चोरी करना और गाल बजाना किसी से सीखा जा सकता है तो वह है ब्रिटेन। जो ब्रिटेन भारत से करीब 173 वर्षों के शासनकाल में 45 ट्रिलियन डॉलर लूटकर दुनिया का अमीर देश बना था, वही भारत की बुराई करने से कभी बाज नहीं आया। अमीर देश बनने के लिए शुक्रिया अदा करने के बजाय अपने ‘पालतू इतिहासकारों’ से भारत के प्रति एक नई कहानी प्रचलित करवा दी कि ब्रिटेन ने भारत को अपना उपनिवेश बनाकर उसका विकास किया है। नये शोध में यह साबित हुआ है कि ब्रिटेन की पूरी औद्योगिक क्रांति ही भारत के धन से हुई थी।
भारत को लेकर ब्रिटेन में एक मनगढ़ंत कहानी प्रचलित कर दी गई थी कि ब्रिटेन भारत पर इतने दिनों तक शासन कर पाया तो उसका मुख्य कारण था उसकी भलाई। भारत की एक कहानी जो आमतौर पर ब्रिटने में बताई जाती है वह यह कि भारत का उपनिवेशीकरण भले ही जितना भयानक रहा हो, लेकिन ब्रिटेन को किसी प्रकार का कोई आर्थिक लाभ नहीं हुआ था। बल्कि भारत का प्रशासन ब्रिटेन के लिए एक प्रकार का लागत ही थी। भारत में इतने वर्षों तक ब्रिटेन का साम्राज्य स्थापित होने का यही तथ्य है। यह कहानी भारत पर ब्रिटेन के परोपकार को दर्शाती है।
ब्रिटेन में भारत के प्रति प्रचलित कहानी को जोर का झटका तब लगा जब प्रसिद्ध अर्थशास्त्री उत्सव पटनायक का नया शोध सामने आया। हाल ही में कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित उनके शोध ने जग को बताया है कि किस प्रकार ब्रिटने ने भारत से करीब 45 ट्रिलियन डॉलर की लूट की थी। मालूम हो कि यह रकम आज के ब्रिटेन के एक साल के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 17 गुना अधिक है। पटनायक ने अपने शोध में बताया है कि ब्रिटेन ने 1765 से लेकर 1938 के दौरान भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर की निकासी की थी।
पटनायक के इस शोध पर सहज सवाल उठ सकता है कि ब्रिटेन ने ऐसे कैसे किया। सवाल उठने से पहले ही उन्होंने अपने शोध में इसका खुलासा कर दिया है कि ब्रिटेन ने किस प्रकार भारत को आर्थिक रूप से खोखला करते हुए वहां से इतनी बड़ी रकम की लूट की थी। उन्होंने अपने शोध में बताया है कि इतनी बड़ी रकम अवैध व्यावसायिक माध्यम से लूटी गई।
औपनिवेशिक काल से पहले, ब्रिटेन ने भारतीय उत्पादकों से वस्त्र और चावल जैसे सामान खरीदे और उनके लिए सामान्य तरीके से भुगतान किया। इसका भुगतान उसने अन्य देशों जैसे ही चांदी में किया। लेकिन जैसे ही 1765 में ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में भारत की कमान आई उसके तुरंत बाद उसने अपनी व्यावसायिक नीति बदल डाली। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय उपमहाद्वीप पर नियंत्रण करने के साथ ही भारतीय व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में कर एकत्र करना शुरू किया और फिर बड़ी चतुराई से उन राजस्व के एक हिस्से (लगभग एक तिहाई) का इस्तेमाल ब्रिटिश उपयोग के लिए भारतीय सामान की खरीद के लिए किया। दूसरे शब्दों में, ब्रिटिश व्यापारियों ने अपनी जेब से भारतीय सामान का भुगतान करने के बजाय उन्हें मुफ्त में ‘खरीद’ लिया, जो केवल उन किसानों से लिया गया था, जो पैसे का इस्तेमाल कर रहे थे।
