अवधेश दीक्षित| येविश्वनाथकारीडोर है
जी हुजूर !
पुरातन है,
संस्कृति की राजधानी है ,
दुनियां का आकर्षण है
युगों- युगों से भोलेनाथ का रहा
अब ये ‘चौकीदार’ जी का शहर है
न ‘निगम’ को पता है
न ‘प्राधिकरण’ को खबर है
अधिकारी कुछ बोलते नहीं
‘ प्रतिनिधि’ मुंह खोलते नहीं ,
डरते-लजाते मीडिया ने बताया- ‘दिल्ली से चली’
ये विकास की लहर है
ये विश्वनाथ कॉरिडोर है
गंगा पाथवे है
या जाने किस योजना की पुड़िया का जहर है
अब ये ‘चौकीदार’ जी का शहर है

भवनों को तोड़ना है
विग्रहों को फोड़ना है
गलियों को ‘चौड़ना’ है
वीआईपी को कार से अरघे तक छोड़ना है
उड़नखटोले से उतरना है कॉरिडोर में ,
जिसने बुलाया था उस मां गंगा को बाबा विश्वनाथ के माथे पर खोजना है
राष्ट्रद्रोही हैं वो जो हृदयहीन कहते हैं,
मेरे पास तो ‘हृदय’ नाम की योजना है
खबरदार! जो आवाज निकाली – “इस गली में छिपी धरोहर है”
कुछ दिन शास्त्री लालबहादुर रहते थे,
कुछ ग्रंथालय और कुछ सौ साल पुराने ही तो घर हैं

नौ गौरी को कम हो जाने दो
छप्पन विनायक घट जाने दो
भूल जाओ बनारसी!
तुम ‘काशीखण्ड’
किसकी मजाल जो रोक ले विकास की आंधी,
जनता ने दिया है बहुमत प्रचण्ड
उफ्फ!मुझे गलियों में लगती घुटन ,
चौड़ीकरण ही तो विकास का नाम है
क्योटो बनाना है,
संकरी गलियां तुड़ाना है,
धरोहरों का मोह , जाहिलों का काम है
हल्ला – हुड़दंग करो नहीं लोकतंत्र के सहारे अड़ो नहीं
सुना करो! मेरे मन की बात ,
हो जाने दो विकास ,
हो जाने दो विकास।

साहब ! मैं ‘मोदिया बिंद’ का मरीज नहीं ,
दिखता है मुझको सब
साफ-साफ
लोकतंत्र की दुहाई हुजूर ,
इजाजत दें तो मैं भी कह लूँ
“मन की बात”
पूरे देश का कर लो गुरु, लेकिन मत करना
काशी – विश्वनाथ का
ऐसा विकास
सोमनाथ की तर्ज पर
जरुरी नहीं हैं विश्वनाथ
वो हैं सागर किनारे,
यहां संस्कृति बिछी है
गलियों की जाल ।
इस बनारस में विराजत हैं छप्पन गणेश
लेकिन तोहरे ‘विश्वनाथ कॉरिडोर’ में दिखता है
महाविनाश का श्रीगणेश
काशीखंडोक्त देवों का
यही गली है प्रवेश
सत्ता के ज्वार में ,
विकास की आड़ में
न करिये विध्वंश का ये आदेश
नहीं तो ये शहर है कबीर का
मान जाइये श्रीमान !
मान जाइये श्रीमान !

विराजते हैं यहां महाकाल
चलता नही यहाँं ‘बाहरी भौकाल’
पालते हैं गाय की तरह
हुरपेटते हैं साँड़ की तरह
गलियों में दौड़ा के रगेड़ते हैं भोलेनाथ
अभिमान कभी करते नहीं, जिसे हो जाये उसे छोड़ते नहीं ।
दिल्ली में जा के पूछ लेना ‘जानकारों’ से ,
शंकराचार्य को भी इन्हीं गलियों में , रोक लेते हैं भोलेनाथ।