जब से कोरोना की शुरुआत हुई है लोगों ने अनायास बिना किसी आदेश के फ़ैशन में मास्क पहनना शुरू कर दिया था। मुझे यह बात इसलिये याद है कि 12 मार्च को मैं बेन्गलुरू गया था, उस दिन कुछ जागरूक लोग मास्क लगाये हुये थे और जब मैं 22 मार्च को सुबह 4 बजे लॉकडाउन के पहले दिल्ली पहुँचा तो मास्क लगाने वाले लोगों की संख्या बढ़ चुकी थी। यह ट्रेन्ड अधिकतर पढ़ें-लिखे लोगों में दिखा। कोरोना से बचने में मास्क की सार्थकता मुझे आजतक नहीं समझ आई। परन्तु मुझे क्या पता था कि एक दिन यह मास्क क़ानून बन जायेगा और वाइरस ही नहीं चालान से बचने के लिये भी मास्क पहनना पड़ेगा !
आज देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में लोगों को मास्क पहनना अनिवार्य हो गया है। मास्क पहनने या ना पहनने के लिये सरकारें और माननीय न्यायपालिका भी क़ानून बनाने लगीं। मास्क ना पहनने वाले को क़ानूनी रूप से सजा दी जाने लगी और उसे समाज एवं देश विरोधी माना जाने लगा। वाइरस तो है ही पर मास्क ने भी कम ख्याति नहीं हासिल की।
“दो गज दूरी मास्क है ज़रूरी” स्लोगन आज बच्चों-बच्चों की ज़ुबान पर है। क्या दो गज दूरी बनाकर जीवन जिया जा सकता है? क्या किसी ने यह सोचा कि दो गज दूरी किस तरह से कोरोना को रोकने में सार्थक होगी ? यह कई बार मीडिया में प्रसारित हो चुका है कि कोरोना एयरबॉर्न है अत: दो गज दूरी क्यों है ज़रूरी ?
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मास्क और दो गज दूरी का समर्थन सिर्फ़ चुनिंदा मास्क बेचने वाली कंपनियों के अलावा किसी भी सरकारी या ग़ैरसरकारी वैज्ञानिक संस्थान ने नहीं किया कि मास्क पहनने और दो गज दूरी बनाये रखने से वाइरस को रोका जा सकता है। हर बात पर साइन्टिफिकली प्रूवेन होने की दुहाई माँगने वाले लोगों को मास्क के केस में जैसे साँप सूँघ गया हो।
आज मास्क लगाना मजबूरी है अत: अनुपालन करना पड़ेगा। मास्क ने कितने लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाया इसके कोई आँकड़े नहीं हैं परन्तु मास्क लगाकर भी करोड़ों मरे यह सभी के सामने है। लोगों का तो नहीं पता पर समाज के एक विशेष वर्ग को मास्क लगाने से तीन ज़बरदस्त लाभ हुये उसका उल्लेख नीचे है।
आज इस बात से सभी वाक़िफ़ हैं कि कार्बन डाईऑक्साइड का मॉल्यूकुलर साइज़ कोरोना से कई गुना अधिक है। अत: मास्क के जिस सुराख़ से हम कोरोना रोकने का प्रयास कर रहे हैं वह कार्बन डाईऑक्साइड को निकलने से अवश्य रोकेगा जिसके कारण खून में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ जायेगी। कहा जाता है कि ब्रेन 70% खून का प्रयोग करता है यानि कि ब्रेन को 70% ऑक्सीजन चाहिये। खून में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता के कारण ब्रेन को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, नर्व सेल कमजोर पड़ने लगते हैं और व्यक्ति डिप्रेशन तथा एंग्जाइटी शिकार हो जाता है, फलस्वरूप दवाइयों का सेवन बढ़ जाता है।
दूसरा शरीर के अन्य सेल को भी पर्याप्त ऑक्सीजन ना मिलने से उनका एनर्जी लेवल कम हो जाता है, जिससे इम्यूनिटी कमजोर पड़ने लगती है और कमजोर इम्यूनिटी वाले पर वाइरस संक्रमण आसानी से हो जाता है। संक्रमण बढ़ने से दवाओं का प्रयोग बढ़ जाता है।
मास्क लगाने से तीसरा सबसे बड़ा लाभ है शरीर के अंदर आद्रता (नमी) बढ़ना। इस बात को सभी जानते हैं कि शरीर से स्वशन प्रक्रिया से निकलने वाली वायु में आद्रता (नमी) अधिक होती है जिसका मॉल्यूकुलर साइज़ कोरोना और कॉर्बन डाइऑक्साइड से कई गुना अधिक होता है, फलस्वरूप आद्रता (नमी) बढ़ने से ब्लैक/व्हाइट/यलो फ़ंगस पैदा होता है जो नई महामारी बन गया है। जिसके इलाज में दवाओं का प्रयोग और अधिक बढ़ जाता है।
मास्क पहनने से जनसाधारण का कोई लाभ हुआ या नहीं पर दवा बनाने वाली कंपनियों तथा अस्पतालों का ज़बरदस्त लाभ हुआ। सुना है कि कोरोना वाइरस पुन: एयरबॉर्न हो गया है अत: लोगों को हर जगह डबल मास्क लगाये रखने की हिदायत दी गई है। इससे दवा की कंम्पनियों तथा अस्पतालों का व्यापार और तेज़ी से बढ़ेगा। निरंतर लॉकडाउन से चरमराती अर्थ व्यवस्था में जूझते हुये लोगों का ज़बरदस्त शोषण हो रहा है पर कुछ लोगों के नज़रिये में यही ऑपार्चुनिटी है।
मुझे उम्मीद है कि इस लेख से लोगों को मास्क की उपयोगिता समझने में मदद मिलेगी और लोग स्वयं को स्वस्थ रखने का प्रयास करेंगे।
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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