अर्चना कुमारी। कथित तौर पर असम और बाकी पूर्वोत्तर को भारत से ‘‘अलग करने’’की धमकी देने वाले शरजील इमाम के खिलाफ अदालत ने देशद्रोह का आरोप तय किए । अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने धारा 124ए (देशद्रोह), 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 153बी (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक आरोप, अभिकथन), धारा 13 के तहत आरोप तय किए।
इसके अलावा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, और आईपीसी की 505, जो सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित बयानों से संबंधित है आरोप तय किया जाए। जैसा कि आपको पता है कि शरजील इमाम ने 13 दिसंबर 2019 को दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में और 16 जनवरी, 2020 को यूपी की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इस तरह के कथित भड़काऊ भाषण दिए जबकि उसे बिहार से पकड़ा गया और इन दिनों वह 28 जनवरी, 2020 से न्यायिक हिरासत में जेल में हैं ।
इससे पहले साकेत अदालत के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट दिनेश कुमार ने उसे जामिया में 13-14 दिसंबर, 2019 को हुई हिंसा से संबंधित जामिया नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज 2019 हिंसा मामले में जमानत दे दी थी लेकिन वह दंगा और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के अपराधों के लिए आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामलों के सिलसिले में न्यायिक हिरासत में है।
बताया जाता है इमाम की ओर से पेश अधिवक्ता तनवीर अहमद मीर ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि इमाम द्वारा दिए गए भाषणों में हिंसा का कोई आह्वान नहीं था और अभियोजन द्वारा लगाए गए आरोप केवल बयानबाजी थे, जिनका कोई आधार नहीं था। उन्होंने कहा सरकार की आलोचना करना राजद्रोह का कारण नहीं हो सकता है और किसी व्यक्ति को पूरी तरह संदेह के आधार पर आरोपी नहीं किया जा सकता है।
अभियोजन पक्ष के इस तर्क का खंडन करते हुए कहा गया कि इमाम ने अपना भाषण ‘अस-सलामु अलैकुम’ शब्दों के साथ शुरू किया था, जो यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि यह एक विशेष समुदाय को संबोधित किया गया था, न कि बड़े पैमाने पर, इस पर मीर ने कहा, क्या अभियोजन पक्ष चार्जशीट वापस ले लेता, अगर शरजील इमाम ने गुड मॉर्निंग, नमस्कार आदि के साथ अपना भाषण शुरू किया होता । बयान बेहद खोखला और खालिश बयानबाजी है।
लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने इस तर्क का विरोध किया कि विरोध करने का मौलिक अधिकार उस सीमा से आगे नहीं जा सकता, जिससे जनता को समस्या हो।उन्होंने अमित साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह कहा गया था कि “हमें यह निष्कर्ष निकालने में कोई संकोच नहीं है कि सार्वजनिक रास्तों पर इस तरह का कब्जा, चाहे वह प्रश्नगत जगह पर हो या कहीं और स्वीकार्य नहीं है और प्रशासन को क्षेत्र को अतिक्रमण या अवरोधों से मुक्त रखने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए।उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कथित राजद्रोही भाषण देकर, इमाम ने भारत की संप्रभुता को भी चुनौती दी और मुसलमानों में ‘निराशा और असुरक्षा की भावना’ डालने की कोशिश की कि उनके पास देश में कोई उम्मीद नहीं बची है।