महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को हॉलीवुड बनने की कहानी शायद ही पता होगी। उनको भारतीय सिनेमा के पितृ पुरुष दादा साहेब फाल्के की कहानी भी शायद ही पता होगी। इन दिनों उनके बयानों पर गौर किया जाए तो लगेगा कि वे महाराष्ट्र को एक किला समझने लगे हैं। वे ये भी समझने लगे हैं कि शेष भारत उनके इस किले पर चढ़ाई कर देना चाहता है।
उन्होंने कहा है कि बॉलीवुड को मुंबई से ले जाने की कोशिश हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। उद्धव जी को पहले हॉलीवुड की कहानी सुनाए देता हूँ। 19वीं शताब्दी में थॉमस एडिसन ने मूवी कैमरा बना लिया था। जैसे बॉलीवुड हिन्दी फिल्मों पर अपना एकाधिकार मानता है, वैसे ही एडिसन ने सारे प्रोडक्शन हाउस खरीद लिए और फिल्मों की लागत में वृद्धि कर दी।
इससे परेशान फिल्म निर्माता फ्लोरिडा के पूर्वी तट पर बसे एक गांव में जा पहुंचे। इस गांव का नाम हॉलीवुड था। गांव के लोग व्यावसायिक समझ वाले थे। उन्होंने इन लोगों का स्वागत किया। आज हम देख पा रहे हैं कि थॉमस एडिसन ने फिल्मों पर अपना एकाधिकार न जताया होता तो आज हॉलीवुड एक गांव ही बना रहता, भव्य फिल्म सिटी कभी नहीं बन पाता।
क्या बॉलीवुड की वर्तमान परिस्थितियां इतिहास के दोहराने का संकेत नहीं दे रही? आज बी-टाउन फिल्म निर्माताओं के लिए वही सिचुएशन बन गई है, जो कभी थॉमस एडिसन ने अमेरिकी फिल्म उद्योग के लिए दुर्घटनावश बना दी थी। दादा साहेब फाल्के ने अपनी पत्नी के जेवर बेचे। पत्नी की जीवन बीमा पॉलिसी गिरवी रख दी।
तब जाकर वे इंग्लैंड में फिल्म निर्माण का कोर्स कर सके। दादा साहेब जब भारत वापस आए और फ़िल्में बनानी शुरु की तो उनके मन में थॉमस एडिसन या उद्धव ठाकरे बनने का कोई विचार नहीं जन्मा था। उनका सिनेमा भारतीय था, भारत के लिए था। इसी फिल्म उद्योग की कोख से कालांतर में कई क्षेत्रीय भाषाओं के फिल्म उद्योगों ने जन्म लिया।
निश्चय ही उद्धव की सोच दादा साहेब फाल्के वाली नहीं बल्कि थॉमस एडिसन वाली दिखाई दे रही है। उद्धव के अनुसार हिन्दी फिल्म उद्योग को समाप्त करने का षड्यंत्र किया जा रहा है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को ऐसा क्यों लगता है कि हिन्दी फिल्म उद्योग कहीं और स्थापित हो गया तो बॉलीवुड समाप्त हो जाएगा।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नोएडा फिल्म सिटी में विचारों के आदान-प्रदान के लिए बॉलीवुड के निर्माता-निर्देशकों को आमंत्रित करते हैं तो किसी को क्या दिक्कत हो सकती है। देश में एक और हिंदी भाषी फिल्म उद्योग स्थापित होगा तो प्रतियोगिता बढ़ेगी और उत्कृष्ट फिल्मों का निर्माण दोनों ओर से होगा।
उद्धव कहते हैं कि हमने भारत की संस्कृति को फिल्मों के माध्यम से जीवित रखा है। यदि ऐसा होता तो बॉलीवुड पद्मावत जैसी फिल्मों का निर्माण ही नहीं होने देता। संस्कृति की बात करे तो देखना होगा कि बॉलीवुड ने भारतीय संस्कृति को प्रतिस्थापित करने के लिए कितनी फ़िल्में बनाई हैं।
