ये कब समझेंगी कि सबका साहिद एक जैसा ही है? साहिदों का समाजीकरण म्लेच्छ वृत्ति के साथ हुआ है, फिर मानवी सुरभि और म्लेच्छ साहिद का मेल हो कैसे सकता है? परिणाम हर बार यही निकलना है!
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने धर्मविहीन हिंदू परिवार, भौतिकवाद की अंधी दौड़ लगा रहे माता-पिता और उनकी कूल-मूढ़ लड़कियों के लिए बहुत पहले ही लिख दिया था,
“हिन्दू सही हैं जब वे मुसलमानों के साथ सामाजिक संबंध बनाना असंभव बताते हैं, क्योंकि उस का मतलब सदैव यह होता है कि एक पक्ष की केवल स्त्री और दूसरे पक्ष के केवल पुरुष का संपर्क।”
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर, ‘पाकिस्तान ऑर द पार्टीशन ऑफ इंडिया’ (भाग IV, अध्याय X)