क्या पृथ्वी एक बड़ी भूगर्भीय हलचल की ओर बढ़ रही है। नेपाल के विनाशकारी भूकंप के बाद अब वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दे दी है कि हिमालय क्षेत्र में 8.7 या इससे भी अधिक तीव्रता का भूकंप जल्दी आ सकता है। सन 1315 से 1440 के बीच हिमालय के 600 किमी क्षेत्र में विनाशकारी भूकंप आया था। बाद के सालों में हिमालय अपेक्षाकृत शांत ही रहा है लेकिन ये शांति किसी भी दिन, किसी भी समय भंग हो सकती है। भारत ही नहीं विश्व भर के भू विज्ञानी इस बात पर एकमत हो गए हैं कि शांत हिमालय कभी भी अशांत हो सकता है।
इस चेतावनी को मुश्किल से दो दिन भी नहीं बीते थे कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में 1 दिसंबर को 3.8 तीव्रता का भूकंप आ गया। चिंता वाली बात ये है कि भूकंप का केंद्र दस किमी गहराई में मिला। पृथ्वी पर चौबीसों घंटे बड़े-छोटे भूकंप आते रहते हैं। इनकी तीव्रता इतनी नहीं होती कि कोई नुकसान पहुंचा सके। अब तो पृथ्वी की हर हलचल को रिकॉर्ड किया जाता है। पिछले एक माह के ‘अर्थक्वेक इंडेक्स’ के मुताबिक म्यांमार-भारत की सीमा पर 19 नवंबर से 28 नवंबर के बीच कई बड़े-छोटे भूकंप के झटके आ चुके हैं। इनकी तीव्रता 4.5 से शुरू होकर 5.5 तक आ पहुंची है।हिन्दू कुश क्षेत्र में अब तक छोटे-छोटे सोलह भूकंप आ चुके हैं। अफगानिस्तान से सटे क्षेत्रों में इनकी तीव्रता 4.8 से 5.0 तक रही है।
क्या ये छोटे झटके किसी महाविनाश की ओर इशारा कर रहे हैं। भू विज्ञानियों के अनुसार हिमालय में बसे इलाकों में बहुत सी ऊर्जा ऐसी है जो निकलने का रास्ता तलाश कर रही है। छोटे-छोटे झटके उसी का नतीजा हैं। उत्तराखंड में ही 1 जनवरी 2015 से अब तक लगभग 51 भूकंप आ चुके हैं। 2 दिसंबर को महाराष्ट्र के पालघर में 3.1 रेक्टेयर स्केल का भूकंप दर्ज किया गया। 27 नवंबर को कई छोटे झटकों के बाद हिन्दुकुश क्षेत्र में 5.5 की तीव्रता का भूकंप आया 30 नवंबर को अमेरिका के अलास्का में 7 तीव्रता वाले शक्तिशाली भूकंप से धरती चालीस से ज्यादा बार हिली। पृथ्वी बड़ी भूगर्भीय हलचल की ओर बढ़ रही है और दुर्भाग्यवश उसका केंद्र हिमालय क्षेत्र बताया जा रहा है।
चेतावनी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के कार्टोसैट -1 उपग्रह से गूगल अर्थ और इमेजरी का उपयोग करने के अलावा भूगर्भीय सर्वेक्षण के भारत द्वारा प्रकाशित स्थानीय भूविज्ञान और संरचनात्मक मानचित्र की सहायता लेने के बाद ही इतनी तीव्रता के भूकंप की आशंका व्यक्त की गई है। एशियाई क्षेत्र में आ रहे भूकंपो का रोड मैप तैयार किया जाए तो पता चलेगा भूकंप का केंद्र हिमालय की ओर अग्रसर हो रहा है। दो दिन पूर्व कुल्लू में आया भूकंप इसी ओर इशारा कर रहा है। हम जानते हैं कि अब तक भूकंप की त्वरित चेतावनी देने वाली प्रणाली विकसित नहीं हुई है। वैज्ञानिक केवल एक आशंका व्यक्त कर सकते हैं लेकिन नियत तारीख नहीं बता सकते हैं।
