अर्चना कुमारी। आखिरकार दलित-मुस्लिम एकता के ठेकदार मुरादाबाद दंगों की रिपोर्ट पर चुप क्यों हैं। जय भीम जय मीम वाले को क्यों लकवा मार गया, करीब 43 साल बाद मुरादाबाद में दंगे को लेकर सच सामने आ गया और सब ठेकेदारों के मुंह सिले हुए हैं। खुलासा किया गया है कि दंगे का तानाबाना शमीम अहमद ने रचा था। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि शहर में दंगा करवाने की साजिश कई बार की गई।
लंबे समय तक किसी प्रकार की हिंसा नहीं हुई तो नमाज का दिन चुना गया और सारा शहर जल उठा। अब योगी आदित्यनाथ सरकार ने दंगों की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया है तो भयावह सच्चाई सामने आ रही। 43 साल पहले ईद की नमाज के बाद भड़के दंगों का असली गुनहगार मुस्लिम लीग का डॉ. शमीम खान था। उसने चुनावों में हार मिलने पर मुस्लिमों की सहानुभूति पाने के लिए दंगे भड़काने की साजिश रची। इसी साल मंगलवार 8 अगस्त को विधानसभा में मुरादाबाद में हुए दंगों की रिपोर्ट पेश की गई ,जो अब तक छुपा कर रखी गई थी और मुसलमानों का साजिश सामने ना आ जाए इसलिए इसे ठंडे बस्ती में डाल दिया गया था।
रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम लीग के डॉ. शमीम अहमद खान ने वाल्मीकि, सिख और पंजाबी समाज को फंसाने के लिए 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय अफवाह फैलाई, जिससे ईदगाह समेत 20 स्थानों पर दंगा भड़क गया।स्पष्ट था कि इसका मकसद राजनीतिक लाभ हासिल करना था। तत्कालीन राज्य सरकार ने इसकी जांच का जिम्मा पहले डीएम बीडी अग्रवाल को सौंपा, हालांकि बाद में न्यायिक आयोग का गठन किया गया, जिसने तीन साल बाद अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी थी। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण देखिए कभी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया। प्रदेश में किसी भी दल की सरकार इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी क्योंकि इससे मुस्लिम वोट बैक खिसक जाने का खतरा था।
अलग-अलग सरकारों में इसे 14 बार मंत्रिमंडल के सामने प्रस्तुत कर सदन में पेश करने की मंजूरी मांगी गई, जिसे खारिज कर दिया गया। बताया जाता है की रिपोर्ट गायब भी कर दिया गया लेकिन प्रयासों के बाद इसे रिकॉर्ड रूम से खोजा जा सका। इस वजह से भी इसे पेश करने में विलंब होता गया। ज्ञात हो कि मुरादाबाद में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से 84 लोग मारे गए थे और 112 लोग घायल हुए थे। इनमें से 55 लोग भगदड़ , जबकि 29 चोटें लगने से मरे थे। मरने वालों में 14 हिंदू शामिल थे। चार सरकारी अधिकारी एवं पुलिसकर्मी भी मारे गए।करीब 49 घायल हुए थे।
तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में दंगे की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया था।मंगलवार को सदन में दंगे की रिपोर्ट पेश हुई तो पीड़ित परिवार को आस जागी है कि उन्हें अब इंसाफ मिलेगा। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 में शहर को दंगे की आग में झोंकने वाले डॉ. शमीम अहमद ने पहले भी हिंदू मुस्लिमों के बीच विवाद कराने की हर कोशिश की थी। विवाद की शुरुआत कब हुई जब मई 1980 में शहर के एक मोहल्ले से अनुसूचित जाति की 18 वर्षीय एक लड़की मकान की सफाई करने गई थी।आरोपियों ने युवती के साथ दुष्कर्म किया,इस दौरान उसे रियाज और उसके साथी अगवा कर ले गए थे। आरोपियों ने युवती के साथ दुष्कर्म किया था।
