चलो आज मैं आपको अपना एक संस्मरण सुनाता हूं। यह 2014 का जनवरी-फरवरी महीना था। चुनाव का शोर था। मेरी पुस्तक ‘साजिश की कहनी तथ्यों की जुबानी’ आ चुकी थी। इसमें एक अध्याय केजरीवाल को एक्सपोज करते हुए था।
इस अध्याय के कारण संघ और भाजपा का हर नेता मुझे बधाई देते हुए कहता, ‘संदीप आपने केजरीवाल को डी-कोड कर दिया, अन्यथा हम समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह चीज क्या है?’
आज का स्टार भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने मेरे मित्र Dr-Chandrashekher Rai से कहा, ‘राय जी आपने ऐसे समय में हम भाजपा प्रवक्ताओं के लिए गीता के समान पुस्तक उपलब्ध करा दी है।’ राय जी ने मुझे दिखाते हुए संबित से कहा, ‘आप जानते हैं यह कौन हैं?’ ‘नहीं’ संबित ने कहा। ‘अभी-अभी आपने जिस पुस्तक को गीता कहा है, उसके लेखक यही हैं।’
यह पुस्तक इतना प्रचलित हुआ कि Prakash Sharma ji के सहयोग से माननीय अशोक सिंघल जी अस्वस्थ अवस्था में स्वयं चल कर मुझे आशीर्वाद देने आए और सार्वजनिक रूप से कहा कि ‘यह पुस्तक श्रीराम जी की कृपा से लिखी गई है।’
स्वयं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मुझे बुलवा कर गले लगाया। आज भी PMO से फोन आया कि पांच कॉपी ‘साजिश की कहानी भेज दीजिए।
विश्व हिंदू परिषद ने पूरे देश के अपने कर्यालय से इसे बंटवाया। मोहन भागवत जी आज भी ‘साजिश की कहानी’ और ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ पढ़ने की सलाह कई बार कई स्वयंसेवकों को दे चुके हैं। कुछ स्वयंसेवकों ने ही यह मुझे बताया है।
यह पुस्तक इतनी प्रचलित हुई की चांदनी चौक में इसकी फोटो कॉपी बांटते एक युवक ने मुझे ही पकड़ा दिया। मैंने पूछा, ‘क्या है यह? और किसने लिखी है?’ उसने कहा, ‘इस पुस्तक में भारत के विरुद्ध सारी साजिश खोली गई है। संदीप देव हैं इसके लेखक।’ मैंने छेड़ने के उद्देश्य से पूछ लिया, ‘कौन है यह संदीप देव? मैंने तो नाम नहीं सुना!’
उसने कहा, ‘पहले पढ़िए। खुद जान जाएंगे कौन हैं संदीप देव!’ ऐसी एक और घटना मेरे साथ ट्रेन में भी हुई। ‘कहानी कम्युनिस्टों’ की पढ़ रहे एक बुजुर्ग ने मुझे वह पुस्तक दिखाते हुए कहा, ‘ पहले इसे पढ़िए।’ मैं अपने एक मित्र के साथ नेहरू को लेकर कुछ विमर्श कर रहा था कि अचानक ऊपर के बर्थ से उतर कर वो आए और हमारे बीच ‘कहानी कम्युनिस्टों’ की रख दिया। हम मुस्कुराए।
‘साजिश की कहानी’ की उस सफलता के बीच एक दिन आम आदमी पार्टी के कर्यकार्ताओं ने मेरे घर पर हमला कर दिया। मेरे घर के नीचे नारेबाजी की। दिल्ली में मेरे अभिभावक तुल्य Ajit Dubey ji ने मुझे एक दिन बुलाया और हमारे क्षेत्र के संघ के एक पदाधिकारी से मिलवाया। मैंने वहां इस घटना की चर्चा करते हुए कहा कि हमारे मोहल्ले के पार्क में प्रतिदिन की शाखा में जो स्वयंसेवक जाते हैं गणवेश में एक दिन सुबह मेरे घर चाय पीने आ जाएं तो कम से कम हमला करने वालों को यह पता चल जाएगा कि मेरा भी इस मोहल्ले में समर्थन है।
‘हां-हां हो जाएगा’। उन्होंने कहा। उस दिन से आजतक मैं प्रतीक्षारत ही हूं कि संघ से कोई मेरे घर चाय पीने आए, लेकिन कोई नहीं आया।
मैं समझ गया कि मुझे अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी। उस दिन से मैं अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा का इंतजाम स्वयं रखता हूं। लेकिन मैं उस दिन जान गया कि आप भले फूल कर कुप्पा हो रहे हों कि आपको फलनवां जानता है, ढिकनवा जानता है, लेकिन सच यही है कि संकट में कोई आपके साथ नहीं आएगा।
आपको स्वयं सक्षम होना पड़ेगा और साथ ही उन लोगों पर समय-समय पर हथौड़ा भी चलाना पड़ेगा जिनके लिए आप तो हमेशा खड़े रहते हैं, लेकिन जो संकट पड़ने पर आपके लिए कभी नहीं आते।
मैंने जानबूझकर यह पोस्ट उन लोगों को टैग किया है जो मेरी कही बात के गवाह हैं। अन्यथा ‘नये-नये नमाजी’ बने कुछ ‘नयनसुख’ बातों को समझने की जगह यहां भी अपनी मूढ़ता लेकर कूद पड़ेंगे। वैसे मूढ़ों को भला कौन रोक पाया है?
याद आता है, एक बार अमित शाह जी ने मुझसे एक पत्रकार का नाम लेते हुए कहा था, ‘संदीप मुझे आलोचना पसंद है। इससे पता चल जाता है कि पार्टी सही दिशा में चल रही है कि नहीं।’ वह ‘नये नमाजी’ जो बंगाल के अपने ही वैचारिक साथियों की मृत्यु पर कुतर्क कर रहे हैं, ईश्वर न करे कभी उनके या उनके परिवार के साथ कुछ बुरा हो!
मैं उन्हें भरोसा दिलाता हूं, तब भी मैं किसी व्यक्ति, पार्टी या सरकार को छोड़कर उसके और उसके परिवार के लिए लड़ूंगा, क्योंकि हर हिंदू मेरा अपना है। मेरे लिए एक-एक हिंदू जान अमूल्य है। व्यक्ति से समाज बनता है, इसलिए वैचारिक व्यक्तियों को बचाना और उसके लिए आवाज उठाना हम सबकी जिम्मेदारी है। जय भारत!
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