अजय शर्मा काशी। परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य ‘स्वामिश्रीः’ अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ‘जी महाराज का आत्मीय सान्निध्य और विधर्मी चाँदमियां साँई मुक्त मठ देवालयों ,तीर्थस्थलों के जनजागरण महाअभियान को पूर्ण समर्थन सहित आशीर्वाद स्वरूप अभिनन्दन पुरस्कार प्राप्त हुआ।
कृपया परम् पूज्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामीश्री महाराज जी के अनमोल वचन हम सनातन धर्मियों के लिए विचारणीय हैं….
महाकुंभ 20 जनवरी 2025 “परमधर्मसंसद् ” धार्मिक प्रदूषण की पहचान / निवारण सभा में मेरे द्वारा प्रस्तुत निम्न तथ्य…
सनातन तीर्थस्थानों देवालयों में बैठे.
विधर्मी सांई, “भगवान” नहीं…
तीर्थ देवालयों में एक #प्रदूषण है–“सांईं”
सनातन धर्मियों के जब धर्म, लोक और शास्त्र अनुमोदित भगवान शिव ,भगवान विष्णु श्रीराम ब्रह्मा जी ,सूर्य,और गणेशादिक 33 कोटि देवी देवताओं की मूर्तियाँ और भगवान शिव का पवित्र शिवलिंग एवं जलतीर्थ स्थान भुक्ति-मुक्ति प्रदायक कहे गए है तो विधर्मी चाँदमियां उर्फ सांई को देव रूप में मठों, देवालयों तीर्थस्थलों में पूजने की क्या आवश्यकता है??
सनातन संस्कृति परम्परा और शास्त्रोचित वैदिक पूजा अर्चन से विमुख हो सनातनी हिन्दुओं द्वारा पौराणिक तीर्थस्थानों देवस्थानों में संक्रमित चाँदमियां उर्फ सांई को बैठाकर पूजित करना अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण एवं महापाप है।
अपूज्या; यत्र पूज्यन्ते पूज्यानाम् च निरादर।
त्रीणि तत्र प्रविशन्ति, दुर्भिक्षं मरणं भयम्।।
(पद्मपुराण)
अर्थात्– जहाँ पर अयोग्यों को पूजा जाता है और विद्वानों का निरादर किया जाता है, वहाँ तीन चीजें प्रवेश कर जाती है- १.भुखमरी २. मृत्यु ३. भय अर्थात् भय से ग्रसित रहते हैं।
लालापिवे च दुष्प्रेक्ष्य तीर्थाप्सु ष्ठीविनं नय ।
आमपाके च गर्भघ्नं शूलपाकेऽन्यतापिनम् ॥
(काशीखण्ड)
अर्थात् उत्तम दर्शन योग्य तीर्थों में थूकने वाले को लाला-पीव में और गर्भ-विनाशक को आम-पाक में तथा दूसरे को सन्ताप देने वाले को शूलपाक नरक में ले जाओ।
कलयुग के प्रभाव में आज चारो ओर थोड़े धन की लालच, चमत्कार के भ्रम से भ्रमित सनातन समाज के कुछ दिग्भ्रमित लोग पवित्र देवालयों और तीर्थ स्थलों में प्रदूषण रूपी सांई की प्रतिमा हमारे भगवान शिव,भगवान राम, देवी दुर्गा एवं गणेश जी आदि अन्य देवी देवताओं से ऊपर स्थापित कर पूज रहे हैं। अभी इससे मन नहीं भरा तो विधर्मी सांई को हमारे देवताओं का रूप ही दे डाल रहे हैं।
शर्मनाक तो यह है कि यह पापपूर्ण कृत्य सनसनी ही कर रहे हैं
बन्धुओं जागो…
शास्त्र मर्यादा को जाने और समझें..
आईये आवाहन करें..
देवस्थान तीर्थस्थान विधर्मी चाँदमियां उर्फ सांई मुक्त हो
चलो उठो धर्मनिष्ठ सनातन बन्धुओं देवालयों में संक्रमित चाँदमियां उर्फ सांई मुक्त करें…
प्रदूषण से देवालयों को शुद्ध करें..
सनातन मन्दिरों तीर्थस्थानों पर संक्रमित सांई के हिन्दू न होने के कुछ साक्ष्य निम्नलिखित है…
१. सांई का हिंदू धर्मानुसार अग्निसंस्कार नहीं हुआ था। उन्हें मुस्लिम प्रथानुसार दफन किया। अनुयायियों ने मजार को समाधी घोषित किया। मजार अर्थात मृतशरीर वा प्रेत को गाड़ा गया है। समाधि अथवा अग्निसंस्कार पश्चात् बची अस्थी, रक्षा को विधिवत् रखा गया हो।
आश्चर्य की बात है, हम किसी का अंत्येष्ठि कर श्मशान से लौटते हैं तो स्नान करते ही हैं। घर में मृत्यु हो तो अग्नि संस्कार के पश्चात् स्नान करके ही घर में प्रवेश करते हैं। पर लोग सांई मजार पर माथा टेक स्नान तो छोडो उलटा अत्यन्त आनन्दित होते हैं।
२. सांई मस्जिद में रहते थे। शिर्डी में तभी क्या भक्तों के घरों का, मंदिरों का अभाव था जो जीर्ण मस्जिद में रहना को सोचा। किसी भी आश्रम, मंदिर प्रांगण, मठ आदि में निवास बनाया जा सकता था, पर मस्जिद में ही क्यूँ?
३. सांई अल्लाह मालिक ऐसा उच्चारण करते थे (साई चरित्र, शिर्डी, हिंदी पृष्ठ संख्या ३७)। आज तक हमने किसी भी नाथ सम्प्रदायी को अल्लाह का स्तवन करते सुना नही।
४. सांई जैसे अपने सर पर कफन पहनते वैसे हिन्दू धर्म में कोई भी देवी देवता नहीं पहनते। जबकि सनसनी वेशभूषा टोपी, फेटा, पगड़ी, साफा, मुकुट आदि है।
५. साई अन्य फकीरों के साथ आमिष (मांसाहार) तथा मछली खाते थे (पढ़िये साई चरित्र, शिर्डी, हिंदी, अध्याय ७ वा)। सनातन धर्म में प्यास लहसून, अंडा, मांसाहार, मछली, कदापि स्वीकार्य नहीं। यह तामसी भोजन है, घोर पाप।
६. वहाँ मूर्ती थी ही नहीं। साई का प्रचार प्रसार कर हिंदूओ को आकर्षित करने हेतू 07 अक्टूबर 1954 को शिर्डी में मूर्ती स्थापित की गई।
महादेव..✍🏻..अजय शर्मा काशी