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India Speaks Daily > Blog > धर्म > उपदेश एवं उपदेशक > संवैधानिक है आशुतोष महाराज के अनुयायियों का अधिकार !
उपदेश एवं उपदेशक

संवैधानिक है आशुतोष महाराज के अनुयायियों का अधिकार !

ISD News Network
Last updated: 2017/04/20 at 9:39 AM
By ISD News Network 1.1k Views 10 Min Read
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10 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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आशुतोष महाराज के केस में आज लम्बी सुनवाई चली। सुनवाई के आरम्भ में ही कोर्ट ने तथाकथित बेटे पर टिपण्णी करते हुए कहा की बहुत से लोग धन और संम्पत्ति के लालच में बहुत से रिश्ते बना लेते हैं। संस्थान का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह हैरानी की बात है कि एक व्यक्ति ३० साल से अधिक समय के लिए अपने पिता की कोई खोज खबर नहीं लेता और अचानक एक दिन आकर एक सम्मानित और पूज्य हस्ती को अपना पिता बोल कर बेटा होने का अधिकार जमाता है। प्रत्यक्ष तौर पर तो यह संम्पत्ति का लालच ही है और कुछ नहीं। यह ज्ञात हो की दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है की आशुतोष महाराज ने कभी भी कोई संपत्ति अपने नाम नहीं रखी। न ही उन्होंने अपने किसी शिष्य के नाम कोई संम्पत्ति रखी है। आशुतोष महाराज ने संस्थान की स्थापना के आरम्भ से ही यह निश्चित किया है की जो कुछ भी संपत्ति है वह संस्थान के नाम ही रहेगी। संस्थान की ओर से समस्त लेखा जोखा नियमित आयकर विभाग को भेजा जाता है।

वर्तमान में संस्थान की ओर से दलीलें दी जा रही हैं। दलील पेश करते हुए संविधान-विद राकेश द्विवेदी ने कहा कथित बेटा आशुतोष माहराज से अपना सम्बन्ध स्थापित करने में विफल रहा है। संविधान के अन्नुछेद 13 का हवाला देते हुए संस्थान के वकील ने कहा है की कथित बेटे ने हिंदु धर्म के निमित जिस अधिकार की मांग की है वह हिंदु धर्म और कानूनी रूप से आशुतोष महाराज की समाधी में जाने की और अपने शरीर के संरक्षण की उनकी स्वतंत्रता को बाधित नहीं कर सकता। किसी रीति रिवाज़ की आड़ में महाराज के अनुयाईयों पर अंतिम संस्कार की बाध्यता भी आरोपित नहीं की जा सकती।

Transplantation of Human Organ Act के हवाले से कहा गया की यह कानून लोगों को अपने जीवन काल में यह निर्णय लेने का अधिकार देता है की वो अपनी इच्छा से अपनी मृत्यु के बाद अपना शरीर या शरीर के अंग दान कर सकते हैं। कोई भी कानून उनको अंतिम संस्कार के रिवाज़ को अपनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। धार्मिक अधिनायकों और जन नेताओं के मामलों में भी शरीर के संस्कार करने की कोई बाध्यता नहीं रही है। तमिल नाडू की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जे जयललिता के मामले का उल्लेख करते हुए वकील ने कहा की वे एक आयंगर ब्राह्मण थी और उनका दाह संस्कार होना चाहिए था लेकिन उन्हें दफनाया गया। इसलिए यह रीती किसी भी प्रकार से कानून आरोपित नहीं की जा सकती।

कोर्ट में बहस के दौरान कहा गया की संस्थान और आशुतोष महाराज के शिष्यों के अधिकार संविधान द्वारा अनुछेद 25 और 26 के तहत सुरक्षित हैं। जब तक संस्थान और अनुयायी अपनी आस्था का अनुसरण करते हुए किसी अन्य के अधिकार का हनन नहीं करते अथवा कानून व्यवस्था, जन स्वास्थ्य और नैतिकता का उल्लंघन नहीं करते तब तक उन्हें उनके गुरु समाधी में विश्वास और उसके संरक्षण से रोका नहीं जा सकता। राकेश द्विवेदी ने अनुच्छेद 26 को कोर्ट में रखते हुए कहा कि अनुच्छेद 26सभी धार्मिक संप्रदायों तथा पंथों को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता तथा स्वास्थ्य के अधीन अपने धार्मिक मामलों का स्वयं प्रबंधन करने, अपने स्तर पर धर्मार्थ या धार्मिक प्रयोजन से संस्थाएं स्थापित करने और कानून के अनुसार संपत्ति रखने, प्राप्त करने और उसका प्रबंधन करने के अधिकार की गारंटी देता है। इस कानून के अनुसार संस्थान एक प्राइवेट संस्था है और कोई भी संवैधानिक कानून उन्हें उनके धार्मिक अभ्यास से नहीं रोक सकता ना ही ऐसा कोई प्रावधान है जिसके तहत राज्य को संस्थान के अंदरूनी मामलों में हस्तकक्षेप के लिए आदेश दे सकें।