इस मामले में रियाज और उसके साथियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। डॉ. शमीम इस घटना से लाभ उठाने के लिए आगे आ गया । उसने अपराधियों का पक्ष लिया । इस बीच लड़की के जीवन को खतरा हो गया था। लड़की के परिवार और संबंधियों ने उसका रिश्ता तय कर दिया था। 27 जुलाई 1980 को शादी संपन्न हुई थी। बारात के समय आरोपी और उसके समर्थकों ने हमला कर दिया था।आरोपियों ने कहा था कि रोजा इफ्तार के समय तेज आवाज में बैंड और ढोल बजा रहे हैं। जबकि बारात रोजा इफ्तार से पहले ही निकल चुकी थी। इस घटना के दौरान कई बराती घायल हुए थे। दूल्हे को भी अगवा करने का प्रयास किया गया था।
इंदिरा चौक वाल्मीकि बस्ती में हमला किया गया था।इस मामले में पुलिस ने केस दर्ज किया गया था। उस वक्त भी डॉ. शमीम ने मुस्लिम लोगों को उकसाने का प्रयास किया । इसके बाद 5-6 जून 1980 की रात भूरे अली और कुछ अन्य लोगों के साथ लूटपाट की घटना हुई थी। उस वक्त भूरे अली दूध लेकर शहर आ रहे थे।घटनास्थल पर ही जावेद समेत तीन लोग पकड़े गए थे।
थाने ले जाते समय जावेद की मौत हो गई थी। डॉ.शमीम ने इस घटना का भी लाभ उठाने का प्रयास किया था। उसने अभियान चलाया था कि पुलिस की पिटाई से जावेद की मौत हुई है।प्रशासन की सख्ती के बावजूद जावेद के शव जुलूस निकाला था और इस मामले की मजिस्ट्रटी जांच कराई थी। वह मुस्लिम समाज को ये दिखाना चाहता था कि वह उनका हित लेता है। इस बीच वाल्मीकि समाज के लोगों ने सफाई बंद कर दी थी। डॉ. शमीम वाल्मीकि समाज से बदला लेकर मुस्लिमों को खुश करना चाहता था।
उसने सोचा कि इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। उसने वाल्मीकि समाज के लोगों के जानवरों को जहर दे दिया था। जिससे उनकी मौत हो गई थी। इस मामले में पुलिस ने डॉ. शमीम पर कार्रवाई की थी। ईद पर गड़बड़ी करने के लिए उसने एक दिन पहले ही वाल्मीकि समाज के लोगों के खिलाफ दो केस दर्ज करा दिए थे।एक केस मुगलपुरा और दूसरा केस कटघर में दर्ज किया गया था। जिसमें आरोप लगाया था कि उन्हें धमकी दी गई कि उन्हें देख लेंगे। जांच में दोनों केस झूठे पाए गए थे।
इन केसों का मकसद था कि ईदगाह पर गड़बड़ी हो तो उसका आरोप वाल्मीकि समाज पर लगाया सके।हर घटना में डॉ. शमीम और उसके समर्थकों का नाम सामने आ रहा था। उनका रुख और व्यवहार कठोर होता जा रहा था लेकिन इस घटना में उनका दांव उलटा पड़ रहा था। इस लिए डॉ. शमीम और उसके समर्थकों ने गडबड़ी के लिए ऐसा वक्त चुना था जब 70 हजार लोग एक साथ धार्मिक सभा में मौजूद थे।दंगे के गुनहगार शहर के फैजगंज निवासी डॉ. शमीम अहमद डॉक्टर से विधायक बने थे।
सियासत में आने से पहले वह जिला अस्पताल में बतौर डॉक्टर अपनी सेवाएं थी। वर्ष 1989 में नगर सीट से विधायक बने थे। यह चुनाव उन्होंने जनता दल के टिकट पर लड़ा था।गाजियाबाद से लोकसभा का भी चुनाव लड़ा बाद में उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा देते हुए राष्ट्रीय एकीकरण परिषद के उपाध्यक्ष बनाया गया था। डेढ़ साल बाद दोबारा चुनाव हुआ तो उन्हें टिकट नहीं मिला था। डॉ. शमीम ने 1985 में मुस्लिम लीग के टिकट पर गाजियाबाद से लोकसभा का भी चुनाव लड़ा था। वर्ष 1999 में डॉ. शमीम का निधन हो गया ।