कल आतंकी यासीन मलिक को NIA की कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई। लेकिन वह समय भी हमने देखा है जब सरकार, मीडिया और ‘लुटियंस एकेडमिया’ मिलकर उसे दूसरा गांधी घोषित कर चुके थे।
उस दौरान एक पत्रकार के रूप में मैं दैनिक जागरण में अपराध संवाददाता के रूप में कार्य कर रहा था। मैं यासीन मलिक और उसके अपराध की फाईल को नष्ट करने वाली मनमोहन सरकार को उस समय श्रृंखलाबद्ध तरीके से एक्सपोज (2007 की मेरी लिखी खबर की कटिंग नीचे संलग्न है) कर रहा था जबकि अन्य मीडिया हाउस जैसे ‘इंडिया टुडे’ उसे ‘यूथ आइकॉन’ घोषित कर रहा था और बीबीसी उसके अपराध की स्वीकारोक्ति वाले साक्षात्कार का वीडियो नष्ट कर उसे बचने का प्रयास कर रहा था।
गौरतलब है कि #YasinMalik ने बीबीसी के टिम सेबेस्टियन से बात करते यह स्वीकारा था कि उसने सेना के चार जवानों की हत्या की थी और तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद का अपरहण किया था।
बाद में इस बातचीत का वीडियो बीबीसी ने अपने आर्काइव से डिलीट कर यासीन के अपराध को छुपाने का प्रयास किया था।
उसी दौरान ‘टूडे ग्रुप’ ने एक कंक्लेव आयोजित कर यासीन मलिक को यूथ आइकॉन घोषित कर दिया था।
अतः मैं न तब पत्रकारिता से समझौता करता था, न आज करता हूं।
मेरी पत्रकारिता से हमेशा उन्हें दिक्कत हुई है, जो किसी भी पार्टी, व्यक्ति या संस्था के लिए सबकुछ केवल अच्छा – अच्छा सुनना या पढ़ना पसंद करते हैं।
मैं न तब बदला था, न मैं अब बदलूंगा। जिनको मेरे साथ चलना है चलें, जिनको न चलना है विदा हो लें।
मैं समर्थक बनाने के लिए नहीं, सत्य को उद्घाटित करने के लिए पत्रकार बना था, और वह भी 2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में हिंदुओं को जलाने की घटना से आहत होकर।
और पत्रकारिता की औपचारिक नौकरी छोड़कर लेखक (2012) भी 2002 की साजिश को (2011 में गोधरा पर आए अदालती निर्णय और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT रिपोर्ट के परिप्रेक्ष्य में) एक पुस्तक के रूप में उद्घाटित करने के लिए ही बना, जो ‘साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी’ के रूप में पाठकों के समक्ष है।
मैं नहीं बदलूंगा, चाहे सत्य के मार्ग में स्वयं को अकेला ही खड़ा क्यों न पाऊं! यह मेरी जिद है!
#sandeepdeo