विपुल रेगे। धर्मा प्रोडक्शंस की ‘गोविंदा नाम मेरा’ एक ओटीटी रिलीज है। ये एक कॉमेडी मर्डर मिस्ट्री थी, जिसे बहुत बेहतर बनाया जा सकता था। निर्देशक शशांक खेतान की फिल्म ढेर सारी गलतियों से भरी पड़ी है। फिल्म पर धर्मा प्रोडक्शंस के कर्ताधर्ता करण जोहर की छेड़छाड़ का असर भी साफ़ देखा जा सकता है। ये फिल्म कॉमेडी और थ्रिलर के बीच अपना रास्ता तलाशती रह जाती है। इससे पहले धर्मा प्रोडक्शंस की तीन बड़ी फ़िल्में फ्लॉप हो गई थी।
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गोविंदा वाघमारे एक कोरियोग्राफर है। गोविंदा की अपनी पत्नी गौरी से नहीं बनती है। गौरी गोविंदा की कमतरी को लेकर हमेशा उसे प्रताड़ित करती है। गोविंदा की एक प्रेमिका भी है। प्रेमिका सुकु गोविंदा से शादी करना चाहती है। गोविंदा जिस बंगले में रहता है, उसकी कीमत डेढ़ सौ करोड़ है। ये बँगला उसके पिता ने प्रेम विवाह के बाद उसकी माँ आशा वाघमारे को दिया था। गोविंदा के पिता ने दूसरी शादी कर ली थी।
इसके वर्षों बाद दूसरी पत्नी का बेटा बंगले के लिए कोर्ट में केस लगा देता है। इस बीच फिल्म में एक ट्विस्ट आता है। कोई गौरी की हत्या कर देता है। सुकु और गोविंदा पर हत्या का संदेह न आ जाए इसलिए दोनों मिलकर गौरी की लाश बंगले के लॉन में गाड़ देते हैं। इसके बाद स्टोरी में और भी ट्विस्ट आते है। कहानी बहुत बढ़िया थी और अच्छा ट्रीटमेंट मिलता तो परिणाम बेहतर आ सकते थे।
इस कहानी पर स्क्रीनप्ले बहुत उलझा हुआ लिखा गया। उस पर शशांक खेतान के ढीले डायरेक्शन और करण जोहर की दखलंदाजी ने फिल्म की मैय्यत निकाल कर रख दी। जब आप एक मर्डर मिस्ट्री बनाने जा रहे हैं तो दर्शकों के मन में उठते प्रश्नों का भी ध्यान रखना होगा। गोविंदा की पत्नी उसे प्रताड़ित करती है लेकिन बाद में दिखाया गया कि वह तो उसे बहुत प्रेम करती है। गौरी के मन बदलने का कारण स्पष्ट नहीं किया गया।
फिल्म में एक पॉलिटिशियन और उसके बेटे का प्लॉट भी साथ चलता है। इस प्लॉट ने कहानी को भटका दिया। विकी कौशल को ये फिल्म नहीं करनी चाहिए थी। ‘उरी’ से उन्होंने जो नाम कमाया, फिर गँवा दिया है। विकी ने अपने किरदार के लिए अच्छी मेहनत की लेकिन ये किरदार उन पर नहीं जंचता है। कियारा आडवाणी भविष्य की सशक्त संभावना है। उन्हें ऐसे सस्ते किरदार करने से बचना चाहिए।
भूमि पेडनेकर का किरदार बहुत ही अस्पष्ट था। निर्देशक उनकी कैरेक्टर बिल्डिंग में भूल कर गए। भूमि अपने किरदार में कुछ ख़ास नहीं कर सकी। ये बात समझ से बाहर है कि इस सस्ती सी फिल्म में रेणुका शहाणे जैसी प्रबुद्ध अभिनेत्री क्या कर रही थी। रेणुका ने इस फिल्म में अभिनय कर अपने कद से नीचे जाने का काम किया है। उलझी हुई पटकथा, मिस कॉस्टिंग, कॉमेडी और थ्रिल में उलझन से ये फिल्म परफॉर्म नहीं कर सकी।
करण जोहर के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। सन 2021 में उनके प्रोडक्शन ने ‘शेरशाह’ जैसी उत्कृष्ट फिल्म दी थी लेकिन इस वर्ष उनका ‘बैलेंस’ बहुत कम दिखाई दे रहा है। इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं, जो मनोरंजन दे सके। घटिया दृश्यों और फूहड़ कॉमेडी से सजी ये फिल्म न देखी जाए तो ज़्यादा बेहतर।
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