दुविधा में दोऊ गये , माया मिली न राम ;
तू ऐसा दुविधा में फंसा , देश बचाये राम ।
सन चौबीस तू हारेगा , पार्टी भी ले डूबेगा ;
सही राह पर न आया तो , राष्ट्र को भी तू तोड़ेगा ।
शाहीन – बाग में चड्डी खिंच गयी , रोड- जाम में कुर्ता ;
बीच – सड़क गुंडों ने घेरा , पद का हो गया भुर्ता ।
देश संभलता नहीं है तुझसे , फिर भी फैशन खूब करे ;
रंग – बिरंगी पगड़ी सर पर , हिंदू चाहे बेमौत मरे ।
गांधी – नेहरू ने पाक बनाया , तू खालिस को बनायेगा ;
पता नहीं वो कब आयेगा ? जो हिंदुस्तान बचायेगा ।
पूरी – पार्टी हो गई है मुर्दा , यूपी – आसाम को छोड़के ;
पार्टी तो अब तभी बचेगी , तुझको बाहर फेंकके ।
पांच – साल तो ठीक-ठाक था , बाद में बुद्धि भ्रष्ट हो गयी ;
विश्व का नेता बनना चाहा , इसी में धरती खिसक गयी ।
धर्म के दुश्मन सारे मजहब , ये भी तुझे समझ न आया ;
लाखों करोड़ बर्बाद कर दिये,फिरभी कुछ भी हाथ न आया
उनके वोटों के चक्कर में , अपनों को भी दूर कर रहा ;
इस चक्कर में मंदिर तोड़े , राष्ट्र को भी तू तोड़ रहा ।
अंतिम मौका राह पे आजा , केवल ढाई साल ही बाकी ;
सक्रिय राजनीति को छोड़ो , तुझमें कुव्वत नहीं है बाकी ।
मर्जी से जो पद छोड़ेगा , तो सम्मान बचा लेगा ;
यूपी या आसाम से लाकर , पूरा राष्ट्र बचा लेगा ।
हिंदू- राष्ट्र बनेगा भारत , तब तू राष्ट्रपिता कहलाये ;
फर्जी राष्ट्रपिता था गांधी , पर तू असली कहलाये ।
तब शायद नोबेल प्राइज भी , तुझे शांति का मिल जायेगा ;
हिंदू – राष्ट्र बनेगा भारत , पूरा- विश्व शांति पायेगा ।
इतनी सीधी बात समझ ले , तू सब कुछ पा जायेगा ;
इतना ज्यादा सम्मान मिलेगा , दिल तेरा भर आयेगा ।
सोच समझ कर करो फैसला,केवल अपने दिल की सुनना ;
तेरे जितने सलाहकार हैं , उनसे तू बच कर ही रहना ।
चाटुकारों से घिरा हुआ तू , अपना उल्लू करें जो सीधा ;
उनको तू अब तक न समझा,अपना मतलब करें जो सीधा।
अबलों नसाई अब न नसाओ,अपना जीवन सफल बनाओ;
यूपी या आसाम से लाकर , देश को हिंदू – राष्ट्र बनाओ ।
“वंदेमातरम-जयहिंद”
रचयिता: ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”