कहा नहीं जा सकता कि हिमालय क्षेत्र किस दिन अपनी असीमित ऊर्जा को भूकंप के माध्यम से प्रकट कर दे। ये रात में हुआ तो जनहानि सोच से कहीं अधिक हो सकती है। आखिर हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोग किस तरह सुरक्षित हो सकते हैं। इस अदृश्य आफत से लड़ने के लिए उन्हें अपने भीतर, अपने परिवेश में झांकना होगा। भूकंप के मामलों में तो विकसित देशों की सरकारें त्वरित राहत नहीं पहुंचा पाती, फिर हम तो विकसित देश है। स्थिति बड़ी विकट है। खतरा ठीक हिमालय के सामने खड़ा है। वह कब वार करेगा, कहना मुश्किल है।
जापान में एक साधारण सी चिड़िया होती है। भूकंप आता है, तो चौबीस घंटे पहले वह चिड़िया गांव को खाली कर देती है। जापान की वह साधारण सी चिड़िया चौबीस घंटे पहले किसी न किसी तरह जान लेती है कि भूकंप आ रहा है। जापान के ग्रामीण क्षेत्र आज भी इस चिड़िया पर निर्भर हैं। इस साधारण चिड़िया को वे विलुप्त नहीं होने देते। उसका शिकार नहीं होने देते। चौबीस घंटे अपनी जान और माल बचाने के लिए पर्याप्त होते हैं। ये चिड़िया जापान के लोगों के लिए कितनी बड़ी सौगात है। प्रकृति ने उन्हें भूकंप का अभिशाप दिया है तो उस चिड़िया का वरदान भी दिया है।

हिमालय क्षेत्र में भी एक ऐसी चिड़िया रहती है जो आने वाले भूकंप की चेतावनी लगभग बीस घंटे पूर्व दे देती है। ये बहुत आम चिड़िया है। हिमालय में रहने वाले इसे ‘बुलबुल’ पुकारते हैं। बादामी रंग की इस बुलबुल के सिर पर एक कलगी होती है। दरअसल जब किसी क्षेत्र में भूकंप आने वाला रहता है तो भूमि में कंपन होने लगता है। ये वाइब्रेशन बहुत सूक्ष्म होते हैं। इन्हे मानव महसूस नहीं कर पाता लेकिन पक्षी कर लेते हैं।
बुलबुल को अंदेशा होते ही वह बेचैन हो जाती है। वह अपनी चेतावनी गाकर देती है। चेतावनी का संकेत ये है कि वह लगातार दो बार ‘अलर्ट’ देती है। जूलोजिकल सर्वे आफ इंडिया ने हिमालयन बुलबुल पर पहला विस्तृत शोध पूरा किया है। हिमालय क्षेत्र के निवासियों को जानकर दुःख होगा कि जो बुलबुल उनकी जान बचा सकती है, वह अब विलुप्ति की कगार पर खड़ी है। ‘कन्ज़र्वेशन स्टेटस’ में बुलबुल को ‘लास्ट कंसर्न’ का स्टेटस दिया गया है।
एक पक्षी हिमालय के निवासियों की जान बचा सकता है। इसके लिए उन्हें इस पक्षी को अपने ‘आसपास’ रखना होगा। यानी बुलबुल के खाने की व्यवस्था करनी होगी। पक्षी विशेषज्ञों और पुराने लोगों से बात कर सीखा जा सकता है कि बुलबुल की चेतावनी को कैसे समझा जाए। ये प्रशिक्षण हज़ारो की जान बचा सकता है। एक अनोखे गुण वाली बुलबुल को अब भी बचाया जा सकता है। क्या ऐसे ‘विश्वसनीय प्रहरी’ को हम विलुप्त हो जाने देंगे।
URL: Scientists Warn Of 8.5-Magnitude Earthquake In Himalaya region
Keywords: Warning bell, Earthquake, Uttarakhand, Himachal Pradesh, 8.5-Magnitude