मुझे हैरानी है कि सेंसर बोर्ड की पैनी निगाहों से ये गाना बचकर कैसे निकल गया। कल प्रदर्शित हुई फिल्म ‘गली बॉय’ का ये गाना आज के हिंदुस्तान का बखान करता है। गीतकार ने यहाँ भारत को हिंदुस्तान न कहते हुए ‘झिंगुस्तान’ कहा है। देश के सम्मान पर बट्टा लगाने वाला ये गाना अब सिनेमाघरों में गूंज रहा है और टीनएजर्स कूद-कूदकर आनंद ले रहे हैं। गरीब युवा के विद्रोह को रैप बनाकर युवा दर्शक को सुनाया जा रहा है ‘2018 है, देश को खतरा है’।
ज़ोया अख्तर की ‘गली बॉय’ मुंबई के धारावी में रहने वाले गरीब युवा की कथा प्रस्तुत करती है लेकिन इस कथा को प्रस्तुत करने के लिए ऐसे विद्रोही गीत की क्या ज़रूरत पड़ गई, जिसमे बेशर्मी के साथ हिंदुस्तान को ‘झिंगुस्तान’ कहा गया है। ‘2018 है, देश को खतरा है, हर तरफ आग है, तुम आग के बीच हो, ज़ोर से चिल्ला लो, सबको डरा लो, अपनी ज़हरीली बीन बजाकर, सबका ध्यान खींच लो। फिल्म में एक गीत और है ‘लेकर रहेंगे आज़ादी’। इस गीत को सुनते हुए ‘जेएनयू’ वाली फिलिंग आने लगती है। मुझे हैरानी है ऐसे गीतों पर जागरूक सेंसर बोर्ड ने आपत्ति क्यों नहीं ली। ‘झिंगुस्तान’ शब्द कैसे स्वीकार हुआ।
‘रैप’ पश्चिम से आयातित की गई गाने की नई विधा है। इसमें म्युज़िक कम होता है और ‘रैपर’ एक ख़ास रिदमिक अंदाज़ में संवाद बोलता है। इस विधा का शायरी या कविता से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। फिल्म ऐसे ही एक रैपर की कहानी कहती है। मुराद (रणवीर सिंह) धारावी में रहने वाला एक रैपर है। कार ड्राइवर का बेटा मशहूर रैपर बनना चाहता है। सफीना (आलिया भट्ट) मुराद से प्यार करती है। परिस्थितियां ऐसी हैं कि मुराद को परिवार के दबाव में आकर नौकरी करनी पड़ती है और मशहूर रैपर बनने का उसका ख़्वाब टूटने जा रहा है।
ज़ोया अख्तर की ये फिल्म सन 2002 की अंग्रेजी भाषा की फिल्म ’80 माइल’ का मुम्बइया संस्करण है। ज़ोया ने उस कहानी का भारतीयकरण कर दिया है। रणवीर सिंह और आलिया भट्ट की केमेस्ट्री ही फिल्म का एकमात्र आकर्षण है। आलिया भट्ट को निकाल दिया जाए तो सारी ‘शोखी’ ख़त्म हो जाती है। उनके बिना ये फिल्म अस्सी के दशक में बनी हद दर्जे की बेरंग समानांतर फिल्म’ नज़र आती। रैप कल्चर को फिल्म का आधार बनाकर निर्देशक ने अपना दर्शक वर्ग सीमित कर लिया है। कुल मिलाकर फिल्म रणवीर और आलिया की फैन फॉलोइंग पर टिकी हुई है। इसमें ऐसा कुछ नहीं है, जिसे सपरिवार देखा जाए।
प्रेम की तीव्रता बताने के लिए कुछ निर्देशक चुंबन दृश्यों को अति आवश्यक मानने लगे हैं। गली बॉय के ‘डार्क बैकग्राउंड’ में रणवीर-आलिया-कल्कि के लिपलॉक दृश्य उत्कंठा नहीं जगा पाते। ये दृश्य आत्मिक कम, जिस्मानी अधिक महसूस होते हैं। रैपर संस्कृति दिखाने के नाम पर खुलकर दंगल मचाया गया है। अब तक फिल्मों में मुशायरों के मुकाबले देखे गए थे लेकिन इस फिल्म में भद्दी गालियों से भरे रैप के मुकाबले देखने को मिलते हैं।
ऊपर मैंने ‘झिंगुस्तान’ का ज़िक्र किया था। ऐसे भौंडेपन से भरी फिल्म देखने की सलाह मैं कतई नहीं दूंगा। रही बात आलिया भट्ट और रणवीर का अभिनय, तो वह आप टीवी पर भी देख सकते हैं। फिल्म देखने के बाद आप एक किस्म का तनाव साथ लेकर निकलते हैं। एक रैपर की विजय गाथा देखने के बाद भी हृदय स्पंदित नहीं होता। ज़ोया के ‘डार्क शेड्स’ एक अच्छी कहानी को उल्लासित बनाने के बजाय अवसादग्रस्त बना देते हैं। होपलेस
URL: Ranveer Singh and Alia Bhatt-starrer Gully Boy released on Thursday.
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