राजस्थान के अलवर जिले में गो तस्करी के आरोप में पुलिस कस्टडी में रकबर की हुई मौत हो या ओडिशा के रायडागा जिले में पशु प्रेमी पर्यटकों पर गो तस्करों द्वारा जानलेवा हमला, ये दोनों घटनाएं साबित करती हैं कि देश में गो तस्करी और मीट माफिया की समस्या कितनी भयावह हो गई है। भीड़ के शिकार गो तस्करों की घटना को तो मीडिया पूरी तरजीह देता है लेकिन मीट और गो तस्करों द्वारा पशु प्रेमी और गो रक्षकों पर किए गए हमले को कहीं जगह तक नहीं मिलती। एकतरफा रिपोर्टिंग और सुनवाई की वजह से मीट और गो तस्करों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वे अपने बचाव में फायरिंग करने से भी बाज नहीं आते।
हाल ही में फर्रुखाबाद के नुरपूर गांव में जब गो समर्थकों ने गो वंशों से लदे एक वाहन को रोकने का प्रयास किया तो वाहन में सवार बदमाशों ने ग्रामीणों पर फायरिंग कर दी। कर्नाटक से लेकर यूपी और ओड़िशा तक में मीट तस्करों का पशु प्रेमियों के साथ ही आम लोगों पर हमला बढ़ता जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि गो रक्षा के नाम पर काननू हाथ में लेने वालों की निंदा की जानी चाहिए लेकिन जहां गो तस्कर और मीट माफिया पशु प्रेमी तथा गो रक्षकों पर जानलेवा हमला करते हैं उन घटनाओं की भी उतनी ही निंदा की जानी चाहिए। लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं हो रहा है।
अलवर की ही घटना को ले लें, कहा जाता है कि गो रक्षकों की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी है। जबकि अभी तक प्राथमिक जांच और परिस्थितिजन्य साक्ष्य के हिसाब से गो तस्कर आरोपी रकबर की हत्या किसी भीड़ ने नहीं की है। हालांकि अभी यह जांच का विषय है कि आखिर उसकी मौत हुई कैसे? लेकिन तात्कालिक संकेत जो मिलते हैं उस आधार पर पुलिस की तरफ शंका की सूई जाती दिखती है। क्योंकि जिला एसपी ने पत्रकारों के इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया कि आखिर तीन घंटे तक पुलिस रकबर को कहां ले गई थी और उसके साथ क्या किया गया? रामगढ़ सामुदायिक केंद्र के जांच अधिकारी डॉ हसन अली का कहना है कि जब रकबर को यहां लाया गया तब उसके बांई जांघ पर चोट के हलके निशान के अलावा पूरे शरीर पर कहीं भी चोट के निशान नहीं थे। वहीं एक चश्मदीद का कहना है कि जब पुलिस रकबर को अपने साथ ले जा रही थी तब वह पूरी तरह स्वस्थ था। पुलिस खुद भी मानती है कि पुलिस स्टेशन ले जाते समय रास्ते में सभी ने चाय-पानी किया।
वहीं गो रक्षक समूह का स्पष्ट कहना है कि पुलिस गो तस्करों के साथ मिली हुई है, तस्करी का माल हड़पने के लिए ही पुलिस रकबर को रास्ते से हटाकर उसकी हत्या का इल्जाम गो रक्षकों पर डालना चाहती है। ताकि इस मामले को मॉब लिंचिंग का नाम देकर गो तस्करी का माल हड़पा जा सके।
इस मामले को भी टीवी, अखबार, वेबसाइट तथा सोशल मीडिया उछालने में जुटा है। जबकि पिछले साल देश के अलग-अलग जगहों पर लगातार कई ऐसी घटनाएं घंटीं जिनमें मीट माफियाओं और गो तस्करों ने आम पशु प्रेमी पर्यटकों से लेकर सरकारी कर्मचारियों पर जान लेवा हमले किए। लेकिन इनमें से शायद ही कोई घटना स्थानीय स्तर पर भी सुर्खियां पाई हों। गो तस्करों के हमले यह दर्शाते हैं कि वे जहां मजबूत स्थिति में होते हैं हमले करने से बाज नहीं आते।
14 जुलाई 2017 को ओड़िशा के रायडागा जिला स्थित केडापोड़ा गांव में सॉफ्टवेयर इंजीनियर कनन तथा उनके दोस्तों पर गो तस्करों ने इसलिए जानलेवा हमला किया क्योंकि उन लोगों ने उन्हें जानवरों को बेरहमी से पीटने से मना किया था। कनन की पत्नी के साथ छोड़खानी की गई। कनन ने पुलिस को दी एफआईआर में बताया कि गो तस्करों ने उन लोगों पर उसी कुल्हाड़ी और लाठियों से हमले कर दिए जिससे जानवरों को मार रहे थे। उन्होंने कहा कि वे लोग आज अगर जिंदा हैं तो यह एक करिश्मा है। गो तस्करों ने कनन का फोन छीन कर उसे तोड़ डाला, क्योंकि उसमें उसकी करतूत कैद हो चुकी थी। इस मामले में जब पत्रकारों ने वहां के एसपी से मिलने और बात करने की कोशिश की तो वे न मिले और न ही बात की। एफआईआर हो गई, लेकिन उस मामले में अभी तक किसी की गिरफ्तारी तक नहीं हुई है।
इसी प्रकार की दूसरी घटना 10 जुलाई 2017 को हरियाणा के रेवाड़ी जिले के खोल में हुई। यहां तो गो तस्कर माफिया के गुंडो ने पुलिस कर्मियों पर फायरिंग कर दी थी। आरोप है कि मीट माफिया एक छोटे से वाहन में 10 मवेशियों को ठूंसकर उसे वध करने के लिए ले जा रहे थे। आरोप है कि उसमें 4 मवेशी तो मर भी गए थे। जब पुलिस को इस मामले की जानकारी हुई तो उन्होंने वाहन का पीछा किया। पुलिस को वाहन का पीछा करते देख उसमें सवार अपराधियों ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी। बाद में पुलिस ने भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत हरियाणा गऊ संवर्धन धारा तथा आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया। लेकिन आज तक उस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। मीडिया में कहीं इस मामले का जिक्र तक भी नहीं आया। क्या यह अपराध नहीं था?
