काल्पनिक शहर ‘गॉथम सिटी’ डीसी कॉमिक्स के पन्नों से लेकर बैटमैन की फिल्मों में दिखाया जाता रहा है। गॉथम का समाज सुसभ्य होते हुए भी भीतरी बीमारियों से जूझ रहा है। वह अपने अदृश्य खलनायकों से नहीं लड़ता। गॉथम का समाज अपनी सड़ांध को महंगे कालीनों के नीचे दबाकर रखता है। वाकीन फीनिक्स की ‘जोकर’ वास्तविकता में उन सभी बैटमैन फिल्मों की जननी है, जिनमे जोकर वहशियत का खेल खेलता दिखाई दिया है। ये वह फिल्म है, जिसमे बैटमैन और जोकर के समाज में पैदा होने के कारण स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।
टॉड फिलिप ने जोकर की कहानी 1981 के कॉमिक्स कथानक से उठाई है। चालीस वर्षीय आर्थर फ्लेक एक मनोरोगी है। वह सड़कों पर कॉमेडी कर अपना गुज़ारा करता है। उसे एक ऐसी बीमारी है कि तनाव होते ही वह ज़ोर से हंसने लगता है। जब लोग उस पर नाराज़ होते हैं तो वह एक कार्ड निकालकर दिखाता है। कार्ड पर लिखा होता है ‘ मैं हंसी रोक न पाने की बीमारी से ग्रस्त हूं। कृपया इसका बुरा न मानें।’ वह एक बुरा कॉमेडियन है लेकिन उसे विश्वास है कि एक दिन उसका भी नाम होगा। परिस्तिथियाँ आर्थर को उसकी मां के डरावने अतीत में ले जाता है। जब वह जानता है कि शहर में मेयर का चुनाव लड़ने जा रहा थॉमस वेन उसका नाज़ायज़ पिता है तो उसे अपने आसपास का हर व्यक्ति खलनायक दिखाई देने लगता है। संभ्रांत समाज उसकी उपेक्षा करता है। यही उपेक्षा ऐसे जोकर को जन्म देती है, जो समाज के लिए नासूर बन जाता है।
वाकीन फीनिक्स को मालूम भी नहीं होगा कि ये फिल्म उन्हें विश्व के श्रेष्ठ अभिनेताओं की लिस्ट में लाकर खड़ा कर देगी। भले ही वे इस सूची में कहीं पीछे खड़े हो लेकिन उन्होंने इतिहास में अपना नाम तो लिखा ही लिया है। यदि इस समय फिल्म मेकिंग के स्टूडेंट्स अभिनय में ‘ट्रांसफार्मेशन’ की ज़िंदा मिसाल देखना चाहते हैं तो उन्हें जोकर में ‘वाकीन फीनिक्स’ को देखना चाहिए। एक मनोरोगी की तकलीफें, समाज के प्रति उसका आक्रोश, हत्या करने का उसका जूनून वाकीन ने ऐसा दिखाया है कि दर्शक स्तब्ध रह जाता है। निःसंदेह ‘जोकर’ के लिए उन्होंने जो समर्पण दिखाया है, सम्भवतः आज के दौर में कोई नहीं दिखा पा रहा है। एक मनोरोगी से वहशी हत्यारे का ट्रांसफार्मेशन उन्होंने इतनी सफाई से किया है कि उन्हें सलाम करने को दिल चाहता है।
निर्देशक टॉड फिलिप्स ‘जोकर’ को जिस ऊंचाई पर लाकर खड़ा करते हैं, वे सम्मान के हक़दार हैं। आर्थर की पीड़ा, अभिजात्य समाज का दम्भ और आर्थर का अपराध की दुनिया में कदम रखना, ये फिल्म के तीन मुख्य पहलु हैं, जिन पर टॉड ने गजब का काम किया है। उन्होंने फिल्म के कथानक को ऐसे आत्मसात किया है कि कैमरा भी अभिनय करता प्रतीत होता है। एक क्लोज शॉट ट्रेन में हताश बैठे आर्थर पर और एक ‘साइलेंस वाला पॉज’, इसके तुरंत बाद एक ‘वॉइड शॉट’ पुरे स्क्रीन पर फ़ैल जाता है। इस शॉट में दूर तक रेलगाड़ियां और चमचमाता शहर दिखाई दे रहा है और बैकग्राउंड म्यूजिक बेहद कर्कश है। एक मनोरोगी की तकलीफ महानगर नहीं समझ पाते। निर्देशक का सन्देश केवल दो शॉट में स्पष्ट हो जाता है।
इस ‘साइकोलॉजिकल थ्रिलर’ को काफी प्रशंसा मिल रही है। उसका कारण यही है कि उनका मनोरोगी नायक अंततः समाज के छुपे हुए खलनायकों के खिलाफ बंदूक उठा लेता है। हर आदमी के भीतर एक ‘जोकर’ छुपा है। किसी का बाहर आता है, किसी का नहीं। समाज के इन छुपे दरिंदों के सिर में गोली दागने की सुप्त इच्छा सिस्टम से लाचार हर आम आदमी की होती है। जोकर उनकी इस प्रसुप्त इच्छा को परदे पर रक्तपात से पूरी करता है। इस सप्ताह प्रदर्शित ये फिल्म न केवल तारीफ़ बटोर रही है, बल्कि अच्छी कमाई की ओर अग्रसर है।
जो दर्शक साइकोलॉजिकल थ्रिलर पसंद करते हैं और फिल्म मेकिंग को थोड़ा-बहुत समझते हैं, उनके लिए ‘जोकर’ एक बेहतरीन फिल्म है। फिल्म मेकिंग के स्टूडेंट्स यदि ये फिल्म नहीं देखते तो वे अपना बड़ा नुकसान करते हैं। एक सच्ची फिल्म कैसे बनाई जाती है, ये जोकर देखकर जाना जा सकता है। निश्चित रूप से फिल्म ऑस्कर की हकदार है। पिछले जोकर ‘हीथ लेजर’ की भयावहता और आज के जोकर ‘वाकीन फीनिक्स’ की दरिंदगी में से कौन अव्वल ठहरता है, ये कहना अभी मुश्किल है। इसका निर्णय निश्चित ही भविष्य करेगा।