अर्धनग्न वस्त्रों में घूमें , शर्म उन्हें न आती है ;
आमंत्रण गुंडों को देतीं , अपनी इज्जत लुटवाती हैं ।
जाने कैसे अभिभावक हैं ? संस्कार भी नहीं दिये ;
केवल नोट कमाते रहते , धर्म के उनके बुझे दिये ।
झूठे इतिहास को पढ़ते-पढ़ते , खुद को भी ये भूल गये ;
बनावटी है पूरा जीवन , हिंदू – संस्कृति को भूल गये ।
तड़क-भड़क की चकाचौंध में , चुधिंयाई आंखें इनकी ;
भीतर से एकदम खाली हैं , हस्ती मिटने वाली इनकी ।
धर्म से जो भी दूर हुआ है , उसका सत्यानाश हुआ है ;
न घर का वो नहीं घाट का , धोबी का कुत्ता ही हुआ है ।
सत्तर – साल से पहले तक तो , थोड़ी बहुत गनीमत थी ;
बाद के काले अंग्रेजों ने , झुठला दी जो हकीकत थी ।
हिंदू सब सच्चाई भूले , झूठे इतिहास की लानत से ;
लोभ,स्वार्थ और भय का फंदा,पहन लिया फिर लालच से ।
शेर – वृत्ति हिंदू सब भूले , कायरता को गले लगाया ;
धर्म – संस्कृति भूले सब अपनी , फैशन में है वो चकराया ।
जो भी धर्म से दूर हुआ है , बुद्धि से वो भ्रष्ट हुआ ;
अच्छे बुरे की पहचान नहीं है, चरित्र भी उसका नष्ट हुआ ।
चरित्र नहीं तो कुछ भी नहीं है , लक्ष्मीपति भी निर्धन है ;
सबसे बड़ी चरित्र की दौलत , सबसे बड़ा यही धन है ।
धर्म बिना कुत्ते सा जीवन , हरदम पूंछ हिलाता है ;
कोई न सम्मान है उसका , स्वयं-दृष्टि से गिर जाता है ।
किसी काम का नहीं है जीवन , धरती के ये बोझ हैं ;
रोते आये जायेंगे रोते , खुद पर ही ये बोझ हैं ।
सत्तर साल की जो लानत है , तुम छुटकारा पा सकते हो ;
खुद को जानो ,धर्म को जानो ,जीवन उन्नत कर सकते हो ।
पहले सच्चे इतिहास को जानो , सोशल मीडिया हाजिर है ;
धर्म – ग्रंथ श्रद्धा से पढ़ना , धर्म – सनातन जाहिर है ।
धर्म – सनातन सर्वश्रेष्ठ है , सही राह दिखलायेगा ;
जो भी तुमसे दूर हुआ है , घर वापस आ जायेगा ।
सबसे बड़ा वरदान धर्म है , जीवन सफल बनाता है ;
लोभ ,लालच, भय ,भ्रष्टाचार से , हरदम हमें बचाता है ।
अब लौ नसानी अब न नसाओ , धर्म राह पर आ जाओ ;
धर्म की राह सुगम करने को , देश को हिंदू – राष्ट्र बनाओ ।
“वंदेमातरम-जयहिंद”
रचयिता:ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”