२००२ में गुजरात दंगो में कुछ बिकाऊ पत्रकारों द्वारा की गयी गलत रिपोर्टिंग का सच सामने आ चुका है! किस तरह से नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ लॉबिंग का खेल रचा गया! तीस्ता सीतलवाड़ उसके एनजीओ और बिकाऊ मीडिया ने झूठ का जो चक्रव्यूह रचा था,उसका सच बाहर आ चुका है !
सर्वप्रथम गुजरात दंगो की जांच करने वाली समिति ने अमित शाह और नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी ! हाल में डी.बंजारा को भी नुसरत जहाँ फर्जी इनकाउंटर मामले में निर्दोष मानते हुए अपना फैसला दिया! प्रेस्टीट्यूट मीडिया का झूठ एक बार फिर बेनकाब हुआ! भारतीय बिकाऊ मीडिया ने नुसरत को बेगुनाह बताने के लिए दिन दिन भर ख़बरें चलाई! झूठ लंगड़ा होता है चल तो सकता है लेकिन थोड़ी ही देर में लड़खड़ा जाता है! भारतीय बिकाऊ मीडिया का इतना ज्यादा चारित्रिक पतन हो चुका है कि कई बार वह देश विरोधी रिपोर्टिंग कर चुका है जिससे देश कि छवि अंतरष्ट्रीय स्तर पर ख़राब हुई है।
जेएनयू मामले में तो भांड मीडिया पूरी तरह नग्नता पर आ गयी! देश विरोधी तत्वों के साथ मिल कर देश को पूरे संसार के सामने हाशिये पर ला खड़ा किया! असहिष्णुता के नाम पर पुरस्कार वापसी का खेल सबने देखा और समझा भी लेकिन सोशल मीडिया ने इस बार मीडिया के फैलाए इंद्रजाल को ध्वस्त कर दिया और बिकाऊ मीडिया को फिर मुंह की खानी पड़ी ! इस बार भी फैसला आया जांच समिति ने जेएनयू में लगे देश विरोधी नारों वाले वीडियो की प्रमाणिकता पर मुहर लगा दी है! बिकाऊ मीडिया के मुंह पर झूठ की कालिख पोत दी. भारतीय बिकाऊ मीडिया एक बार फिर झूठा साबित हुआ।
अब ‘आज तक’ चैनल के दामन पर भी गलत रिपोर्टिंग कर दंगे भड़काने का आरोप लगाया गया है! लखनऊ की एक जांच एजेंसी ने मुजफ्फर नगर दंगे की जाँच के दौरान यह पाया कि ‘आज तक’ चैनल ने दंगो के दौरान झूठी रिपोर्टिंग की और दंगे भड़काने का काम किया hindi .revortpress.com की १७ फरवरी की पोस्ट के अनुसार आज तक चैनल को उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आज़म खान के खिलाफ मुजफ्फरनगर नगर दंगो के दौरान फर्जी स्टिंग ऑपरेशन चला कर देश में सांप्रदायिक माहौल खराब करने का दोषी माना है! उत्तरप्रदेश विधान सभा के सात सदस्यीय जाँच दल ने ‘आज तक’ के आजम खान के स्टिंग ऑपरेशन को फर्जी मानते हुए आज तक चैनल के एडिटर पुन्य प्रसून बाजपेयी,मैनिजिंग एडिटर सुप्रिया प्रसाद और एंकर राहुल तंवर पर भारतीय दण्ड संहिता के तहत मुक़दमा दायर करने के अपील की थी।
अब सवाल यह उठता है कि इतनी स्वछंदता दे कर भारतीय मीडिया का कुछ प्रबुद्ध वर्ग बेलगाम हो चुका है! वह हर तरह से राष्ट्र विरोधी तत्वों में संलिप्त पाया गया है! बोलने और लिखने की आज़ादी के तहत राष्ट्र विरोधी कृत्यों को कब तक नजरअंदाज किया जाए यह यक्ष प्रश्न है! इसका समाधान अभी नहीं ढूंढा गया तो ये देश को अभिव्यक्ति की यह आजादी महंगी पड़ सकती है।