शायद नब्बे के दशक के बाद भारतीय संस्कृति वहां की फिल्मों में अपमानित ही होती रही है। क्या हम भूल जाए कि हाल ही में करण जौहर की फिल्म गुंजन सक्सेना में वायुसेना का अपमानजनक चित्रण किया गया था। क्या हम भूल जाए कि इसी बॉलीवुड ने हैदर जैसी तथ्यहीन फिल्म बनाई, जिसने भारत की छवि को विश्व में खराब किया।
क्या हम भूल जाए कि अक्षय, सलमान, आमिर की फिल्मों में हिंदू आराध्यों का कैसा मज़ाक बनाया जाता है। और उद्धव कहते हैं बॉलीवुड ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है। इस देश में भाषाई फिल्म उद्योग फलफूल रहे हैं। दक्षिण भारत का सिनेमा बॉलीवुड से अधिक जिम्मेदारी के साथ फ़िल्में बनाता है और तकनीक में तो मुंबइयां फ़िल्में कहीं टिकती ही नहीं हैं।
मराठी फिल्म उद्योग, बंगाली, मलयालम भोजपुरी सिनेमा तेज़ गति से विकास कर रहे हैं। उद्धव को दिक्कत ये है कि हिन्दी भाषा में बॉलीवुड के सामने चुनौती खड़ी हो जाएगी। भारतीय संविधान में ऐसा कोई कानून नहीं है जो योगी आदित्यनाथ को उत्तरप्रदेश में एक अत्याधुनिक फिल्म सिटी बनाने से रोकता हो।
उद्धव कहते हैं ये हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उद्धव क्या महाराष्ट्र के शासक हैं जो वे इसे रोक सकते हैं। वे न्यायालय की शरण में जाए, तो भी फिल्म सिटी बनने से नहीं रोक सकते। बॉलीवुड तबाही की ओर अग्रसर है। आज से नहीं नब्बे के दशक से ही बॉलीवुड अपने ही बोझ से दबता जा रहा है।
उद्धव ठाकरे को ये खबर नहीं होगी कि बड़े सितारों की करोड़ों की फीस और फिल्मों के जम्बो बजट ने फिल्म उद्योग की कमर तोड़ कर रख दी है। कम लागत में मुनाफ़ा कमाने का मन्त्र बॉलीवुड कभी का भूल चुका है। आज उनकी कोई फिल्म 70 से 80 करोड़ लागत की होती हैं। एक फिल्म के पिट जाने का नुकसान छोटे वितरकों को उठाना पड़ता है, जबकि सलमान खान जैसे सितारें तो अपनी फीस लेकर चलते बनते हैं।
कम लागत में अधिक मुनाफ़ा कमाने के मन्त्र ने ही भोजपुरी और मराठी सिनेमा को उन्नति के पथ पर डाल दिया है। उद्धव ठाकरे जी बॉलीवुड के साथ समस्या ये है कि वह शिखर पर विराजमान है। शिखर पर विराजमान होने के साथ वहां टिकने का विवेक भी होना चाहिए।
शिखर पर बड़ी फिसलन होती है ठाकरे जी। बॉलीवुड अपने अहंकार के कारण फिसल रहा है। अहंकारी बॉलीवुड की बदमिज़ाजी का परिणाम आपने बिग बॉस, केबीसी के हश्र में देख ही लिया है। बॉलीवुड के अहंकार का परिणाम आपने सड़क-2 के फ्लॉप होने में देख ही लिया है।
बॉलीवुड को शिफ्ट करने की बात आपने गलत कह दी उद्धव जी। बॉलीवुड को शिफ्ट करना यानी कूड़े-करकट को एक राज्य से दूसरे राज्य में शिफ्ट करने जैसा होगा। योगी आदित्यनाथ ऐसा नहीं चाहेंगे कि उनकी नई नवेली फिल्म सिटी बॉलीवुडिया कचरे से गंधाए और देश में दो बॉलीवुड हो जाए।