Sandeep Deo. इतिहास का कड़वा सच: हिंदुत्व व राष्ट्रवाद की पैरोकार पार्टी के सहयोग से हुआ था अल्पसंख्यक आयोग का गठन! (बलराम मधोक की आत्मकथा ‘जिंदगी का सफर, भाग-3 से द्वारा संदीप देव) आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस देश में अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिमों के तुष्टिकरण की बुनियाद पर खड़ी कांग्रेस ने अल्पसंख्यक आयोग का गठन नहीं किया था।
बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व कांग्रेस पार्टी की हार के बाद 1977 में आई जनता पार्टी की सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया था। जनता पार्टी ने आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों की जांच के लिए मानवाधिकार आयोग गठन की बात कही थी, लेकिन सत्ता में आते ही मानवाधिकार आयोग की जगह अल्पसंख्यक आयोग का गठन कर दिया गया, जिसका उस पार्टी में शामिल जनसंघ व उसके नेताओं जैसे अटलबिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी ने पूरा समर्थन किया था। अल्पसंयक आयोग का विरोध पूरी जनता पार्टी में सिर्फ एक मात्र नेता व तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने किया था। चौधरी चरण सिंह का स्पष्ट कहना था कि हिंदू व सिख एक ही हैं, इन्हें अल्पसंख्यक आयोग बनाकर नहीं बांटा जाना चाहिए।
जनसंघ के संस्थापकों में से एक रहे बलराज मधोक ने अपनी आत्मकथा ‘जिंदगी का सफर-3’ में लिखा है कि केवल चौधरी चरण सिंह ने इसका और विशेष कर सिखों को इसकी परिधि में लाने का विरोध किया था। भारतीय जनसंघ ने भी अल्पसंख्यक आयोग के गठन का समर्थन किया था। बलराज मधोक ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को पत्र लिखा था कि आपको ब्रिटिश सरकार द्वारा मुसलमानों के लिए 1909 में पृथक मतदान व आरक्षण देने के दूरगामी दुष्परिणामों का पता है। मुसलमानों को राष्ट्रधारा से अलग रखने का जो काम पृथक मतदान ने किया था और जिसका परिणाम 1947 में सांप्रदायिक आधार पर देश के विभाजन के रूप में सामने आया था, वही काम अल्पसंख्यक अयोग करेगा और राष्ट्रीय एकता में बड़ी रुकावट बन जाएगा।
मोरारजी देसाई ने इस पत्र का उत्तर देते हुए लिखा था कि आपकी आशंका सही है और मेरी कोशिश होगी कि अल्पसंख्यक आयोग संबंधी फैसला बदल दिया जाएगा। लेकिन मैं सहमति से प्रधानमंत्री बना हूं। उनकी संगठन कांग्रेस (इंदिरा गांधी से अलग पुराने कांग्रेसियों की पार्टी, जो जनता पार्टी में शामिल थी) के लोकसभा में केवल 50 सदस्य हैं। यदि आपके जनसंघी साथियों (जनता सरकार में सबसे बड़ा दल जनसंघ था, जिसके 90 सांसद थे) ने इस आयोग की स्थापना का विरोध किया होता तो मेरे हाथ मजबूत हो जाते और मैं इसके संबंध में (अल्पसंख्यक आयोग का गठन) फैसला न होने देता। इसलिए यह बात आप अटल बिहारी से पूछो कि उन्होंने इसका विरोध क्यों नहीं किया।
बलराम मधोक लिखते है कि मोरारजी देसाई के इस उत्तर से मैं निरुत्तर हो गया। यदि जनसंघ जरा भी इतिहास बोध व राष्ट्रवादी दृष्टिकोण अपनाता तो चौधरी चरण सिंह उनका साथ देते और मानवाधिकार आयोग के स्थान पर अल्पसंख्यक आयोग न बन पाता।
मधोक आगे लिखते हैं, अल्पसंख्यक आयोग बनने के फैसले से संप्रदायवादी मुसलमानों में खुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक विवि घोषित करने और उर्दू को मुस्लिमों की भाषा के रूप में विशेष संरक्षण देन की मांग जोर शोर से उठानी शुरू कर दी। कुछ माह बाद ही नवंबर 1979 में अलीगढ़ में भयानक सांप्रदायिक दंगा हुआ।
