राहुल सिंह राठौड़। हिन्दुओं के हजारों साल के दुर्भाग्य के कारण को समझना है तो एकबार “द जयपुर डॉयलॉग” यूट्यूब चैनल पर संजय दीक्षित जी द्वारा डॉ चन्द्रप्रकाश द्विवेदी जी का साक्षात्कार देखिए जिसमें वे “सम्राट पृथ्वीराज” फिल्म पर दर्शकों के विरोध का स्पष्टीकरण दे रहे हैं। यह पूरा साक्षात्कार दो भागों में है। आपलोगों से प्रार्थना है कि उनदोनों को एकबार अवश्य देखें।
हम सभी लोकप्रिय धारावाहिक “चाणक्य” के सर्वेसर्वा डॉ चन्द्रप्रकाश द्विवेदी जी का हृदय से बहुत सम्मान करते हैं। हमलोग यही समझते थें कि दक्षिणपंथी यह विद्वान जहाँ होगा वहाँ प्रतिदिन भारत की वास्तविक इतिहास बोध से अपने आसपास के लोगों को शिक्षित और संस्कारित कर रहा होगा। पर इनके साक्षात्कार को देखकर और इनके उथले इतिहास बोध को देखकर मन ग्लानि से भर गया।
इनका थॉट प्रोसेस वही है जो लेफ्टिस्ट इंटलेक्चुअल का होता है। उन्हें जहाँ मन करता है अपनी सुविधानुसार कहीं अंग्रेज इतिहासकारों को कोट करके पृथ्वीराज चौहान को क्षत्रिय नहीं मानते हैं और उनके भारतीय नागरिकता पर ही प्रश्न खड़े कर देते हैं, तो कहीं रासो काव्यों के आधार पर संयोगिता प्रसंग को लेते हुए और पूरी फिल्म में शौर्य को गौण करके श्रृंगार को अधिक महत्व दे देते हैं।
उनका हिन्दी की तुलना में उर्दू प्रेम भयाक्रांत करनेवाला है। वे अपने उर्दू प्रेम को न्यायसंगत ठहराने के लिए तुलसीदास तक को घसीट लाते हैं कि तुलसी बाबा भी खूब उर्दू शब्दों का उपयोग किया करते थें। वे हिन्दू देवियों के श्रृंगार में प्रयोग किया जानेवाला “नथनी” को अरब संस्कृति का प्रभाव मानते हैं अर्थात हमारे देवी-देवता के वर्तमान स्वरूप भी इस्लामिक संस्कृति से प्रभावित है। वे इसे सर्व-समावेशी गतिमान संस्कृति का जीवंत उदाहरण मानते हैं।
उनके रिसर्च के प्राथमिक स्रोत वही हैं जो वामपंथियों के हैं, फिर निष्कर्ष वही निकलेगा जो वामपंथियों का निकलता है। इनके पूरे साक्षात्कार को देखने के बाद मैं यह कह रहा हूँ कि ये बेचारे कोई साजिश के तहत ऐसा नहीं कर रहे हैं। यह ऐसा हृदय से ही सोचते हैं, क्योंकि इनका प्राथमिक स्रोत ही दूषित है। पिछले चार वर्षों में हिन्दुत्व के विमर्श में जो व्यापक परिवर्तन आया है, ये उससे पूरी तरह अनभिज्ञ नजर आ रहे थें। ये नये प्रयोगों से स्वयं को अपडेट ही नहीं कर पाये हैं।
गलती इनकी नहीं है, गलती हमलोगों की है कि हमलोग इन्हें राजीव मल्होत्रा, कर्नाड एल्स्ट आदि के समकक्ष रख रहे थें। इनके दोनों वीडियो को देखिए और हमारे साथ रोइये कि दक्षिणपंथ के नैरेटिव को बौद्धिक वर्ग में स्थापित करने का दायित्व जिन व्यक्तियों पर था वे स्वयं कितने भ्रमित हैं और उन वीडियो के कमेंट्स पढ़कर अपना सिर धुनिये कि अभी भी हमारे युवा उनसे कठोर प्रश्न करने के स्थान पर उनका जयकारा लगाने में ही अपनी सारी ऊर्जा व्यर्थ कर रहे हैं।