मुंडका आग हादसे के देवदूत बने क्रेन ड्राइवर अनिल तिवारी और दयानंद तिवारी ने अपनी जान पर खेलकर, एक-दो नहीं, बल्कि 50 लोगों को बचाया। लेकिन कहीं इनका नाम आपने सुना? चूंकि दोनों जान बचाने वाले ‘तिवारी ब्राह्मण’ हैं, इसलिए जान पर खेलकर लोगों को बचाना मीडिया में चर्चा का विषय नहीं बना!
इनकी जगह कोई ‘हरा टिड्डा’ होता तो 24 घंटे चकल्लस भी होता, राजनेता उनके घर भी दौड़ते, सरकारें ट्वीट पर ही पुरस्कारों की घोषणा कर देती और ‘षठ्मक्कार’ सोशल मीडिया पर गंगा-जमुना की धारा बहा देते!
सोचिए सोशल मीडिया के युग में जब हिंदू ब्राह्मणों की पहचान मिटाना संभव है तो मध्य युग, ब्रिटिश युग और नेहरूवादी युग में इनको इतिहास के पन्नों से गायब करना और इनको खलनायक साबित करना कितना आसान रहा होगा? एक बार सोचिएगा अवश्य!