बड़े स्तर पर इतनी बड़ी लूट एक प्रकार का घोटाला था। इतना सबकुछ होने के बाद भी अधिकांश भारतीय ब्रिटिश कंपनी की इस लूट से अनभिज्ञ थे। क्योंकि कंपनी जिससे कर संग्रह करवाती थी उसी से सामान नहीं खरीदवाती थी। सामान खरीदने के लिए अलग से एजेंट रखे गए थे। ब्रिटिश कंपनी के चुराए सामान का कुछ भाग ब्रिटेन में इस्तेमाल होता था और शेष भाग को दुनिया के अन्य भागों में निर्यात कर दिया जाता था। पुनर्निर्यात प्रणाली से ब्रिटेन को लोहा, तार और लकड़ी जैसे सामरिक सामग्री, जो ब्रिटेन के औद्योगीकरण के लिए जरूरी थी, आयात करने की अनुमति मिली हुई थी। इसमे दो राय नहीं कि ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति भारत से लूट कर लाई गई सामग्री पर ही पूरी तरह निर्भर थी। ब्रिटेन की समृद्धि का सबसे महत्वपूर्ण जो कारक था वह यह कि वह भारत से लूटकर लाई गई सामग्री को दुनिया के दूसरे देशों में बेचने में सक्षम था। खास बात यह कि ब्रिटेन उस सामान के मूल कीमत से सौ गुना या उससे भी अधिक दाम वसूलता था।
भारत में कंपनी राज खत्म होने के बाद 1858 में ब्रिटिश राज स्थापित होने के बाद भी भारत से लूट की निरंतरता जारी रही। ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार खत्म होते ही उपनिवेशवादियों ने कर और खरीद प्रणाली को नया मोड़ दे दिया। उन्होंने भारतीय उत्पादकों को अपना माल सीधे दूसरे देशों में निर्यात करने की अनुमति दे दी। लेकिन ब्रिटेन यह सुनिश्चित करना नहीं भूला कि उन निर्यातित सामग्रियों का भुगतान लंदन में ही होगा। इस प्रकार प्रणाली भले ही बदली हो लूट निरंतर जारी रही।
क्योंकि जो भी व्यापारी भारत से सामान खरीदना चाहता था उसे विशेष काउंसिल बिल का उपयोग करना पड़ता था। एक अद्वितीय कागजी मुद्रा सिर्फ और सिर्फ ब्रिटिश क्राउन द्वारा जारी की जाती थी। उन व्यापारियों को ये बिल लंदन से सिर्फ सोना और चांदी में भुगतान कर खरीदना पड़ता था। व्यापारियों को बिल्स के लिए लंदन में सोना जमा करना पड़ता था और तब जाकर उस बिल के सहारे वे भारतीय उत्पादकों से सामान खरीद पाते थे। और जब भारतीय उत्पादक उस बिल को स्थानीय औपनिवेशिक दफ्तर में भुनाने जाते थे तो उन्हें उनका कर काटकर रुपये में भुगतान किया जाता था। क्योंकि भुगतान उसी व्यक्ति के हाथों कराया जाता था जिसके जिम्में कर संग्रह का काम होता था। इस तरह एक बार फिर उन्हें भुगतान नहीं कर के उनके साथ धोखा किया गया था।
कहने का तात्पर्य यह कि भारत के शासन का नियंत्रण ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ हो या ब्रिटिश राज के हाथ, भारतीयों के शोषण के साथ भारत को कंगाल बनाने का खेल हमेशा जारी रहा। क्योंकि ब्रिटेन ने अपनी व्यापारिक नीति के कारण उन सारे रास्तों को बंद कर दिया जिसके माध्यम से सीधे भारत में सोना और चांदी जमा होते।
इस प्रकार ब्रिटेन शुरू से ही भारत को लूट कर अपना खजाना भरता रहा। आज वही ब्रिटेन जिसका सालाना जीडीपी महज 2.65 ट्रिलियन डॉलर है। आज वही ब्रिटेन है जो आर्थिक प्रगति में भारत से भी पिछड़ता जा रहा है। आज वही भारत है जो अपना सालाना जीडीपी पांच ट्रिलियन डॉलर बढाने का सोच रहा है। वही भारत है जो फ्रांस को पछाड़कर दुनिया का छठा सबसे बड़ा आर्थिक व्यवस्था वाला देश बन गया है और अगले साल इसी ब्रिटेश को पछाड़कर पांचवां स्थान भी अख्तियार करने वाला है।
प्वाइंट वाइज समझिए
भारत से ब्रिटेन की धोखाधड़ी
* ब्रिटेन का इतिहास ही धोखाधड़ी का रहा है
* भारत से 173 सालों में लूट कर ले गए 45 ट्रिलियन डॉलर
* ब्रिटेन के आज के सालाना जीडीपी का 17 गुना की चोरी
* भारतीय राजस्व में सोना चांदी आने का रास्ता ही बंद कर दिया
* भारत का सामान लूट कर दुनिया के देशों में बेचता था ब्रिटेन
* भारत से लूट कर दुनिया का अमीर बना ब्रिटेन
* ब्रिटिश की पूरी औद्यौगिक क्रांति भारत के धन पर खड़ी थी
* व्यापार में हेर-फेर कर भारतीय उत्पादकों का ब्रिटेन करता था शोषण
URL : Theft, scam and boasting against India is in britain’s blood !
Keyword : britain’s history, Indian economy, britain stole, 45 trillian dollar, ब्रिटेन की चोरी, धोखाधड़ी, भारतीय उत्पादक, शोषण