प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज ।वेदप्रताप वैदिक जी एक सच्चे राष्ट्रभक्त पत्रकार थे। उनकी तेजस्विता, सच्चाई और साहस निर्विवाद है। यद्यपि अनेक विषयों में वे अतिरंजना भी करते थे ।जिसको लेकर हममें परस्पर खुलकर विनोद होता था।उनसे यह संबंध किसी भी अन्य का नहीं था कि उनके मुँह पर ही उनकी अतिरंजना को लेकर विनोद करे।परंतु कुल मिलाकर वेदप्रताप वैदिक जी निर्भीक और राष्ट्रभक्ति से भरपूर पत्रकार थे।
वे आर्य समाज के संस्कारों से भरपूर थे और ऋषि दयानंद के परम भक्त थे । जब वे विश्वविद्यालय में थे तो उन्होंने हिंदी में अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया जिसे उनके शोध निर्देशक ने तो मान लिया था परंतु विश्वविद्यालय ने मान्यता देने से अस्वीकार कर दिया। उस समय डॉक्टर राम मनोहर लोहिया जी थे और उन्होंने हम सब को निर्देश दिया कि इसका प्रचार करो और विश्वविद्यालय का जमकर विरोध करो।
समाजवादी युवजन सभा ने वैदिक जी के पक्ष में और विश्वविद्यालय के निर्णय के विरोध में प्रदर्शन किए थे जिनमें हम सब लोग भी थे।
उन्होंने पत्रकारिता में बहुत से महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वाह किया ।नई दुनिया से लेकर प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया तक और मुख्य बात यह है कि जब वे प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में थे, तब भी वे इतने आदर और प्रेम से मिलते थे जैसे कि हम लोग युवावस्था में मिलते थे।कई मुद्दों पर हम लोगों का मत अलग अलग रहता था परंतु सदा सम्मान पूर्वक असहमति हम लोग व्यक्त करते थे।
विदेश के राजपुरूषों, विशेषकर मुस्लिम राष्ट्रों के अध्यक्षों तथा प्रमुख राजनेताओं से उनका संबंध गहन बना रहा और उन्होंने उनके पक्ष में कई बार शासकों को प्रभावित करने का भी प्रयास किया ।कई बार सफल भी रहे।परंतु उसके पीछे उनकी दृष्टि सदा राष्ट्रहित की उनकी समझ के अनुसार होती थी ।
हम लोग अच्छी तरह जानते हैं कि उन्होंने कभी भी अपनी समझ से राष्ट्रहित के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया यद्यपि हम उनकी बातों से असहमति रखते थे। परंतु उनका इस विषय में सदा सम्मान करते थे। स्वामी रामदेव जी के आंदोलन में भी उन्होंने भरपूर समर्थन दिया। प्रोफेसर कुसुमलता केडिया जी को वह अपनी बहन मानते थे और उनसे उनकी अकसर फोन पर बातचीत होती रहती थी और तब प्रायः मुझसे भी बात हो ही जाती थी ।
जब टाइम्स ऑफ इंडिया ने दिनमान तथा अन्य पत्रिकाओं को बंद किया तो उन्होंने एक बड़ी महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी और कम से कम 20 बार उन्होंने उस विषय पर हम से मंत्रणा की । वस्तुतःउन्होंने तो दिनमान का एक अंक छाप भी दिया था या शायद एक से अधिक अंक भी छापे थे और मुझे तो उन्होंने यही आश्वासन दिया था कि बस अब हम लोग दिनमान शुरू करने जा रहे हैं । परंतु संभवतया मुकदमों के कारण या किसी अन्य कारण से फिर वह कार्य सफल नहीं हुआ ।अगर वह दिनमान निकालते तो वह एक अत्यंत महत्व का राष्ट्रीय पत्र होता ।
राष्ट्र के विषय में गहरा मतभेद होने पर भी उन्होंने सदा हमारे मत का सम्मान किया और कहा कि ठीक है इस विषय में हम दोनों के मत अलग हैं परंतु हम परस्पर आदर करते हैं ।
जब मेरी पुस्तक” गांधीजी की विश्व दृष्टि ‘का लोकार्पण हुआ तो यह लोकार्पण तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री श्री अर्जुन सिंह जी के निवास पर हुआ जिसमें विद्यानिवास मिश्र जी और वेद प्रताप वैदिक जी दोनों उपस्थित थे । दोनों ने हमारी पुस्तक की इतनी प्रशंसा की कि मुझे बहुत संकोच होने लगा ।
लेकिन वैदिक जी की मुख्य बात यह थी कि उन्होंने अर्जुन सिंह जी के मुंह पर यह कहा कि गांधीजी की असली हत्या तो कांग्रेस ने की है और नित्य कर रही है। यह बात अर्जुन सिंह जी के मुंह पर और उनके आवास पर कहने का साहस केवल वेद प्रताप वैदिक कर सकते थे ।उस कार्यक्रम में अजीत जोगी स्वयं श्रोता के रूप में उपस्थित थे तथा अन्य अनेक महत्वपूर्ण व्यक्ति उपस्थित थे और वहीं पर वैदिक जी ने हमारी पुस्तक “आज की अपेक्षाएं”को ,मार्क्स के कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो केसमान महत्वपूर्ण पुस्तक कहा था। वह भाषण रिकार्डेड है।
उस पुस्तक के अनेक अंशों का बाद में देश के बहुत महत्वपूर्ण और बहुचर्चित युवकों ने राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग किया ,भले ही अपने नाम से किया। पर हमें उसकी सदा खुशी ही हुई।
वैदिक जी की विदेशों में भी बहुत महत्वपूर्ण व्यक्तियों से मैत्री थी। भारत के महत्वपूर्ण लोगों से तो थी ही। देशभर के संपन्न लोगों से उनके निकट के संबंध थे और लखनऊ के मेयर रहे दाऊजी गुप्त संभवत उनके स्वसुर या अति निकट के संबंधित थे। भारतीय जनता पार्टी के लगभग सभी नेता उन्हें निजी तौर पर जानते रहे । कांग्रेस के नेताओं में भी उनकी प्रतिष्ठा रही है । आखिर उन्हें प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया का निदेशक कांग्रेस ने ही बनाया था।अटल जी से उनकी गहरी मैत्री थी।
इस प्रकार वे दलीय सीमाओं से ऊपर उठे हुए एक बड़े राष्ट्रभक्त थे। उनका जाना राष्ट्रीय विचार जगत और पत्रकारिता जगत दोनों के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है । यद्यपि वे अत्यंत गौरवशाली और श्रेष्ठ, यशस्वी और प्रशंसनीय जीवन जी कर गए हैं और वह जीवन सब प्रकार से गौरव के योग्य है । उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।