“शंकराचार्य” व “निग्रहाचार्य” को
अब तो केवल विश्व-युद्ध ही , सोये-हिंदू को जगा सकता है ;
धर्म-मार्ग पर ला सकता है , अच्छा-शासन पा सकता है ।
अभी तो भ्रष्टाचार का शासन , सारे अत्याचार हो रहे ;
नेता – अफसर व अपराधी , इक-दूजे से गले मिल रहे ।
साथ में इनके ढोंगी-बाबा , लौंडा-बाबा , अंधा-बाबा ;
दाढ़ी-बाबा का पूरा साथ है , काशी को बना रहे काबा ।
नब्बे – प्रतिशत टुकड़खोर हैं , धर्माचार्य – कथावाचक ;
धर्म का कोई ज्ञान नहीं है , हिंदू ! के ये पथभ्रष्टक ।
इन सबकी मोटी है चमड़ी , गेंडे सी मोटी खाल है ;
सारे-कोतवाल हैं इनके सैंया , संग खेलें फुटबॉल हैं ।
चोर – पुलिस का खेल खेलते , अंदर से सब एक हैं ;
बेचारी-जनता फुटबॉल बनी है , लातें खाता हर-एक है ।
धर्महीन – अज्ञानी हिंदू ! सही – राह न आयेगा ;
अब्बासी-हिंदू ने फांस रखा है , सही-मार्ग न पायेगा ।
“शंकराचार्य” हैं “निग्रहाचार्य” हैं,पर मूरख हिंदू उन्हें न सुनता ;
केवल ताली पीट रहा है , धर्म-मार्ग पर कभी न चलता ।
अज्ञान की ऐसी गहरी-निद्रा , मौत से बाजी लगी हुयी है ;
विश्व-युद्ध ही मार्ग है अंतिम, सदा ही भय से प्रीति हुयी है ।
ताबड़तोड़ गिरें एटम-बम , गेहूं – घुन सब पिस जायें ;
धरी पाप की रहे कमाई , भ्रष्टाचारी सब मिट जायें ।
भगदड़ में मरने से अच्छा , क्षण-भर में ही मर जाओ ;
लौंडा-बाबा बता चुका है , मरकर तुम सब मोक्ष को पाओ ।
लौंडा-बाबा भी वहीं मिलेगा , अंधा-बाबा भी पहुंचा होगा ;
दाढ़ी-बाबा भी साथ रहेगा , पूरा सरकस वहीं जमेगा ।
अच्छा है दुनिया मिट जाये , सृष्टि का नव-अंकुर फूटे ;
मिटने के योग्य है सारी-दुनिया , हर अच्छा-ख्वाब यहां टूटे ।
कुदरत का कानून यही है , या तो सुधरो या मिट जाओ ;
हिंदू ! अब भी बच सकते हो , बस जल्दी से सुधर जाओ ।
स्वार्थ ,लोभ ,भय ,लालच छोड़ो , धर्म-मार्ग को अपनाओ ;
अब्बासी-हिंदू नेता को त्यागो व अच्छी-सरकार बनाओ ।
हिंदू ! तुमको यदि बचना है , तो इसको करना ही होगा ;
“शंकराचार्य” व “निग्रहाचार्य” को, पूरी श्रद्धा से सुनना होगा ।
सारे पाखंडी – बाबा छोड़ो , धर्म – सनातन में आओ ;
रामायण,गीता,महाभारत , इनके अध्ययन-मनन में आओ ।
धर्मनिष्ठ-सरकार बनाकर , पूरी-दुनिया को मार्ग दिखाओ ;
विश्व-युद्ध भी रुक सकता है , एटम-बमों से बच जाओ ।