श्वेता पुरोहित।
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरु तुलसी तोर सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास।
गतांक से आगे –
मीन राशिपर शनैश्चर के पहुँचने से काशी में महामारी का बड़ा भारी प्रकोप हुआ। सभी संभावित प्रयत्न करके हार गये पर एक भी उपाय काम नही कर रहा था। अंततोगत्वा सबलोग गोस्वामीजी की शरण में आ गए।
काशी की महामारी से त्रस्त लोगों ने गोस्वामीजी की शरण में आकर दुहाई दी-
लागिय नाथ गोहार अपर बल कछु न बसाता ।
राखैं हरि के दास कि सिरजनहार बिधाता ॥
- हे नाथ ! हम आपकी गुहार कर रहे है, हमें दूसरा कोई बल नहीं है और हमारा कोई वश नहीं चलता। अतः हमारी रक्षा अब आप जैसे कोई सच्चे हरि के दास अथवा स्वयं सृजन करनेवाले विधाता ही कर सकते है।
उन लोगों की दीनता देखकर गोस्वामीजी का कोमल चित्त द्रवित हो गया और उन्होंने कवित्त बनाकर भगवान से प्रार्थना की –
संकर सहर सर नर वारि चर
विकल सकल महामारी माजा भई है ।
उछरत उतरात हहरात मरिजात,
भभरि भगात जल थल मीच मई है ॥
देव न दयाल महिपाल न कृपालचित्त
वारानसी बाढत अनीति नित नई है ।
पाहि रघुनाथ ! पाहि कपिराज रामदूत !
रामहू की बिगरी तुही सुधारी लई है ॥
इस कविता मे की गई प्रार्थना के प्रभाव से काशी की महामारी शांत हो गई, सब लोग सुखी हो गए।
एकबार ओरछा राजदरबार के प्रसिद्ध कवि केशवदास जी एवं घनश्याम शुक्ल जी गोस्वामीजी को भी एक अच्छा कवि मानकर उनसे मिलने आए। उस समय गोस्वामीजी कुटि के भीतर भजन कर रहे थे।
एक सेवक ने आकर गोस्वामीजी को सूचना दी। गोस्वामीजी ने कहा ‘केशव प्राकृत कवि हैं। उन्हें आने दो (जो भगवान का यश छोडकर सांसारिक विषयों पर कविता करते है उन्हें प्राकृत कवि कहते हैं) यह बात केशवदास के कानों में पड़ी। गोस्वामीजी का अभिप्राय समझ गए और बिना मिले ही लौट गए।
सेवक से कहा की अब कल मिलूँगा। केशवदास को एक ब्रह्मराक्षस सिद्ध था। उससे जाकर उन्होंने कहा की मुझे रातों रात एक भगवद यशपरक ग्रंथ की रचना करनी है, तुम मेरी सहायता करो। फिर तो ब्रह्मराक्षस प्रत्यक्ष होकर छन्द बोलता गया, केशवदास लिखते गये इस प्रकार रातभर में ‘श्रीराम-चंद्रिका’ काव्य की रचना हुई।
केशवदास उसे लेकर प्रातःकाल फिर उपस्थित हुए। सेवक ने अंदर जाकर कहा तो गोस्वामीजी ने कहा ‘भूत कवि केशवदास को आने दो।’ यह सुनकर केशवदास बड़े लज्जित हुए कि मेरी पोल ये जान गए, और केशवदास समझ गए की गोस्वामीजी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं।
उनकी अब गोस्वामीजी में बड़ी श्रद्धा हो गयी । दोनो खूब हृदयसे मिले। प्रेम भक्ति का आनंद छा गया।
क्रमशः (भाग – ३२)
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