अनेक लोग मारे गए और करोड़ों की संपत्ति जला कर राख कर दी गई। वहां के डीएम से मिलकर मैंने एक रिपोर्ट बनाई और उसे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को दिया, जिससे मोरारजी देसाई बेहद नाराज हो गए। डीएम की रिपोर्ट से स्पष्ट था कि इस दंगे में प्रमुख भूमिका अलीगढ़ विवि छात्रों व उसके समर्थकों ने निभाई थी। डीएम ने बताया था कि दंगा होने से कुछ दिन पूर्व अलीगढ विवि के मुस्लिम छात्र नेता उससे मिले थे और अलीगढ़ विवि को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने संबंधी ज्ञापन दिया था और यह धमकी भी दी थी कि यदि उनकी मांग नहीं मानी गई तो वह अलीगढ़ की ईंट से ईंट बजा देंगे।
बलराज मधोक आगे लिखते हैं, मुस्लिम तुष्टिकरण के मामले में जनता पार्टी कांग्रेस से भी आगे निकलती जा रही थी। विदेश नीति (याद रखिए विदेश मंत्री वाजपेयी जी थे) व खासकर पाकिस्तान के मामले में पंडित नेहरू की नीति का अंधानुकरण किया जाने लगा था। राष्ट्रवाद की कीमत पर संप्रदायवाद व अलगाववाद को बढ़ावा दिया जाने लगा था।
इसके बाद जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनसंघ को पुनर्जीवित करने का विचार मेरे मन में उठने लगा। इसकी औपचारिक सूचना मैंने जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर व जनसंघ के नेता लालकृष्ण आडवाणी को पत्र द्वारा दी और जनता पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। संघ व जनसंघ की विचारधारा के कुछ साथियों के साथ भारतीय जनसंघ को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
मेरे सोशल मीडिया के मित्रों इसलिए मैंने आप सभी के लिए कल लिखा था कि आपको अल्पसंख्यक अयोग के गठन की सच्चाई जानकर तकलीफ हो सकती है। अल्पसंख्यक आयोग का यह खेल उस सरकार ने खेला था, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री व लालकृष्ण आडवाणी सूचना मंत्री थे और उस जनता पार्टी की सरकार में सबसे बड़ा दल 90 सांसदों वाला जनसंघ ही था।
जनसंघ व उनके नेताओं ने अल्पसंख्यक आयोग के गठन का विरोध नहीं किया। हिंदुत्व की सबसे बड़ी पैरोकार पार्टी ने कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चलते हुए अल्पसंख्यक अयोग के गठन में न पूरा सहयोग दिया था, बल्कि हिंदू व सिख को बांटने और शांत पड़ चुके मुस्लिम सांप्रदायिकता व अलगाववाद को बढ़ाने का काम भी किया था।
साभार: सभी तथ्य जनसंघ के संस्थापक सदस्य, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अनन्य सहयोगी व सांसद रह चुके बलराम मधोक की आत्मकथा ‘जिंदगी का सफर, भाग-3 से लिया गया है।
The 6 Hindus who went to the Supreme Court to file a plea against the benefits provided to the minorities(namely Muslims) under the Constitution, made a blunder. Their issue should have been ammendment of Minority Act wherein, minority should be considered Nationalwise and not Regionwise and moreover the percentage should be below 5%, because after Hindus the next majority is Muslims, so how can they be considered minority .Actual minorities are, parsis, jews, jains, budhists and sikhs. It is therefore imperative, that the Minority Act must be ammended at the earliest.