श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
तुलसी झूठे भगत की पति राखत भगवान ।
जिमि मूरख उपरोहितहिं देत दान जजमान॥
धनीदास ने कहा ‘प्रभो ! अतः कल निश्चय ही मेरे प्राण जायँगे, मै अपनी करनी पर पछता रहा हूँ। श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी को धनीदास पर दया आ गयी, कहा, ‘ चिंता मत करो, कल ठाकुरजी प्रत्यक्ष ही भोग पाएंगे। तुम उत्तमोत्तम व्यंजन बनाओ ।’
और सचमुच ही दूसरे दिन राजा के सामने ही ठाकुरजी को भोग लगाया गया और गोस्वामीजी की प्रार्थना पर प्रत्यक्ष ठाकुरजी ने ही भोग खाया। लोग यह दृश्य देखकर निहाल हो गए। इसी प्रसंग की ओर निर्देश करता हुआ गोस्वामीजी का दोहा है-
तुलसी झूठे भगत की पति राखत भगवान ।
जिमि मूरख उपरोहितहिं देत दान जजमान ॥
पर राजा रघुनाथसिंह तो जान गए कि यह तो इन्हीं नवागंतुक संत का चमत्कार है। इन्होंने दया कर धनीदास के प्राण बचा लिए। राजा ने तुलसीदासजी का सुयश तो सुना था परंतु दर्शन नहीं किया था। जब उन्हे पता चला कि यही रामचरितमानसकार तुलसीदासजी यही हैं तब तो वह बहुत ही श्रद्धा भक्तिपूर्वक अनुनय विनय करके इन्हें अपने घर लें गए। गोस्वामीजी ने वहाँ कुछ दिन निवास किया। राजा रघुनाथसिंह पर प्रसन्न होकर उस गाँव का नाम बेलापतार से बदलकर रघुनाथपुर रख दिया। उसी गाँव में एक गोविंद मिश्र नाम के परम भागवत निवास करते थे, जिनकी प्रेम दृष्टि से कुलिश और पाषाण भी द्रवित हो जाते थे। उन्होंने भी गोस्वामीजी का दर्शन और सत्संग कर अपने को परमधन्य माना।
वहाँ से चलकर आप हरिहर क्षेत्र होते हुए मिथिलापुरी के समीप पहुँचे तो बडे जोरणकी भूख का अनुभव हुआ। एक वृक्ष के नीचे बैठकर सोच ही रहे थे की क्षुधा निवृत्ति के लिए कौनसा उपाय करूँ, तब देखा की एक छः सात वर्ष की बालिका बड़े से कटोरे में खीर भरकर ले आई, और बडे प्रेम से खाने का अनुरोध कर रही है। भूख तो लगी ही थी, प्रभुकृपा का विचार कर खीर खा ली। अद्भूत स्वाद था आज की खीर का। बालिका रिक्त पात्र लेकर कुछ दूर जाते ही अंतर्धान हो गई, तब गोस्वामीजी समझ गये ये कोई और नहीं साक्षात जगज्जननी श्रीजानकीजी थीं। उनकी अहैतु की कृपा का अनुभव करके गोस्वामीजी भाव विह्वल हो गए।
इसके आगे गोस्वामीजी हाला नामक गाँव में पहुँचे। वहाँ के ब्राह्मणों को पता चलने पर वे गोस्वामीजी के पास आकर अपना दुखडा रोने लगे, ‘महाराज ! यहाँ का सूबेदार बड़ा दुष्ट है। हम लोगों को श्रीरामजी के विवाह में बारह गाँव मिले थे, वह इसने छीन लिए हैं। हम लोग वृत्तिहिन होने से बहुत कष्ट पा रहे है।’
क्रमशः (भाग – ३०)
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