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अनुच्छेद 25 का सन्दर्भ लेते हुए कहा गया की यह अनुच्छेदसभी लोगों को विवेक की स्वतंत्रता तथा अपनी पसंद के धर्म के उपदेश, अभ्यास और प्रचार की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। बहस में कहा गया की यह अनुच्छेद मात्र धर्म के अभ्यास की ही स्वतंर्ता नही देता अपितु एक व्यक्ति को उस अनुपालन की सवातान्र्ता भी देता जो उससे अपनी अंतरात्मा से उचित लगता है। सुप्रीम कोर्ट के कई बड़े आदेशों का उल्लेख करते हुए कहा गया की संविधान के अनुसार एक अत्यंत छोटे से संप्रदाय के भी अपने धार्मिक अधिकार हैं और एक सेकुलर जज उनकी आस्था और धार्मिक निष्ठा पर अपना निर्णय या मान्यता नहीं थोप सकता। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता की उनकी आस्था किसी जज को मान्य हो अथवा नहीं। चाहे किसी की आस्था कितनी ही अतार्किक क्यूं न लगे उनमे तब तक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता जब तक वे कानून व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के नियमो का अतिक्रमण न करें।

आशुतोष महाराज के संस्कार का निर्देश देने वाले एकल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए संस्थान के वकील ने कहा कि एक तरफ तो एकल बेंच ने अपने फैसले में समाधी के सिद्धांत को समझने से ही इंकार कर दिया और दुसर तरफ यह भी कह दिया कि शरीर का संरक्षण संस्थान की मुख्य धार्मिक संरचना में नहीं आता। उन्होंने कहा की यह विचारणीय बात है की जब आप समाधी को ही समझने से इंकार कर रहे हैं तो आप इस निर्णय पर कैसे पहुँच गए की उससे जनित संरक्षण का सिद्धांत संस्थान की मुख्य धार्मिक संरचना से बाहर है।किसी भी सिद्धांत को विभाजित कर के उसके अर्थ को नहीं समझा जा सकता। उन्होंने संस्थान द्वारा कोर्ट में समाधी से सम्बंधित दिए धार्मिक ग्रंथों के प्रमाणों की ओर कोर्ट का ध्यान खींचा। इस पर कोर्ट ने स्वीकार किया कई धार्मिक सम्प्रदायों में समाधी के प्रकरण रहे हैं इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं है।

राकेश द्विवेदी ने यह भी कहा की एकल बेंच ने आशुतोष महाराज के संस्कार का निर्णय लेने के लिए मात्र तीन पूर्व आदेशों को आधार बनाया। इन आदेशों से अनुच्छेद 21 का विस्तार करते हुए एकल बेंच ने कहा कि मृत्यु के उपरांत भी गरिमा को बनाया जाना चाहिए और इसलिए आशुतोष महाराज का संस्कार हो। जब इन तीन पूर्व आदेशों की विवेचना कोर्ट में की गयी तो जस्टिस महेश ग्रोवर ने कहा की एकल बेंच द्वारा प्रयोग में लाये गये से आदेश इस मामले में अप्रासंगिक है। इस पर संसथान के वकील ने कहा की जब ये आदेश ही अप्रसंग्गिक हैं तो इनके आधार पर संस्थान के अंदरूनी मामलों में दखल देने का आदेश राज्य सरकार को किस प्रकार दिया जा सकता है? ऐसा कोई कानून नहीं है जिसके तहत इस मामले में सरकार संस्थान बलपूर्वक कुछ आरोपित कर सके। उन्होंने कहा की यदि अन्नुछेद 21 से कोई संधर्भ लिया जा सकता है तो वो मात्र संसथान के अनुयायिओं और स्वयं आशुतोष महाराज की इच्छा और स्वतंत्रता की संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए हो सकता है। शिष्यों ने अनेकों शपथ पत्रों के माध्यम से कोर्ट को बताया है कि आशुतोष महाराज ने स्वयं समाधी में जाने और अपने शरीर की सुरक्षा की जाने की बात शिष्यों को कही थी। यहाँ तो शिष्य गुरु आज्ञा के अपने धर्म का अनुपालन कर रहे हैं जिसका अनुमोदन वेदों में किया गया है।

इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील से पुछा कि आशुतोष महाराज का शरीर किस अवस्था में है? इस पर सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया की संस्थान के साथ बैठकों के दौरान सरकार ने डॉक्टरों की एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने मौके पर जा कर निरिक्षण किया है जिसकी रिपोर्ट पहले ही कोर्ट में दी जा चुकी है। कमेटी के अनुसार आशुतोष महाराज के शरीर का संरक्षण सबसे उपयुक माध्यम से किया गया है और उसमे किसी भी प्रकार के अपघटन का कोई चिन्ह नहीं उभरा है। बेंच के द्वारा आगे यह पूछे जाने पर सरकार ने जवाब दिया की डॉक्टरों की कमेटी के अनुसार शरीर को इस प्रकार से अनिश्चित समय तक रखा जा सकता है।

संस्थान के वकील ने अपनी दलीलों को पूरा करते हुए कहा की ऐसा कोई कारण नहीं है जिस की वजह से कोर्ट अनुयायियों की आस्था को नष्ट करे। ऐसा करने से कोर्ट हमेशा के लिए समाज में यह अवधारणा छोड़ देगा की आशुतोष महाराज वापिस आ सकते थे किन्तु इस हस्तक्षेप के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया। मामले की अगली सुनवाई 7 फ़रवरी 2017 को होगी।

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