विपुल रेगे। इस्राइल के फिल्मकार नादव लापिड का विवाद सुलझने के बजाय और उलझ गया है। इस विवाद को इतना तूल दे दिया गया कि फिल्म फेस्टिवल से अधिक लापिड के बयान की चर्चा होने लगी। मीडिया का ये झूठ भी पकड़ा गया कि इस्राइल के घृणित फिल्मकार ने बयान वापस ले लिया था। विवाद के दूसरे दिन ही लापिड ने स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने बयान पर कायम है। अब गोवा फिल्म फेस्टिवल के तीन अन्य ज्यूरी सदस्यों ने लापिड के बयान का समर्थन कर डाला है। इस उठापठक को लेकर हमारी केंद्र सरकार मौन क्यों है ?
जबसे नादव लापिड के बयान का विवाद शुरु हुआ, हमारी सरकार इस पर आधिकारिक रुप से कुछ भी कहने से बच रही है। इस मामले पर चौबीस घंटे के भीतर देश के सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का बयान आ जाना चाहिए था लेकिन वे तो दूसरे मुद्दों पर बयान देने में व्यस्त हैं। भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से इस बारे कोई कड़ी आपत्ति नहीं ली गई।
सोशल मीडिया पर देश के लोगों का गुस्सा इसलिए बढ़ गया कि ज़हरीले फिल्मकार ने बयान देश के सूचना व प्रसारण मंत्री की मौजूदगी में दिया था और मंत्री महोदय चुप बैठे रहे। लोगों को उस समय ठाकुर की चुप्पी खल गई। लोग तो ये भी पूछ रहे हैं कि भारत सरकार ने इतने महत्वपूर्ण आयोजन में बुलाने से पूर्व नादव लापिड के बैकगॉउन्ड की जाँच क्यों नहीं करवाई। ऐसा नहीं कि नादव लापिड एक अनजान फिल्मकार हैं।
लापिड और इजरायल सरकार के विवाद तो अखबारों की सुर्खियां भी बन चुके हैं। इस बात की जाँच होनी चाहिए कि किसकी सलाह पर लापिड को गोवा फिल्म फेस्टिवल का हेड ज्यूरी चुन लिया गया। इस विवाद में भारत के लोगों का गुस्सा केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर पर उतर रहा है। उनसे सवाल किये जा रहे हैं लेकिन वे खामोश हैं।
इस मामले में भारत सरकार की ओर से कोई कड़ी प्रतिक्रिया न होने का परिणाम ये रहा कि तीन अन्य ज्यूरी सदस्यों अमेरिकी फिल्म निर्माता जिन्को गोटोह, फ्रांसीसी फिल्म एडिटर पास्कल चावांस और फ्रांसीसी शॉर्ट फिल्म निर्माता जेवियर एंगुलो बारटुरेन ने लापिड का समर्थन कर डाला है। ये तीन तो विदेशी ठहरे, हमारे एक भारतीय फिल्म निर्देशक सुदीप्तो सेन लापिड का विरोध करने के बजाय उसका समर्थन करने लगे।
भारत सरकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया न होने के कारण ज्यूरी मेंबर्स में ये संदेश गया कि लापिड प्रकरण को सरकार हल्के में ले रही है। जब अनुपम खेर ने आगे आकर विरोध किया, तभी समझ आ गया था कि सरकार खुलकर इस मामले में प्रतिक्रिया देना नहीं चाहती। इस प्रकरण में भारत सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने निहायत ही शर्मनाक प्रदर्शन किया है।
इसके लिए मंत्री अनुराग ठाकुर पूरी तरह से जिम्मेदार माने जाने चाहिए। गोवा फिल्म फेस्टिवल का ज्यूरी बोर्ड ये कैसे कह सकता है कि लापिड का बयान उनकी निजी राय है। कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर एक फिल्मकार घटिया बयान दे जाता है लेकिन केंद्र सरकार मुंह नहीं खोल रही। इसका परिणाम ये हुआ कि अन्य ज्यूरी मेम्बर्स भी लापिड के समर्थन में आ गए।