9 जुलाई 2017 को ओड़िशा के बेगुनिया स्थित कालापाथर पशु मेला में निरंजन और तीर्थो नाम के पर्यटकों को पशुओं की तस्वीर लेने पर मीट माफियाओं ने नंगा कर पीटा। उसका दोष बस इतना था कि उसने पशु मेले के दौरान पशुओं की कुछ तस्वीरें ले ली थीं। निरंजन का जहां माफियाओं ने सर फोड़ दिया वहीं तीर्थो की पीठ को छड़ी और पत्थरों से लहूलुहान कर दिया। इस मामले में भी एफआईआर तक की खानापूर्ति कर दी गई, इसके आगे आज तक कुछ नहीं किया गया।
24 जून 2017 को तो कर्नाटक में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के अधिकारी थिमाराजू को गो तस्करों और मीट माफियाओं ने पुलिस के सामने पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। आरोप है कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के अधिकारी की यह दशा इसलिए कर दी गई क्योंकि उन्होंन अवैध तरीके से चल रहे बूचड़खाने के मसले को उठाया था। राजू ने पुलिस में दर्ज एफआईआर में कहा है कि वह पुलिस के साथ हासन जिला के चानारयापटन में अवैध तरीके से चल रहे बूचड़खाने को देखने गया था। उन्होंने कहा कि उस छोटे से बूचड़खाने में अवैध तरीके से गोवंशों को ठूंस कर रखा गया था। गोवंशों को छुड़वाकर जब राजू पुलिस वैन के पास आ रहे थे तभी माफिया के गुंडों ने पीछे से सिर पर हमला कर दिया। उस समय वहां उन्हें बचाने कोई पुलिसवाला नहीं आया। गुंडो ने पीटने के बाद मरा समझकर पुलिस वैन में फेंक दिया। पुलिस तमाशबीन बनी रही और बाद में केस दर्ज करने की खानापूर्ति की। उस मामले में भी अभी तक आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। मामला स्पष्ट है कि जो गुंडे पुलिस के सामने सरकारी अधिकारी को पीटने से गुरेज नहीं कर रहे, उसे पुलिस की कार्रवाई का क्या भय होगा।
इन सारी घटनाओं से स्पष्ट है कि पुलिस और गो तस्करों की मिलीभगत से इन घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। पुलिस इस मामले में हमेशा सेफ जोन में होती है। जब जो पक्ष ज्यादा मजबूत होता है पुलिस उसी के अनुरूप कार्रवाई करनी शुरू कर देती है। अलवर के मामले में भी पुलिस फंसाने का खेल खेल रही है। इस मामले को नजदीक से देखने वालों का कहना है कि पुलिस गो तस्करी का बड़ा माल हड़पने के लिए रकबर को ठिकाने लगाकर गो रक्षकों को फंसाने में जुट गई है। दूसरा पक्ष इस मामले में पुलिस को अपना दुश्मन नहीं बनाएगी क्योंकि गो तस्करी का धंधा तो करना ही है। इसके लिए एक-आध व्यक्ति की जान भी क्यों न चली जाए?
प्रभात खबर के अनुसार वहीं एक अन्य घटना में:
गाय तस्करी के लिए राजी नहीं होने पर पांच स्थानीय बदमाशों पर एक व्यक्ति के साथ मारपीट करने का आरोप लगा है. घायल हुए व्यक्ति को मालदा मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है. यह घटना शनिवार रात इंगलिश बाजार थाने के कुमारपुर इलाके में घटी. घायल व्यक्ति ने पांच लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी है.
पुलिस सूत्रों ने बताया कि कुमारपुर इलाका निवासी अब्दुल रज्जाक (32) हमले का शिकार हुआ है. उसने अनारुल शेख समेत पांच लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी है. इसमें कहा गया है कि शनिवार रात को काम-काज निपटा कर अब्दुल घर लौट रहा था. इसी दौरान एक आम बागान में पांच बदमाशों ने उसे घेर लिया. उन लोगों ने उसे गाय तस्करी में मदद करने को कहा. उसके राजी नहीं होने पर उसके साथ मारपीट की गई. किसी तरह वह भागकर घर पहुंचा. परिवार के लोगों ने रात में ही उसे मालदा मेडिकल कॉलेज पहुंचाया, जहां उसका इलाज चल रहा है.
घायल व्यक्ति पेशे से रोलर चालक है. उसने बताया कि अभी महानंदा नदी में जलस्तर बढ़ा हुआ है. कुमारपुर गांव से भारत-बांग्लादेश की सीमा लगी हुई है. रात के समय महानंदा नदी से गायों की तस्करी धड़ल्ले से चल रही है. इलाके के कई युवक इस काले धंधे से जुड़े हुए हैं. यह युवक उसे भी इस काम में शामिल करना चाह रहे थे. इंगलिश बाजार थाना पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है.
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