श्वेता पुरोहित-
(रामप्रेममूर्ति श्रीमद् गोस्वामी तुलसीदासजी की मुंख्यतः श्रीमद बेनीमाधवदासजीविरचीत मूल गोसाईचरित पर आधारीत अमृतमयी लीलाएँ)
गतांक से आगे –
संसार अपार के पार को सुगम रूप नौका लयो कलि कुटिल जीव निस्तार हित बालमीकि तुलसी भयो
वहाँ से गोस्वामीजी श्रीवृन्दावन धाम आये और श्रीरामगुलेला नामक स्थान में रुके। श्रीवृंदावन में उन दिनों श्रीभक्तमाल के रचयिता श्रीनाभादासजी भी आये हुए थे। वे ज्ञानगुदड़ी मे रुके हुए थे।
उन्होंने श्रीवृंदावन के समस्त संत वैष्णवों को बृहद भंडारा दिया। श्रीवृंदावन में उस भंडारे की धूम मची हुई थी। गोस्वामीजी को भोज भंडारों मे कोई विशेष अभिरुचि नहीं रहती थी। अतः उनकी भंडारे में जाने की इच्छा नहीं थी और श्रीनाभाजी को भी गोस्वामीजी के आगमन का पता नहीं था, जो विशेष आग्रह करके बुलाते। परंतु भगवान शिव इन दो संतों को मिलाना चाहते थे। अतः गोपीश्वर महादेव ने स्वयं प्रकट होकर गोस्वामीजी को भंडारे में जाने की आज्ञा दी।
गोस्वामीजी शिवजी की कृपा और नाभाजी की भक्ति की महिमा विचारकर गद्गद् हो गये और सहर्ष आज्ञा शिरोधार्य कर ली। दूसरे दिन अपने नित्य कृत्य से निवृत्त होकर जब वे भंडारे में पहुँचे तो वहाँ संतों की पंक्ति बैठ चुकी थी।
अतः एक ओर जहाँ संतों की पनहियाँ (जूते) रखी थी, वहीं बैठ गये। किसी ने आगे पत्तल डाल दिया। परोसने वाले साग पूडी परोस गये। जब खीर परोसने वाले आये तो देखा की इनके पास कोई पात्र तो है नहीं, पूछे ‘बाबाजी! खीर किसमें लोगे ?’ उन्होंने तुरंत एक संत की पनहिया (जूता) आगे कर दी और बोले ‘इसी में दे दीजिये। परोसनेवाला तो आग बबूला हो गया।
उसने बहुत उल्टी सीधी सुनाई। पंक्ति में शोर मच गया। श्रीनाभाजी ने सुना तो दौडे आये कि देखे ऐसे कौन संत हैं ? आकर देखा तो वह थे पूज्यपाद श्रीमद गोस्वामी तुलसीदासजी । श्रीनाभाजी चरणों में पड़ गए।
अहो इतने महान संत की ऐसी विनम्रता। सब लोग अवाक् रह गये। फिर तो सभी ने बड़े प्रेम से दण्डवत प्रणाम किया, रसोइयों को पता चलने पर की ये तुलसीदासजी हैं उसने बहुत बहुत क्षमा प्रार्थना की, श्रीनाभाजी ने बड़े आदरपुर्वक ले जाकर प्रसाद खिलाया।
जब सभी संत प्रसाद पा चुके नाभाजी ने उपस्थित सभी संत समूह के बिच श्रीगोस्वामीजी को उच्चासन पर विराजमान करके षोडशोपचार विधि से पूजा कि और बोले, ‘मैने श्रीभक्तमाल की रचना की है, उसके लिए सुमेरु मणि की खोज थी, आज मुझे आप संतों की कृपा से सुमेरु मिल गया।
इसके बाद नाभाजी ने इस छप्पयमे गोस्वामीजी की स्तुति की-
त्रेता काब्य निबंध कियौ सतकोटि रामायन ।
इक अच्छर उच्चरैं ब्रह्महत्यादि पलायन ॥
अब भक्तनि सुख दैन बहुरि लीला बिस्तारी ।
राम चरन रस मत्त रटत अह निसि ब्रतधारी ॥
संसार अपार के पार को सुगम रूप नौका लयो ।
कलि कुटिल जीव निस्तार हित बालमीकि तुलसी भयो ॥
सभी संतों ने श्रीनाभाजीके भाव का समर्थन किया ।
क्रमशः… (भाग – ३७)
श्री गौरी शंकर की जय 🙏 🚩
सियावर रामचन्द्र की जय 🙏 🚩
पवनसुत हनुमान की जय 🙏🚩
रामप्रेममूर्ति तुलसीदासजी की जय 🙏🌷
श्रीभक्तमाल के रचयिता श्रीनाभादासजी की जय🙏🌷