबंध अपराध नहीं है। आप पति-पत्नी के अलावा किसी से यौन संबंध बना सकते हैं। शादी के बावजूद किसी को सेक्सुअल च्वाइस से वंचित नहीं किया जा सकता। वाह! पहले समलैंगिकता अपराध नहीं और अब यह, मिसाल दूसरे देशों का! उच्चतम न्यायालय यह तो बताए कि भारतीय सभ्यता में परिवार परंपरा के सुदृढ आधार को ध्वस्त करने के बाद भारत की दशा क्या होगी?
कोई कानून या संविधान की धारा देश की सदियों से स्थापित महान परंपरा और जीवन दर्शन को पूरी तरह नकार सकता है? दुनिया में कोई एक उदाहरण उच्चतम न्यायालय बता दे। भारत की मूल अंतःशक्ति परिवार है और वह आपसी विश्वास व सहकार पर टिका है। इन दोनों फैसलों के विरूद्ध पुनर्विचार याचिका दायर हो। इन फैसलों को न्यायालय द्वारा ही निरस्त कराने का उद्यम करना होगा। by Awhdesh Kumar
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अब एडेल्ट्री अपराध नहीं है। भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा का अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि व्याभिचार संबंधित आईपीसी की धारा 497 संविधान के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि हम आईपीसी की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक करार देते हैं। ये कानून समानता के अधिकार का उल्लंधन करने वाला है। सुप्रीम अदालत ने साफ किया कि व्याभिचार कहिए या अडल्ट्री यह तालाक का आधार तो हो सकता है लेकिन अपराध नहीं है।
158 साल पुराना क़ानून असंवैधानिक
दिलचस्प देखिए इटली में रहने वाले एनआरआई जोसेफ़ शाइन ने दिसंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। उनकी अपील थी कि आईपीसी की धारा 497 के तहत बने अडल्ट्री क़ानून में पुरुष और महिला दोनों को ही बराबर सज़ा दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 1860 में बने इस 158 साल पुराने क़ानून को असंवैधानिक करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि ये क़ानून मनमाना है और समानता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है। सुप्रीम अदालत ने स्त्री पुरुष के बीच समानता के तमाम बंधन को खत्म कर दिया। उन्हें सैक्स की पूरी आजादी दे दी। उस बंधन से मुक्ति जो अब तक परिवार की परंपरा को बचाए हुए था।
अप्रवासी भारतीय कि याचिका के जवाब में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि ऐसा करने के लिए अडल्ट्री क़ानून में बदलाव करने पर क़ानून हल्का हो जाएगा और समाज पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। पूरे मामले पर गंभीरता से चर्चा करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सजा के प्रावधान को खत्म करते हुए अडल्ट्री को ही अपराध की सीमा से बाहर कर दिया। मतलब अब शादी का अब कोई बंधन नहीं सैक्स की पूरी आजादी स्त्री और पुरुष हर किसी को हर वक्त।
देश की आत्मा को हिलाने वाला आदेश
कमाल है! जिस देश में सवा तीन करोड़ से ज्यादा मामले को निपटाने और आम आदमी के लिए इंसाफ सुनिश्चित किया जाना महत्वपूर्ण होना चाहिए उस देश में इस बात की चिंता ज्यादा हो रही है कि दो लोगों के बीच उच्छृंखल सैक्स में व्यवधान तो नहीं हो रहा! सुप्रीम अदालत के इस फैसले को समीक्षा की जरुरत है कि आखिर हम किस दिशा में जा रहे हैं? इस पर चिंतन की जरुरत है कि भारतीय सभ्यता में परिवार परंपरा के सुदृढ आधार को ध्वस्त करने के बाद भारत की दशा क्या होगी? दुनिया की कोई भी अदालत अपनी महान परंपरा से इतर नहीं जाती है।
कोई कानून या संविधान की धारा देश की सदियों से स्थापित महान परंपरा और जीवन दर्शन को पूरी तरह नकार नहीं सकता ? दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं! दलीलों की अदालत ने ऐसा क्या महसूस किया कि भारतीय शादी जैसे मजबूत और पवित्र बंधन में व्यभिचार के मायने नहीं रह गए ! भारत की सुप्रीम अदालत ने भी कई बार अपने आदेश में राम और कृष्ण की उच्च आदर्शों की व्याख्या की है। परिवार भारत की मूल आत्मा में है और वह आपसी विश्वास और भरोसे पर टिका है।
परिवार में व्यभिचार की आजादी भारत के उस मूल को खत्म कर देने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट के हालिए आदेश ने भारत के उस बुनियादी चरित्र को हिला दिया है। इन दोनों फैसलों के विरूद्ध पुनर्विचार याचिका दायर किए जाने की जरुरत है। भारतीय संविधान में अदालत ने उपर संसद है और उस संसद को भारत की आम जनता तैयार करती है। देश की आत्मा को हिलाने वाला कोई भी आदेश लोकतांत्रिक परमपराओं को चोटिल करता है
कोर्ट ने क्या कहा…
* अडल्ट्री तलाक का आधार बना रहेगा
* वक्त ये कहने का है कि पति महिला का स्वामी नहीं है।
* पवित्रता सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं है और ये समान रुप से पितयों पर भी लागू होती है।
* स्त्री के देह पर उसका अपना हक है। इससे समझौता नहीं किया जा सकता है।
* जो प्रावधान किसी व्यक्ति के सम्मान और महिलाओं के समानता के अधिकार को प्रभावित करता है, वो संविधान के लिए सही नहीं है
URL: Supreme Court cancelled the adultery law, saying it is not a crime
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