मध्य प्रदेश और राजस्थान में यूरिया की कोई कमी नहीं है अगर दोनों प्रदेशों के किसानों को यूरिया नहीं मिल रही है तो इसका सीधा मतलब है कि वहां की सरकारों की नीयत में ही खोट है। असल में वे पहले जैसे किसानों को यूरिया देना ही नहीं चाहती है। मध्य प्रदेश की कमलनथ की सरकार और राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार किसानों को अपने बिचौलिये के माध्यम से यूरिया पहुंचाना चाहती है। इसलिए यहां के किसानों को समय पर यूरिया नहीं मिल रही है। यूरिया की कमी पर केंद्र सरकार के उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा ने स्पष्ट रूप से कहा है मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित पूरे देश में यूरिया की आपूर्ति आरामदायक स्थिति में है। उन्होंने कहा है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत सभी राज्यों को उनकी मांग से अधिक उर्वरक दिया गया है। फिर मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकारें इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने में तुली है। किसानों को दुख देकर उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। गौड़ा ने कहा है कि अगर राजस्थान और मध्य प्रदेश में किसानों को यूरिया नहीं मिल रही है तो इसका सीधा मतलब है कि वहां की सरकारें अपने आर्थिक और राजनीतिक हित के चलते किसानों और उनकी फसलों को दांव पर लगा रही है।
मालूम हो कि पूर देश में साल 2018 के दिसंबर तक के लिए 33.07 लाख मिट्रिक टन की आवश्यकता है जब कि केंद्र सरकार ने 36.20 लाख मिट्रिक टन उर्वरक की आपूर्ति योजना जारी की हुई है।
मध्य प्रदेश और राजस्थान की बात है तो आंकड़े यही बताते हैं कि राजस्थान में तो मांग से कहीं आपूर्ति की जा चुकी है। जहां तक मध्य प्रदेश की बात है तो वहां भी मांग के अनुरूप उर्वरक मौजूद है। इसके बाद भी अगर कांग्रेस शासित इन दोनों राज्यों में किसानों को यूरिया नहीं मिल रही है तो इसका सीधा मतलब है कि राज्यसरकारों की नीयत में खोट है। ये दोनों सरकारे यूरिया की कमी का आरोप लगाकर जहां एक तरफ अपना आर्थिक हित साधना चाहती है वहीं इससे अपना राजनीतिक हित साधने में लगी है। इसके लिए दोनों राज्यों की कांग्रेस सरकार ने अपने प्रदेशों के किसानों और उनकी फसल तक को दांव पर लगा दिया है।
जबकि सच्चाई यह है कि केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश को 2018 के दिसंबर माह के लिए आवश्यक 3.50 लाख मिट्रिक टन उर्वरक की तुलना में 3.70 लाख मिट्रिक टन की आपूर्ति योजना जारी की हुई है। इस समय मध्य प्रदेश को 2.59 लाख मिट्रिक टन उर्वरक की जरूरत है,और केंद्र सरकार 2.38 लाख मिट्रिक टन की आपूर्त कर चुकी है। जबकि खुले भंडार में भी .37 लाख मिट्रिक टन यूरिया उपलब्ध है। इसका मतलब यह हुआ कि मध्य प्रदेश को आवश्यक 2.59 लाख मिट्रिक टन यूरिया की जगह अभी तक 2.75 लाख मिट्रिक टन यूरिया उपलब्ध कराई जा चुकी है। ऐसे में अगर सरकार अपने किसानों को यूरिया उपलब्ध नहीं करा पा रही है तो इसे नीयत में खोट नहीं तो और क्या कहेंगे? इन आंकड़ों से साफ जाहिर है कि कमलनाथ सरकार अपने बिचौलिए के माध्यम से किसानों को यूरिया का आवंटन कराकर किसी बड़े भ्रष्टाचार को आमंत्रित करने में जुटी है।
यही हाल राजस्थान में भी है। राजस्थान को 2.70 लाख मिट्रिक टन यूरिया मासिक आवश्यकता है। जबकि उर्वरक विभाग उसके लिए 2.89 लाख मिट्रिक टन आपूर्ति योजना जारी की है। इसका सीधा मतलब हुआ कि केंद्र सरकार .19 लाख मिट्रिक टन अधिर यूरिया की आपूर्ति योजना जारी की है। जबकि वर्तमान में राजस्थान को जहां 2 लाख मिट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता है वहीं उसे केंद्र सरकार 2.57 लाख मिट्रिक टन यूरिया आपूर्त कर चुकी है। कहने का मतलब आवश्यकता से करीब .57 लाख मिट्रिक टन अधिक। ऐसा में सोचा जा सकता है कि अशोक गहलोत सरकार आखिर क्यों यूरिया देने की बजाय अपने किसानों पर लाठी चलवा रही है?
केंद्रीय उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा का कहना है कि कांग्रेस शासित इन दोनों प्रदेश सरकारों की वितरण अक्षमता का खामियाज वहां के किसानों को भुगतन पड़ रहा है।
प्वाइंट वाइज समझिए
मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकारों की नीयत में खोट
* मध्य प्रदेश और राजस्थान में किसानों को यूरिया देना नहीं चाहती कांग्रेस सरकार
* मध्य प्रदेश और राजस्था में उर्वरक की नहीं सरकारों की नीयत में खोट है
* आवश्यकता से कही ज्यादा उर्वरक की आपूर्ति कर चुकी है केंद्र सरकार
* दोनों सरकारों की आवंटन अक्षमता का खामियाजा भुगत रहे किसान
* दोनों प्रदेशों को जितनी उर्वरक की आवश्यकता है उससे अधिक उपलब्ध है
* किसानों और उनकी फसल को दांव पर लगा ही है दोनों प्रदेशों की सरकारें
* अपना आर्थिक और राजनीतिक हित साधने में जुटी हैं दोनों सरकारें
* बिचौलियों के माध्यम से किसानों को आवंटन कराने से हो रही यूरिया की कमी
URL : there is no shortage of urea in MP and Rajasthan defect in intentions!
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