श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
श्री गुरू पद नख मनि गन जोती सुमिरत दिब्य द्रिष्ट हियॅ होती दलन मोह तम सो सप्रकाशू बडे भाग्य उर आबई जासू।
इस प्रकार अनन्यमाधवदास से मिलकर गोस्वामीजी आगे बढ़े। एक रात बिठूर मे विश्राम किया। वहाँ स्नान करते समय दलदल में धँस गये। वृद्ध शरीर होने के कारण जब उसमें से नहीं निकल पाये तो श्रीगंगा माता ने प्रकट होकर दर्शन दिया और स्वयं उनका हाथ पकड़कर बाहर निकाला।
वहाँ से चलकर संडीले पहुँचे और श्रीगौरीशंकर मिश्र के घर को माथा नवाया। संग के लोगों ने जब इसका हेतु पूछा तो गोस्वामीजी ने बताया कि इस घर में भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय सखा मनसुखा जन्म लेंगे। और सचमुच कुछ दिनों बाद उस घर में एक बालक ने जन्म लिया। उसका नाम वंशीधर रखा गया। यथा नाम तथा गुण को चरितार्थ करते हुए वह बालक वंशी और मोरपंख को स्वाभाविक ही धारण करता था और हमेशा आनंदोन्मत्त होकर नाचता और श्रीकृष्ण गुण-गान करता था। बाद में ये प्रसिद्ध कृष्णभक्त संत हुए।
वहाँ से गोस्वामीजी आगे बढे एक गाँव में छितिपाल नामक ठाकुर ने धन के मद में गोस्वामीजी को दंडवत प्रणाम करना तो दूर उल्टा दूर ही रहकर बहुत उपहास किया। परिणाम स्वरूप थोड़े ही दिनों मे उसका सर्वनाश हो गया।
तभी तो कहा गया है-
साधु अवग्या तुरत भवानी ।
कर कल्यान अखिल कै हानी ॥
इसी प्रकार एक ब्राह्मण के गाँव में गोस्वामीजी ने रात्री विश्राम करना चाहा परंतु वहाँ के ब्राह्मणों ने बड़ा तिरस्कार किया। जिसका फल यह हुआ कि आज तक वहाँ के ब्राह्मण दरिद्रता का कष्ट भोग रहे है।
उसी गाँव के कायस्थों ने गोस्वामीजी का बड़ा स्वागत किया। वह लोग गोस्वामीजी की कृपा से खूब फल फूल रहे हैं। इस प्रकार गोस्वामीजी नैमीषारण्य पहुँचे और वहाँ वनखण्डीजी के साथ तीन महिनों मे लुप्त तीर्थ स्थलों की पुनर्स्थापना की।
वहाँ के पिहानी नामक स्थान के श्रीशुक्लाजी श्रीहनुमानजी के परमभक्त थे। गोस्वामीजी की उनसे भेंट हुई। गोस्वामीजी ने शुक्लाजी के भक्तिभाव की बहुत सराहना की। दोनो वैष्णवों का संमिलन बडा सुखावह रहा।
वहाँ से खैराबाद के प्रसिद्ध हलवाई प्रवीण से मिलते हुए मिसरिख पहुँचे। संग में श्रीवनखण्डीजी और दो चार शिष्य भी थे। फिर कुछ दूर नाव से यात्रा की। मार्ग में रामपुर नाम का नगर लगा।
अपने इष्ट से संबंधित नाम को सुनकर गोस्वामीजी वहाँ उतरे। परंतु राजा के कुछ उद्दण्ड कर्मचारियों से कुछ विवाद हो जाने पर अपना सामान भी वहीं छोडकर चल दिए। किसी ने राजा मानसिंह को इस बात की सूचना दी तो वो भक्त राजा नंगे पाँव दौडकर आए और गोस्वामीजी के चरणों मे गिरकर बहुत अनुनय विनय करके उनको पुनः लौटा लाए।
क्रमशः (भाग – ३६)
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